Vedrishi

दर्शन

Darshan

2,450.00

SKU field_64eda13e688c9 Category puneet.trehan
Subject: Darshan
Edition: 2020
Publishing Year: 2020
ISBN : 9780980000000
Pages: 3515
BindingHard Cover
Dimensions: 14X22X18
Weight: 4700gm

भाष्यकार – आचार्य उदयवीर शास्त्री जी

दर्शन शब्द का व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ – “दृश्यतेऽनेन इति दर्शनम्” से सम्यक दृष्टिकोण ही दर्शन है अर्थात् समग्रता को यथार्थरूप में कहने वाला दर्शन है। जो पदार्थ जैसा है, उसे वैसा ही उपदेश करना सत्य है और यही सत्य दर्शनों द्वारा प्रतिपादित किया गया है। वेद को प्रमाणित मानने वाले छः दर्शन हैं, इन्हीं को वैदिक दर्शन या षड्दर्शन कहते हैं। यह छः दर्शन हैं – न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, मीमांसा और वेदान्त।

महर्षि दयानन्द जी ने अपने ग्रन्थ “सत्यार्थप्रकाश” में दर्शनों के अध्ययन-अध्यापन की विधि का उल्लेख किया है –
“तदनन्तर पूर्वमीमांसा, वैशेषिक, न्याय, योग, सांख्य और वेदान्त अर्थात् जहाँ तक बन सके, वहाँ तक ऋषिकृत व्याख्यासहित अथवा उत्तम विद्वानों की सरल व्याख्यायुक्त छः शास्त्रों को पढें-पढावें” – सत्यार्थ प्रकाश, समुल्लास3
इससे दर्शनों के महत्त्व का ज्ञान होता है।

सभी दर्शनों में कुछ समानताएं हैं, जो निम्न प्रकार है –
१. सभी में ग्रन्थारंभ वैदिक मङ्गलाचरण ‘अथ’ शब्द से होता है।
२. सभी दर्शनों में प्रथम सूत्र में ही अपना प्रतिपाद्य विषय निश्चित है।
३. सभी दर्शन उद्देश्य कथन के उपरान्त, उसका लक्षण बताते हैं, पुनः शेष शास्त्र में उसका परीक्षण करते हैं।
४. सभी शास्त्रों की शैली सूत्ररूप अर्थात् संक्षेप में कहने की है।
५. सभी शास्त्र अपने प्रधान विषय का परिज्ञान करने के साथ-साथ अनेक उपविषयों का भी परिज्ञान कराते हैं।
६. सभी शास्त्र वेदों को प्रमाण के रूप में स्वीकार करते हैं।
७. सभी शास्त्र एक-दूसरे के पूरक हैं।

इन सभी दर्शनों के अपने-अपने विषय है। जिनका संक्षिप्त परिचय यहाँ दिया जाता है –
१. मीमांसा दर्शन – इसमें धर्म एवम् धर्मी पर विचार किया गया है। यह यज्ञों की दार्शनिक विवेचना करता है लेकिन साथ-साथ यह अनेक विषयों का वर्णन करता है। इसमें वेदों का नित्यत्व और अन्य शास्त्रों के प्रमाण विषय पर विवेचना प्रस्तुत की गई है।

२. न्याय दर्शन – इस दर्शन में किसी भी कथन को परखने के लिए प्रमाणों का निरुपण किया है। इसमें शरीर, इन्द्रियों, आत्मा, वेद, कर्मफल, पुनर्जन्म आदि विषयों पर गम्भीर विवेचना प्राप्त होती है।

३. योग दर्शन – इस दर्शन में ध्येय पदार्थों के साक्षात्कार करने की विधियों का निरुपण किया गया है। ईश्वर, जीव, प्रकृति इनका स्पष्टरूप से कथन किया गया है। योग की विभूतियों और योगी के लिए आवश्यक कर्तव्य-कर्मों का इसमें विधान किया गया है।

४. सांख्य दर्शन – इस दर्शन में जगत के उपादान कारण प्रकृति के स्वरूप का वर्णन, सत्त्वादिगुणों का साधर्म्य-वैधर्म्य और उनके कार्यों का लक्षण दिया गया है।
त्रिविध दुःखों से निवृत्ति रूप मोक्ष का विवेचन किया गया है।

५. वैशेषिक दर्शन – इसमें द्रव्य को धर्मी मानकर गुण आदि को धर्म मानकर विचार किया है। छः द्रव्य और उसके 24 गुण मानकर उनका साधर्म्य-वैधर्म्य स्थापित किया गया है। भौतिक-विज्ञान सम्बन्धित अनेको विषयों को इसमें सम्मलित किया गया है।

६. वेदान्त दर्शन – इस दर्शन में ब्रह्म के स्वरूप का विवेचन किया गया है तथा ब्रह्म का प्रकृति, जीव से सम्बन्ध स्थापित किया गया है। उपनिषदों के अनेको स्थलों का इस ग्रन्थ में स्पष्टीकरण किया गया है।

इन सभी दर्शनों पर सरल और विस्तृत भाष्य आचार्य उदयवीर शास्त्री द्वारा रचित है। यह भाष्य दर्शनों के वास्तविक अभिप्राय को प्रकट करता है। इस भाष्य समुच्चय में प्रत्येक दर्शन भाष्य से पूर्व विस्तृत भूमिका दी गयी है और अन्त में सूत्रानुक्रमणिका दी गई है। दर्शनों को आत्मसात् करने के लिए इस दर्शन समुच्चय का अवश्य अध्ययन करें।

Weight6415688 g

Reviews

There are no reviews yet.

You're viewing: Darshan 2,450.00
Add to cart
Register

A link to set a new password will be sent to your email address.

Your personal data will be used to support your experience throughout this website, to manage access to your account, and for other purposes described in our privacy policy.

Lost Password

Lost your password? Please enter your username or email address. You will receive a link to create a new password via email.

Close
Close
Shopping cart
Close
Wishlist