काशिकावृत्ति:
Kashikavritti (set of 2 Vol.)
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- By : Pandit Ishwarchandra
- Subject : kashikavritti (Set of 3 Vol.)
- Category : Sanskrit Grammer
- Edition : 2010
- Publishing Year : 2010
- SKU# : N/A
- ISBN# : N/A
- Packing : 3 Vol
- Pages : 2106
- Binding : Hardcover
- Dimentions : 20X26X18
- Weight : 4550 GRMS
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भारतीय संस्कृति का मूल आधार वेद हैं । वेदार्थ के सम्यग् बोध के लिए वेदांगों का ज्ञान अनिवार्य है । वेदांग छः हैं — शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्दः तथा ज्यौतिष | वेदांगों में शब्द विद्या अर्थात् व्याकरण ही प्रमुख है। आचार्य पतञ्जलि कहते हैं कि वेदार्थ ज्ञान-साध्य है तथा व्याकरण ज्ञान-साधन है। अतः वेदों की रक्षा के लिए व्याकरण का ज्ञान आवश्यक है।
यद्यपि शब्द शास्त्र के अनेक आचार्य हुए हैं, परन्तु महर्षि पाणिनि एक तत्त्ववेत्ता आचार्य हुए हैं। आचार्य पाणिनि रचित अष्टाध्यायी अपने सर्वातिशायी गुणों के कारण सभी व्याकरण ग्रन्थों में श्रेष्ठ है । लौकिक तथा वैदिक — दोनों प्रकार के संस्कृत वाङ्मयों में पाणिनि की प्रतिभा अकुण्ठित रही । आज व्याकरणशास्त्र के अध्येता को आचार्य पाणिनि के औपचारिक परिचय की किञ्चिन्मात्र भी आवश्यकता नहीं है ।
अष्टाध्यायी पर संस्कृत में अनेक वृत्तियाँ लिखी गईं। इस परम्परा में प्रमुखतः दो सरणियों का उदय हुआ - लक्षणप्रधान वृत्ति तथा लक्ष्य-प्रधान वृत्ति । जयादित्य - वामन विरचित काशिका लक्षण - प्रधान वृत्ति का सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ है । यह ग्रन्थ आज सम्पूर्ण प्राप्त होता है । अष्टाध्यायी पर इससे उत्तम टीका उपलब्ध नहीं है ।
भट्टोजि दीक्षित विरचित वैयाकरण- सिद्धान्तकौमुदी लक्ष्यप्रधान शैली का चूडान्त निदर्शन है ।' दीक्षितजी ने अष्टाध्यायी के सभी सूत्रों को प्रक्रिया की दृष्टि से प्रकरणानुसार व्यवस्थित करके एक नवीन शैली का सूत्रपात किया । - - काशिकावृत्ति पर न्यास तथा पदमञ्जरी - दो प्रौढ़ संस्कृत टीकायें प्राप्त होती हैं। इन संस्कृत टीकाओं पर भी अनेक संस्कृत-टीकायें उपलब्ध होती हैं; परन्तु काशिकावृत्ति पर हिन्दी भाषा में टीकाओं की कमी रही है । सम्प्रति श्रीनारायण मिश्र कृत हिन्दी टीका तथा श्रीजयशंकर लाल त्रिपाठी कृत भावबोधिनी टीका – ये दो टीकायें ही आज उपलब्ध हैं। फिर भी आज के अध्येतृवर्ग द्वारा काशिकावृत्ति की एक सरल व सुबोध उपयोगी हिन्दी टीका की महती आवश्यकता चिरकाल अनुभव की जा रही थी, जिसकी पूर्ति प्रस्तुत 'सोमलेखा' टीका के माध्यम से करने का यथाशक्य प्रयास किया गया से है ।
प्रस्तुत टीका की निम्नलिखित विशेषतायें हैं
1. प्रस्तुत टीका की भाषा अत्यधिक सरल है।
2. व्याकरण जैसे दुरूह तथा शुष्क विषय को सुगम तथा रोचक शैली में प्रस्तुत किया गया है ।
3. सभी सूत्रों का अर्थ दिया गया है।
4. सभी वार्त्तिकों को अर्थसहित प्रस्तुत किया गया है।
5. प्रत्येक उदाहरण की सिद्धिप्रक्रिया विस्तार से प्रदर्शित की गई है ।
6. पदकृत्यों के विशेष विवेचन के द्वारा सूत्रस्थ प्रत्येक पद का औचित्य दिखाया गया
7. गूढ स्थलों की विशेष व्याख्या की गई है । 8. कारिकाओं की विस्तृत व्याख्या दी गई है ।