Vedrishi

दो मित्रों की बातें

Do Mitron Ki Baaten

50.00

Subject: Dharmik Covnersion
Edition: NULL
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ISBN : NULL
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Pages: NULL
BindingPaperback
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पुस्तक का नाम दो मित्रों की बातें लेखक का नाम पं. सिद्ध गोपाल (कविरत्न) वेद ईश्वर की कल्याणकारी और सत्यवाणी कही गई है। वैदिक सिद्धान्त अपने आप में सत्य और सनातन है। मध्य के कुछ समय से मनुष्य इस सत्य वाणी से भटककर अनेकों पाखण्डों में घिर गया है। सत्य सनातन सिद्धान्तों के स्थान पर मनघडन्त और विनाशकारी मान्यताओं को अपनाने लगा है। वेदादि शास्त्रों में जो ईश्वर का सत्य स्वरुप वर्णित था। उस स्वरुप को विस्मृत करके अनेकों प्रकार की कल्पनाओं द्वारा ईश्वर के काल्पनिक स्वरुप की ही उपासना करके प्रसन्न है। मनुष्य की इसी अज्ञानता का लाभ अनेकों नामधारी धर्मगुरु वर्षों से उठा रहे हैं। अनेकों प्रकार से ये पाखण्डी गुरु मनुष्य को ठग रहे हैं। आजकल क्या समाचार पत्र, क्या समाचार चैनल जिधर भी देखों उधर इनकें आडम्बरी कार्यों की चर्चाऐं हैं। इससे जहाँ व्यक्ति की स्वहानि है वहीं धर्म की भी हानि हो रही है। ईश्वर के सच्चे स्वरुप और वेदादि शास्त्रों से अनभिज्ञ होने के कारण आज की युवा पीढी भी दूसरे मतों की तरफ आकर्षित हो रही है। कुछ युवा आज धर्म विषयक तार्किक उत्तर न प्राप्त होने के कारण नास्तिक होते जा रहे हैं। ऐसे युवा आज महापुरुषों, ईश्वर, भारतीय संस्कृति पर कटाक्ष करने लगे हैं। अतः सरल भाषा में साधारण मनुष्यों तक वेद के सिद्धान्तों को प्रस्तुत करने के लिए प्रस्तुत पुस्तक दो मित्रों की बातेंपं. सिद्धगोपाल जी कविरत्न जी द्वारा लिखी गई है। प्रस्तुत पुस्तक वैदिक सिद्धान्तों की सत्य ज्योति से सम्बन्धित आर्य उपदेशकों की एक शिक्षाप्रद प्रेरक कहानी है। लेखक ने अपने प्रचार काल के अनुभवों के आधार पर सर्व साधारण के लिए हृदयग्राही वैदिक सिद्धान्तों और आर्यसमाज के दृष्टिकोण को समझने के लिए इस पुस्तक को सरल और रोचक भाषा शैली में लिखा है। इस छोटे से ग्रंथ में वैदिक सिद्धान्त सम्बन्धित सभी महत्वपूर्ण बातों जैसे क्या ईश्वर है या नहीं? क्या ईश्वर सृष्टिकर्त्ता है? ईश्वर की भक्ति क्यों और कैसे करें? वर्ण व्यवस्था, श्राद्ध विषय, मांस खाना चाहिये या नही? आदि का समावेश किया गया है। वैदिक सिद्धान्तों की व्याप्ति और साचार प्रचार द्वारा ही भारत और संसार के कष्ट दूर होंगे, हमारा विश्वास है कि सम्पूर्ण आर्य जनता एक एक व्यक्ति के हाथों में इस ग्रंथ को पहुँचाकर अपने कर्तव्य का पालन करेगी।

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