Vedrishi

Free Shipping Above 1000 On All Books | 5% Off On Shopping Above 10,000 | 15% Off On All Vedas,Darshan, Upanishad | 10% Off On Shopping Above 25,000 |
Free Shipping Above 1000 On All Books | 5% Off On Shopping Above 10,000 | 15% Off On All Vedas,Darshan, Upanishad | 10% Off On Shopping Above 25,000 |

अष्टांगहृदयम्

Ashtanghridyamm

725.00

In stock

Subject : Ashtanghridyamm, अष्टांगहृदयम्
Edition : 2023
Publishing Year : 2023
SKU # : 37818-CP00-SH
ISBN : 9789386735409
Packing : HardCover
Pages : 908
Dimensions : 20X26X8
Weight : 1310
Binding : HardCover
Share the book

आयुः कामयमानेन धर्मार्थसुखसाधनम्। आयुर्वेदोपदेशेषु विधेयः परमादरः ।। (वाग्मट) संसार के सभी अभीष्ट कार्यों-धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की सिद्धि स्वस्थ शरीर और दीर्घ आयु से ही हो सकती है। अतः दीर्घायु और स्वास्थ्य की कामना करने वाले प्रत्येक मानव को आयुर्वेद का ज्ञान प्राप्त करना और उसके उपदेशों का पालन करना चाहिए।

शरीर, इन्द्रियाँ, मन और चेतना घातु आत्मा; इन चारों के संयोग अर्थात् जीवन को ही ‘आयु’ और इस आयु-सम्बन्धी समस्त ज्ञान को ‘आयुर्वेद’ कहते हैं। यह आयुर्वेद अनादि है, क्योंकि सृष्टि के आरम्भ से ही जीवन और स्वास्थ्य-रक्षार्थ वायु, जल, अन्न आदि पदार्थों तथा उनके समुचित प्रयोग की आवश्यकता की अनुभूति के साथ ही विविध साधनों एवं उपायों का अन्वेषण और उनका उपयोग भी प्रारम्भ हुआ। यद्यपि परिस्थितिवशात् उनमें अनेक परिवर्तन भी होते आये, किन्तु देश, काल आदि भेद से किञ्चित् न्यूनाधिक होते हुए भी द्रव्यों के गुणों या प्राणियों के स्वभाव में मौलिक अन्तर कदापि न हुए और न हो सकते हैं। इसी प्रकार स्वस्थातुर-परायण आयुर्वेद के सिद्धान्तों में मौलिक अन्तर तो कदापि नहीं हुए: हाँ, देश-कालादि परिस्थितिवशात् उन सिद्धान्तों के आधार पर प्रयुक्त द्रव्यों एवं साधनों में विविधता और विचित्रता होना स्वाभाविक है। जैसे- महास्रोत में संसक्त किसी निज या आगन्तुक शल्य के निर्हरण रूप सिद्धान्त के उपायों-वमन, विरेचन, वस्ति या शस्त्रकर्म

आदि रूपों में अनेकता हो सकती है शल्यापहरण सिद्धान्त सर्वमान्य, सार्वभौम और त्रिकालाबाधित होगा; इसमें दो मत हो नहीं सकते । इससे यह भी सिद्ध है कि आयु-सम्बन्धी समस्त ज्ञान आयुर्वेद का विषय है और आयुर्वेद को किसी एक देश, काल, भाषा या व्यक्ति की सीमा में बाँधा नहीं जा सकता। विचारद्योतन मात्र एक ही उद्देश्य वाली विविध भाषाओं की वर्णमाला और व्याकरण की विविधता की ही भाँति त्रिदोषवाद, जीवाणुवाद या अन्य किसी भी वाद के अनुसार वर्णित चिकित्सा और स्वास्थ्य के नियमों का भी एक ही उद्देश्य होता है-

‘स्वस्थस्य स्वास्थ्यरक्षणमातुरस्य विकारप्रशमनेऽप्रमादः ।’

हाँ, आयु-राम्बन्धी विविध व्यक्तियों और क्षेत्रों में विकीर्ण ज्ञान को सङ्कलित कर ग्रन्थरूप में निबद्ध करने या संहिता का रूप देने का श्रेय किसी भी देश या व्यक्ति को दिया जा सकता है। साथ ही किसी भी एक सिद्धान्त की वैज्ञानिकता का मापन उसके त्रिकालाबाधित सार्वभौम तथ्य और उपयोग द्वारा किया जा सकता है और इस सम्बन्ध में उपलब्ध इतिहास से प्रमाणित है कि हमारे देश की सभ्यता और संस्कृति प्राचीनतम होने के कारण प्राचीनतम आयुर्वेदसंहिताकार भी इसी देश में हुए और उनकी संहिताओं में वर्णित त्रिदोषादि सिद्धान्त आज भी अखण्डित और ध्रुव सत्य हैं। हाँ, जिन्हें इनको समझने की शक्ति ही न हो या जो आँखें होते हुए भी उन्हें मुंद (बन्द) कर चलते हों, उनके सम्बन्ध में इतना ही कहना है कि ‘नोलूकोऽप्यवलोकते यदि दिवा सूर्यस्य किं दूषणम् ?’ सर्वप्रथम देवताओं में ब्रह्मा से प्रजापति, उनसे अश्विनीकुमारों और उनसे इन्द्र ने आयुर्वेद का अध्ययन किया तथा उनसे आत्रेय, भारद्वाज और धन्वन्तरि एवं उनके शिष्य-प्रशिष्यों ने आयुर्वेद का अध्ययन कर मानव-समाज में उसका प्रचार किया। भविष्य में होनेवाली सन्तति मैं उत्तरोत्तर आयु एवं बुद्धि की अल्पता का ध्यान कर समूचे आयुर्वेद को कायचिकित्सा, शल्यतन्त्र, शालाक्य, कौमारभृत्य, अगदतन्त्र, भूतविद्या, रसायन और बाजीकरण; इन आठ अङ्गों में विभक्त कर प्रत्येक अङ्ग की अनेक संहिताओं को बनाया। इनमें कायचिकित्सा और शल्यतन्त्र का व्यापक उपयोग होने के कारण इन दो अङ्गों को अधिक महत्त्व प्राप्त हुआ तथा व्यापकता, अर्थगांभीर्य, विशदता, भाषासारस्य, सुबोधता आदि अनेक गुणों के कारण कायचिकित्सा में अग्निवेशसंहिता और शल्यतन्त्र में सुश्रुतसंहिता को सर्वाधिक आदर मिला। इन संहिताओं में भी समय-समय पर चरक एवं दृढबल तथा नागार्जुन प्रभृति प्रतिसंस्कर्ताओं द्वारा अनेक संशोधन, परिवर्तन और परिवर्धन होते आए।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Ashtanghridyamm”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recently Viewed

You're viewing: Ashtanghridyamm 725.00
Add to cart
Register

A link to set a new password will be sent to your email address.

Your personal data will be used to support your experience throughout this website, to manage access to your account, and for other purposes described in our privacy policy.

Lost Password

Lost your password? Please enter your username or email address. You will receive a link to create a new password via email.

Close
Close
Shopping cart
Close
Wishlist