चरकसंहिता (2 भाग)

Charaksanhita (2 Volumes)

Sanskrit-Hindi Other(अन्य)
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  • By : Multi Authors
  • Subject : Ayurveda
  • Category : Ayurveda
  • Edition : 2017
  • Publishing Year : 2021
  • SKU# : N/A
  • ISBN# : 9788170845096
  • Packing : 2 Volumes
  • Pages : 2090
  • Binding : Hard Cover
  • Dimentions : 9.00 X 6.00 Inch
  • Weight : 2550 GRMS

Keywords : Ayurveda Medicine आयुर्वेद चरक charaka charak samhita online charak samhita in hindi charak samhita book चरक संहिता हिंदी

पुस्तक का नाम – चरक संहिता 
अनुवादक एवं व्याख्याकार – आचार्य विद्याधर शुक्ल एवं प्रो. रविदत्त त्रिपाठी

आयुर्वेदीय चिकित्सा वाङ्मय में चरकसंहिता विश्वकोष के समान चिकित्सा – विधियों का एक आकर ग्रन्थ है। आयुर्वेद की समस्त प्रतिष्ठा का श्रेय इस एक ग्रन्थरत्न को है, इसमें कोई अत्युक्ति नहीं है। विज्ञजन चिकित्सक के लिए ‘चरकसंहिता’ में वर्णित चिकित्सा के व्यावहारिक ज्ञान का होना नितान्त आवश्यक मानते हैं। यह ग्रन्थ ऋग्वेद के उपवेद आयुर्वेद के अन्तर्गत आता है। इस ग्रन्थ के पठन – पाठन का विधान महर्षि दयानन्द सरस्वती ने भी किया है। 
तपः स्वाध्यायपरायण आयुर्यज्ञ के प्रवर्तक ऋषि – महर्षियों ने हिमगिरि की उपत्यका के उपह्वरों में समाधिस्थ होकर जीवजगत् के योगक्षेम – संवर्धनार्थ जो चिन्तन किया था, उसका ही प्राणवन्त परिस्फुरण महर्षि आत्रेय के श्रीमुख से विनिःसृत होकर परम्परया ‘चरकसंहिता’ के रूप में अवतरित हुआ। 
इस संहिता में विषय आठ स्थानों और एक सौ बीस अध्यायों में विभक्त हैं, जिनका विस्तृत विवरण निम्न प्रकार है – 
1) सूत्रस्थान में चार चार अध्यायों को चतुष्क के रूप में कहा गया है और सात चतुष्कों में अट्ठाइस अध्याय हैं, यथा – 1 औषधचतुष्क, 2 स्वस्थचतुष्क 3 निर्देशचतुष्क 4 कल्पनाचतुष्क 5 रोगचतुष्क 6 योजनाचतुष्क 7 अन्नपानचतुष्क तथा उनतीस और तीस ये दो संग्रहाध्याय हैं। 
2) निदानस्थान में निदानपञ्चक और निदान के मूलभूत सिद्धान्तों का वर्णन किया गया है। इसमें 1 ज्वर 2 रक्तपित्त 3 गुल्म 4 प्रमेह 5 कुष्ठ 6 शोष 7 उन्माद 8 अपस्मार इन आठ रोगों का विस्तृत निदान तथा संक्षिप्त चिकित्सासूत्र बतलाया गया है। 

3) विमानस्थान के प्रथम अध्याय में रसों और दोषों का सम्बन्ध, आठ आहारविधिविशेषायतन तथा दश आहार – विधियों का सुन्दर सयुक्तिक वर्णन है। द्वितीय में त्रिविधकक्षिविभाग तथा आमदोषजन्य विसूचिका एवं अलसक रोग का वर्णन है। तृतीय में जनपदोद्ध्वंस एवं नियत तथा अनियत आयु का वर्णन है। षष्ठं में रोगों के भेद, अग्नि तथा प्रकृति का विचार है। सप्तम में गुरु – लघुव्याधित पुरुष एवं बीस कृमियों का वर्णन है। अष्टम अध्याय चरक संहिता का हृदय स्थल है और इसमें चिकित्सकीय पाण्डित्य के उपार्जन तथा चिकित्सा सम्बन्धी व्यावहारिक ज्ञान भरे पड़े हैं, यथा – शास्त्रपरीक्षा, आचार्य परीक्षा, शिष्यपरीक्षा, अध्ययन – विधि, अध्यापन विधि, तद्विसम्भाषा, पञ्चाकर्मार्थ द्रव्य संग्रह एवं मधुर आदि स्कन्धों का विस्तृत रूप से वर्णन किया गया है। 

