Vedrishi

संस्कृत स्वयं शिक्षक

Sanskrit Svayam Shikshak

175.00

Out of stock

Subject: Sanskrit Learning
Edition: NULL
Publishing Year: NULL
SKU #NULL
ISBN : 9788170000000
Packing: NULL
Pages: NULL
BindingPaperback
Dimensions: NULL
Weight: NULLgm

संस्कृत स्वयं शिक्षक 
 

लेखक- श्रीपाद दामोदर सातवलेकर

बिना किसी की सहायता के हिंदी जानने वा​​ला व्यक्ति इस पुस्तक को पढ़ने से संस्कृत भाषा का ज्ञान प्राप्त कर सकता है |
दैनिक उपयोगी वाक्यों के अभ्यास से रुचिकर ढंग से संस्कृत सिखाने का प्रयास किया गया है |
पुस्तक के उत्तरार्ध में पंचतंत्र की सरल एवम् नीति प्रद कथाओं तथा महाभारत के श्लोकों द्वारा संस्कृत का अध्ययन अध्येता को सोत्साह प्रवृत करता है |

इस पुस्तक के माध्यम से कम समय में ही अध्यक्षता संस्कृत भाषा की पात्रता प्राप्त कर सकता है |

 

 ग्रंथ परिचय https://vedrishi.com/wp-content/uploads/2023/09/2600.png
इस पुस्तक का नाम संस्कृत स्वयं – शिक्षकहै और जो अर्थ इस नाम से विदित होता है वही इसका कार्य है । किसी पंडित की सहायता के बिना हिन्दी जानने वाला व्यक्ति इस पुस्तक के पढ़ने से संस्कृत भाषा का ज्ञान प्राप्त कर सकता है । जो देवनागरी अक्षर नहीं जानते , उनको उचित है कि पहले देवनागरी पढ़कर फिर पुस्तक को पढ़ें । देवनागरी अक्षरों को जाने बिना संस्कृत जानना कठिन है । बहुत से लोग यह समझते हैं कि संस्कृत भाषा बहुत कठिन है , अनेक वर्ष प्रयत्न करने से ही उसका ज्ञान हो सकता है । परन्तु वास्तव में विचार किया जाए तो यह भ्रम – मात्र है । संस्कृत भाषा नियमबद्ध तथा स्वभावसिद्ध होने के कारण सब वर्तमान भाषाओं से सुगम है । मैं यह कह सकता हूँ कि अंग्रेज़ी भाषा संस्कृत भाषा से दस गुना कठिन है । मैंने वर्षों के अनुभव से यह जाना है कि संस्कृत भाषा अत्यंत सुगम रीति से पढ़ाई जा सकती है और व्यावहारिक वार्तालाप तथा रामायण – महाभारतादि पुस्तकों का अध्ययन करने के लिए जितना संस्कृत का ज्ञान चाहिए , उतना प्रतिदिन घंटा – आधा – घंटा अभ्यास करने से एक वर्ष की अवधि में अच्छी प्रकार प्राप्त हो सकता है , यह मेरी कोरी कल्पना नहीं , परंतु अनुभव की हुई बात है । इसी कारण संस्कृत – जिज्ञासु सर्वसाधारण जनता के सम्मुख उसी अनुभव से प्राप्त अपनी विशिष्ट पद्धति को इस पुस्तक द्वारा रखना चाहता हूँ ।

हिन्दी के कई वाक्य इस पुस्तक में भाषा की दृष्टि से कुछ विरुद्ध पाए जाएँगे , परन्तु वे उस प्रकार इसलिए लिखे गए हैं कि वे संस्कृत वाक्य में प्रयुक्त शब्दों के क्रम के अनुकूल हों । किसी – किसी स्थान पर संस्कृत के शब्दों का प्रयोग भी उसके नियमों के अनुसार नहीं लिखा है तथा शब्दों की संधि कहीं भी नहीं की गई है । यह सब इसलिए किया गया है कि पाठकों को भी सुभीता हो और उनका संस्कृत में प्रवेश सुगमतापूर्वक हो सके । पाठक यह भी देखेंगे कि जो भाषा की शैली की न्यूनता पहले पाठों में है , वह आगे के पाठों में नहीं है । भाषा – शैली की कुछ न्यूनता सुगमता के लिए जान – बूझकर रखी गई है , इसलिए पाठक उसकी ओर ध्यान न देकर अपना अभ्यास जारी रखें , ताकि संस्कृत – मंदिर में उनका प्रवेश भली – भाँति हो सके ।

