हिन्दुओं के धार्मिक एवं सामाजिक जीवन में मूर्तिपूजा का एक विशेष स्थान है। मूर्तिपूजा के कारण इस देश में अनेक ऐतिहासिक परिवर्तन हुए हैं। मूर्तिपूजक होने के फलस्वरूप हन्दूजाति को शताब्दियों तक अनेक यातनाएँ सहन करनी पड़ी।
मुस्लिम-काल का समस्त इतिहास मूर्तिपूजा के ही परिणाम स्वरूप रक्त से रंगा हुआ है। मूर्तिपूजा इस देश में कब से प्रचलित है? उसका हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा है? क्या उसका हमारे धार्मिक, सामाजिक तथा राष्ट्रीय उत्थान-पतन से कोई सम्बन्ध है? इत्यादि अनेक ऐसे ही विषयों पर ऐतिहासिक विवेचन की आज स्वतंत्र भारत के लिए आवश्यकता है।
पुस्तक के कुछ अन्तिम अध्याय धार्मिक दृष्टि से उत्पन्न होने वाली अनेकानेक शंकाओं के समाधानार्थ सम्मिलित कर दिये गए हैं, जिससे पाठक किसी उचित निर्णय पर पहुँचने में भूल न करें। आशा है सहृदय पाठक पुस्तक का उसी शुद्धभाव से, जिससे कि यह लिखी गई है. अध्ययन एवं अनुशीलन करेंगे और पुस्तक को अधिक-से-अधिक पाठकों तक पहुँचाकर इसकी उपयोगिता बढ़ाएँगे । – राजेन्द्र
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