वेदाङ्गसूत्रसाहित्य का प्रतिनिधित्व करता है। कल्प के अर्न्तगत श्रौतसूत्र, गृह्यसूत्र, धर्मसूत्र और शुल्बसूत्र आते हैं। पुस्तक के अन्तर्गत धर्मसूत्रों का वर्ण्यविषय व्यापक है जिसके अन्तर्गत प्राचीन ऋषियों द्वारा सुदीर्घ चिन्तन, मनन तथा अनुभवों के परिणामों द्वारा प्रतिपादित
सभी प्रकार के विधि-विधानों एवं धर्मों और कर्त्तव्यों का वर्णन प्राप्त होता है। यदि इन कर्त्तव्यों का पालन
मनुष्य के द्वारा ना किया जाए तो उसके वर्ण तथा आश्रम के अनुसार प्रायश्चित्त एवं दण्ड-प्रक्रिया का विधान बतलाया गया है। धर्मसूत्रों में वर्णित आचार संहिता को स्पष्ट करना होगा, जो धर्मसूत्रों में विस्तार से वर्णित है। –
प्रस्तुत पुस्तक में प्राचीन न्याय व्यवस्था का स्वरूप संक्षेप में प्रस्तुत किया गया है। प्राचीन न्याय व्यवस्था के परिप्रेक्षय में वर्तमान न्याय प्रक्रिया में सुधार के लिये में कुछ सुझाव दिये गये हैं। इन पर विचार करने की आवश्यकता है जिससे कि वर्तमान न्याय प्रक्रिया में असहाय जनसामान्य की कठिनाईयों को दूर किया जा सकता है। यही पुस्तक का उद्देश्य है।
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