पुस्तक का नाम – आचार्य सायण और स्वामी दयानन्द सरस्वती की वेदभाष्य भूमिकाएँ
लेखक – डा. रामप्रकाश वर्णी
भारतीय संस्कृति एवम् संस्कृत की अमूल्य धरोहर के रूप में वेदों की प्रतिष्ठा है। समय-समय पर ऋषि, महर्षि, विद्वान, राजा आदि इनके काव्यत्व से विमुग्ध होकर इनके सम्बन्ध में कुछ न कुछ कहने के लिए प्रवृत्त होते रहे हैं। इस ऋषि-परम्परा में आचार्य यास्क प्रथम भाष्यकार हुए जिन्होंने वेदार्थ को जानने के लिए कुछ नियम निरुपित किये तथा उदाहरणस्वरूप कुछ मन्त्रों की व्याख्या भी की।
वेदों की व्याख्या करते हुए आचार्य सायण ने चारों वेदभाष्यों के आरम्भ में तत्तद्वेदभाष्य के उपोध्दात लिखे थे। इस ग्रन्थ का अध्ययन करने से किसी भी अध्येता को आचार्य सायण की वेद सम्बन्धित अवधारणाओं का ज्ञान सहजतया हो जाता है। इन भूमिकाओं में उन विषयों का संकलन हैं, जिनकी आधारशिला पर आचार्य सायण ने अपना वेद भाष्यरूपी विशाल भवन स्थापित किया है।
महर्षि दयानन्द ने चारों वेदों की भूमिका संस्कृत एवं हिंदी भाष्य में निबद्ध ‘ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका’ के नाम से अपने महनीय कलेवर में प्रस्तुत की है।
इस प्रकार भिन्न-भिन्न कालक्रमों में दो भिन्न-भिन्न आचार्यों द्वारा एक ही विषय पर किये गये इस महनीय कार्य की महत्ता को देखते हुए दोनों आचार्यों की दृष्टि, भावनाओं, सिद्धांतो व मान्यताओं में क्या अंतर हैं और उस विभेद का औचित्य क्या है, इसी जिज्ञासा से उत्प्रेरित होकर प्रस्तुत विषय “आचार्य सायण और स्वामी दयानन्द सरस्वती की वेद भाष्य भूमिका” को पाठकों के समक्ष रखा है।
सम्पूर्ण विषय का प्रतिपादन समग्ररूप में व्यवस्थित एवं सांगोपांग स्थापित करने के लिए यह ग्रन्थ ८ अध्यायों में है।
Acharya Sayan aur Swami Dayanand Sarswati ki Vedbhashya Bhumikayen
आचार्य सायण और स्वामी दयानन्द सरस्वती की वेदभाष्य भूमिकाएँ
Acharya Sayan aur Swami Dayanand Sarswati ki Vedbhashya Bhumikayen
₹350.00
Category Research - अनुसन्धान
puneet.trehan हिन्दी
Subject: YogVaasishtha
Edition: 2019
Publishing Year: 2019
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