Vedrishi

Free Shipping Above 1000 On All Books | 5% Off On Shopping Above 10,000 | 15% Off On All Vedas,Darshan, Upanishad | 10% Off On Shopping Above 25,000 |
Free Shipping Above 1000 On All Books | 5% Off On Shopping Above 10,000 | 15% Off On All Vedas,Darshan, Upanishad | 10% Off On Shopping Above 25,000 |

वैदिक नित्यकर्म एवं पञ्चमहायज्ञ विधि

Vedic Nityakarma Evam Panchmahayagya Vidhi

300.00

In stock

Subject : Vedic Nityakarma Evam Panchmahayagya Vidhi
Edition : 2022
Publishing Year : 2011
SKU # : 37616-CO00-SH
ISBN : N/A
Packing : N/A
Pages : 396
Dimensions : 14X22X4
Weight : 500
Binding : Hardcover
Share the book

मानव जीवन को सम्पूर्ण रूप से समुन्नत करने में पञ्च महायज्ञों का योगदान महत्त्वपूर्ण है। यज्ञ शब्द का अर्थ देवपूजा, संगतिकरण और दान है। देवपूजा के दो भाग हैं। प्रथम-देवों का देव (महादेव) वह परमात्मा है, उसकी उपासना करना ही देवपूजा है। ( द्वितीय-विद्वान् पुरुष देव हैं, उनका यथोचित सत्कार देवपूजा है। अग्नि, वायु, सूर्य, चन्द्र आदि जड़देव हैं, उनसे यथोचित कार्य लेकर और अग्नि में आहुति देकर वायुमण्डल को सुगन्धित और पवित्र करना भी देवपूजा है। संगतिकरण परस्पर सम्मिलन और सहयोग करने को कहते हैं। यज्ञार्थ कर्मों में दान (दक्षिणा) देने से यज्ञ के तीनों अर्थों की पूर्णता हो जाती है।

प्रथम महायज्ञ ब्रह्मयज्ञ में उपासक परमब्रह्म की उपासना करता है। द्वितीय महायज्ञ देवयज्ञ में घृत, सामग्री, समिधा आदि वस्तुओं के द्वारा हवन करते हैं। यज्ञ करने से वायु की शुद्धि, दुर्गन्ध एवं मलिनता का विनाश, विविध रोगों से मुक्ति, प्राणशक्ति का विकास, स्थान की पवित्रता, मानसिक शान्ति, परोपकार की भावना और आत्मिक उन्नति के साथ अनेक लाभ होते हैं। तृतीय महायज्ञ पितृयज्ञ में अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन और सेवा करने की भावना का उत्तम उपदेश है । चतुर्थ महायज्ञ बलिवैश्वदेव यज्ञ में समस्त प्राणियों के साथ आत्मवत् प्रेम करना और उनके लिए बलिभाग निकाल कर सद्भावना और अहिंसा का सन्देश निहित है। पञ्चम महायज्ञ अतिथियज्ञ में अपने घर आये विद्वान्, अतिथि का यथोचित सम्मान और सत्कार करने की पवित्र भावना है। यज्ञ की महिमा पर किसी कवि ने यह कहा है  | यही बात भगवान् कृष्ण ने गीता के तृतीय अध्याय के श्लोक संख्या ११ में कही है –

देवान्भावयतानेन ते देवा भावयन्तु वः ।

परस्परं भावयन्तः श्रेयः परमवप्स्यथ ||

होता है सारे विश्व का कल्याण यज्ञ से  अर्थात् इसके द्वारा तुम जड़ और चेतन देवताओं का पोषण करो और देवता तुम्हारा पोषण करेंगे। इस प्रकार एक दूसरे का पोषण करते हुए तुम सब परम कल्याण को प्राप्त करोगे।

इससे अगले श्लोक (३/१२) में योगीराज कृष्ण ने यज्ञ न करने वालो को चोर तक कह दिया है –

इष्टान्भोगान्हि वो देवा दास्यन्ते यज्ञभाविताः ।

तैर्दत्तानप्रदायैभ्यो यो भुङ्क्ते स्तेन एव सः ॥

अर्थात् यज्ञ से प्रसन्न होकर देवता तुम्हें वे सुख प्रदान करेंगे, जिन्हें तुम चाहते हो । जो व्यक्ति उनके द्वारा दिए गये सात्विक उपहारों का उपयोग देवताओं को बिना दिए करता है, वह तो चोर है। यह 'चोर' शब्द कह कर योगीराज कृष्ण हमें यह कहना चाह रहे हैं कि पहले यज्ञ करो, जड़ देवताओं का गुणवर्धन करो और चेतन देवताओं को प्रसन्न करो, अन्यथा तुम चोर कहलाओगे। 

Weight 800 g

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Vedic Nityakarma Evam Panchmahayagya Vidhi”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recently Viewed

You're viewing: Vedic Nityakarma Evam Panchmahayagya Vidhi 300.00
Add to cart
Register

A link to set a new password will be sent to your email address.

Your personal data will be used to support your experience throughout this website, to manage access to your account, and for other purposes described in our privacy policy.

Lost Password

Lost your password? Please enter your username or email address. You will receive a link to create a new password via email.

Close
Close
Shopping cart
Close
Wishlist