जीवन प्राप्त करने के साथ ही प्रत्येक जीव के साथ एक महत्त्वपूर्ण अङ्ग जुड़ जाता है, वह है कर्म । कर्म करना प्रत्येक जीव का धर्म है, वह किसी भी स्थिति में, किसी भी समय कर्म किये बिना नहीं रह सकता है। गीता में कहा गया है कि
न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत् ।
कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः ।।
स्वभाव के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति कोई न कोई कार्य करता ही रहता है लेकिन जिस कर्म से किसी को कोई परेशानी न हो वही सत्कर्म है और ऐसा ही कर्म करना चाहिए जिससे किसी को किसी प्रकार की बाधा न हो । अपने कर्मों के द्वारा ही मनुष्य समाज से जुड़ता है। कर्माभाव में व्यक्ति का कोई अस्तित्व नहीं होता है। कर्म के द्वारा ही जीव परम मोक्ष को प्राप्त करता है। व्यक्ति को कर्माभाव में जीवन-यापन नहीं करना चाहिए । ईशावास्योपनिषद् में कहा भी है कि कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं समाः । एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे ।। प्रस्तुत 'भारतीय चिन्तन परम्परा' में गीता ग्रन्थ के द्वारा प्रत्येक जनमानस में स्वकर्म का बोध कराते हुए मानवता को जीवित रखना है।
Bhartiya Chintan Parampara Men Geeta
भारतीय चिंतन परंपरा में गीता
Bhartiya Chintan Parampara Men Geeta
₹450.00
Category Indian Culture - भारतीय संस्कृति परंपरा
puneet.trehan हिन्दी
Subject: Bhartiya Chintan Parampara Men Yajya
Edition: 2018
Publishing Year: 2018
ISBN : 9788180000000
Pages: 287
BindingHardcover
Dimensions: 14X22X4
Weight: 600gm
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