4) शरीरस्थान में अध्याय़ के प्रारम्भ में प्रश्न हैं, जिनका पूरे उत्तर अध्याय में हैं। आगे के अध्यायों में भी प्रायः प्रश्नोत्तर शैली में विषयों का उपस्थापन किया गया है। प्रथम अध्याय में चतुर्विशतितत्त्वात्मक पुरुष का वर्णन है एवं नैष्ठिकीचिकित्सा, प्रज्ञापराध, योग और मोक्ष के लक्षण तथा इनके साधन का वर्णन है। द्वितीय में सन्तानोत्पत्ति विषयक प्रश्नोत्तर, विकृत सन्तान होने के कारण, रोगों के सामान्य कारण और उनके निवारण का वर्णन है। तृतीय अध्याय में गर्भावक्रमण, गर्भ के भाव और भावविषयक शङ्का – समाधान, भरद्वाज के द्वारा आत्मा आदि के सम्बन्ध में शङ्का और आत्रेय द्वारा उसके समाधान का वर्णन है। चतुर्थ अध्याय में गर्भ का मासानुमासिक स्वरूप, दोहद, गर्भ की विकृति तथा सोलह मानस प्रकृतियों का वर्णन है। पंचम में लोकपुरूषसाम्य और मोक्ष के उपायों का वर्णन है। षष्ठ में शरीर की परिभाषा, शरीरवृद्धिकर भाव आदि एवं गर्भविषयक नौ प्रश्न प्रश्नों का उत्तर है। सप्तम में शरीरावयवों का वर्णन है। अष्टम में गर्भाधान, कुमार की परिचर्या और धात्री व्यवस्था का वर्णन है। 

5) इन्द्रियस्थान के प्रथम अध्याय में वर्णस्वर, प्रकृति – विकृति एवं अरिष्ट में परीक्ष्य भावों का वर्णन है। द्वितीय में गन्ध और रसों के अरिष्ट कहे गये हैं। तृतीय अध्याय में स्पर्शज्ञेय अरिष्टों का वर्णन है। चतुर्थ अध्याय में इन्द्रियों के अरिष्ट का वर्णन है। पंचम में रोगों के पूर्वरूपारिष्टों का वर्णन है। षष्ठ में रोगों के अरिष्ट कहे गये हैं। सप्तम में छाया और प्रभा के अरिष्ट बतलाये गये हैं। अष्टम तथा नवम में रोगों में होने वाले अरिष्टों का वर्णन है। दशम में सद्योमरणीय अरिष्टों का वर्णन है। एकादश में वार्षिक, षण्मासिक, मासिक तथा कुछ अन्य प्रकार के अरिष्टों का वर्णन है। बारहवें में दूतों से सम्बद्ध, मार्ग से सम्बद्ध, रोगी के कुल से सम्बद्ध तथा मुख्य अरिष्टों का वर्णन किया गया है।

6) चिकित्सास्थान में रसायन, वाजीकरण, ज्वरादि रोग, स्त्रीरोग, क्लैव्य आदि का विस्तार से उपचार वर्णित है।

7) कल्पस्थान में भैषज्यकल्पना के विषय तथा वमन – विरेचन के कल्पों का वर्णन किया गया है। 

😎 सिद्धिस्थान में पञ्चकर्म की कल्पना, पञ्चकर्मीयसिद्धि, प्रासृतयोगीयसिद्धि, त्रिमर्मीयसिद्धि, वस्तिसिद्धि, फलमात्रसिद्धि और उत्तरवस्तिसिद्धि – इस प्रकार 12 अध्यायों का वर्णन किया गया है। ग्रथान्त में अध्यायों की संख्या एक सौ बीस कही गई है। संस्कर्ता के रूप में चरक का और ग्रन्थ के पूरक के दृढबल का उल्लेख है तथा छत्तीस तन्त्रयुक्तियों और चरकसंहिता के अध्ययन की फलश्रुति या प्रशस्ति का वर्णन है। 

प्रस्तुत संस्करण का महत्त्व – आजकल सम्प्रति कालविपर्यास से संस्कृत के अध्ययन के प्रति अभिरूचि का अभाव होता जा रहा है और मूलग्रन्थ का अध्ययन कर पाना सामान्य अध्येताओं के लिए एक दुरूह और कठिन कार्य है। अतः प्रस्तुत संस्करण में त्रिविधशिष्यबुद्धिगम्य शैली में चरकसंहिता की सरल सुबोध प्राञ्जल भाषा में हृदयंगम व्याख्या की गई है। जिससे इस संहिता का ज्ञानोपार्जन करने में किसी भी प्रकार का भार या अरुचि न हो और थोड़े परिश्रम से संहिता का ज्ञान उपार्जित कर लिया जाय। इस व्याख्या में क्लिष्ठ संस्कृत और हिन्दी शब्दों के स्थान में सरल शब्दों का चयन किया गया है। 

आशा है कि आयुर्वेद के अध्येता और सामान्य हिन्दी भाषा के जानकार पाठक इस ग्रन्थ से अत्यन्त लाभान्वित होंगे।

 
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