Vedrishi

निरुक्त शास्त्रम्

NIrukta Shastram

600.00

Subject: grimmer, literature , Sanskrit, ashtadhyayi
BindingNULL
Dimensions: NULL
Weight: NULLgm

ग्रन्थ का नाम निरुक्त शास्त्रम्

अनुवादक का नाम पं. भगवद्दत्त रिसर्चस्कॉलर जी

 

वेदों के अर्थ निर्णय में वेदाङ्गों का अध्ययन अत्यन्त ही आवश्यक है। वेदाङ्गों की परम्परा अति प्राचीन काल से ही है इन छः वेदाङ्गों का उल्लेख विभिन्न प्राचीन ग्रन्थों में हुआ है।

जैसे षडङ्गविद् गो.पू. 1.27

द्विजोत्तमैः वेदषडङ्गपारगै बालकाण्ड सर्ग 5

वेदात् षडङ्गान्युद्धृत् महा.भा. 284.92

वेदाङ्गानि बृहस्पतिः महा.भा. 112.32

षडङ्गवित् मनु.3.185

 

इन प्रमाणों से स्पष्ट होता है कि वेदाङ्गों के अध्ययन की परम्परा अति प्राचीन है। इन्हीं में से यास्क कृत निरुक्त का वेदार्थ में अति महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस निरुक्त पर कई नवीन प्राचीन-टीकाएँ और भाषानुवाद प्रचलित है किन्तु प्रस्तुत संस्करण पं. भगवद्दत्त जी द्वारा रचित भाषा-भाष्य, भारतीय दृष्टि से आचार्य यास्क के दृष्टिकोण को यथार्थ रूप में प्रकट करता है। इस भाष्य में प्रसङ्गतः ईसाई-यहूदी गुट की दुरभिसन्धियों और उनके अनुयायी भारतीय विद्वानों के मिथ्या कथनों का निराकरण किया है। इस संस्करण में अन्वयार्थ नहीं दिया गया है। इसमें केवल पदक्रम से ही अर्थ दिये है।

यह भाष्य अति संक्षिप्त है। इसमें आधिदैविक और आधिभौत्तिक पक्ष को दर्शाया गया है। जिससे भविष्य में वेदों के वैज्ञानिक अर्थ खुलेंगे।

वास्तव में व्याकरण के अध्ययन की सम्पूर्णता भी निरुक्त के अध्ययन के पश्चात् ही होती है। अतः न केवल किसी शाब्दिक के लिए अपितु प्रत्येक वेदार्थ जिज्ञासु को इसका अध्ययन अत्यन्त अनिवार्य है। वैदिक शोध में लगे विद्वानों और वेदाङ्ग के अध्येता छात्रों को भी इस भाष्य के पढ़ने से अनुपम लाभ होगा।

 

निरुक्तं श्रोत्रमुच्‍यते

पुस्तक का नाम – निरुक्त शास्त्रम्
लेखक –भगवतदत्त जी 
शिक्षा शास्त्रों और चरणव्यूह में निरुक्त को वेदों का श्रोत कहा गया है | महर्षि यास्क ने वेद मन्त्रो में आये शब्दों का संग्रह कर उनके पर्याय लिख निघंटु नामक कोश रचा उसी कोष की व्याख्या निरुक्त है | यह यास्कीय निरुक्त का हिंदी भाषानुवाद और भाष्य है | इस भाष्य में आचार्य यास्क के दृष्टिकोण को यथार्थ रूप में प्रकट करा है | साथ ही पंडित भगवत्त दत्त जी ने ईसाई यहूदी गुट की दूरभिसन्धियो और उनके भारतीय अनुयायियों जैसे बट कृष्ण घोष , वि. काशीनाथ राजवाड़े आदि के निरुक्त विषयक मिथ्या कथनों का निराकरण किया है | वैदिक शोध में लगे विद्वानों और वेदांगो के अध्येता छात्रो को इस भाष्य के पढने से अनुपम लाभ होगा | आशा है वैदिक वांग्मय प्रेमी इससे यथोचित लाभ प्राप्त करेंगे |

निरुक्तम् – शब्‍दव्‍युत्‍पत्ति: ।

पुस्तक को प्राप्त करने हेत

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