पाठकों को उचित है कि वे न्यून – से – न्यून प्रतिदिन एक घंटा इस पुस्तक का अध्ययन किया करें और जो – जो शब्द आएँ उनका प्रयोग बिना किसी संकोच के करने का यत्न करें । इससे उनकी उन्नति होती रहेगी ।

जिस रीति का अवलम्बन इस पुस्तक में किया गया है , वह न केवल सुगम है , परन्तु स्वाभाविक भी है , और इस कारण इस रीति से अल्प काल में और थोड़े – से परिश्रम से बहुत लाभ होगा ।

यह में निश्चयपूर्वक कह सकता हूँ कि प्रतिदिन एक घंटा प्रयत्न करने से एक वर्ष के अन्दर इस पुस्तक की पद्धति से व्यावहारिक संस्कृत भाषा का ज्ञान हो सकता है । परन्तु पाठकों को यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि केवल उत्तम शैली से ही काम नहीं चलेगा , पाठकों का यह कर्तव्य होगा कि वे प्रतिदिन पर्याप्त और निश्चित समय इस कार्य के लिए अवश्य लगाया करें , नहीं तो कोई पुस्तक कितनी ही अच्छी क्यों न हो , बिना प्रयत्न किए पाठक उससे पूरा लाभ नहीं उठा सकते ।

https://vedrishi.com/wp-content/uploads/2023/09/2600.pngअभ्यास की पद्धति 
( 1 )
प्रथम पाठ तक जो कुछ लिखा है , उसे अच्छी प्रकार पढ़िए । सब ठीक से समझने के पश्चात् प्रथम पाठ को पढ़ना प्रारम्भ कीजिए । 
( 2 )
हर एक पाठ पहले सम्पूर्ण पढ़ना चाहिए , फिर उसको क्रमशः स्मरण करना चाहिए , हर एक पाठ को कम – से – कम दस बार पढ़ना चाहिए । 
( 3 )
हर एक पाठ में जो – जो संस्कृत वाक्य हैं , उनको कंठस्थ करना चाहिए तथा जिन – जिन शब्दों के रूप दिए हैं , उनको स्मरण करके , उनके समान जो शब्द दिए हों , उन शब्दों के रूप वैसे ही बनाने का यत्न करना चाहिए । 
( 4 )
जहाँ परीक्षा के प्रश्न दिए हों , वहाँ उनका उत्तर दिए बिना आगे नहीं बढ़ना चाहिए । यदि प्रश्नों का उत्तर देना कठिन हो , तो पूर्व पाठ दुबारा पढ़ना चाहिए । प्रश्नों का झट उत्तर न दे सकने का यही मतलब है कि पूर्व पाठ ठीक प्रकार से तैयार नहीं हुए । 
( 5 )
जहाँ दुबारा पढ़ने की सूचना दी है , वहाँ अवश्य दुबारा पढ़ना चाहिए । 
( 6 )
यदि दो विद्यार्थी साथ – साथ अभ्यास करेंगे और परस्पर प्रश्नोत्तर करके एक – दूसरे को मदद देंगे तो अभ्यास बहुत शीघ्र हो सकेगा । 
( 7 )
यह पुस्तक तीन महीनों के अभ्यास के लिए है । इसलिए पाठकों को चाहिए कि वे समय के अन्दर पुस्तक समाप्त करें । जो पाठक अधिक समय लेना चाहे , वे ले सकते हैं । यह पुस्तक अच्छी प्रकार स्मरण होने के पश्चात् ही दूसरी पुस्तक प्रारम्भ करनी चाहिए ।

( यह पुस्तक आप https://www.vedrishi.com/ से घर बेठे प्राप्त कर सकते है)

Reviews

There are no reviews yet.

Register

A link to set a new password will be sent to your email address.

Your personal data will be used to support your experience throughout this website, to manage access to your account, and for other purposes described in our privacy policy.

Lost Password

Lost your password? Please enter your username or email address. You will receive a link to create a new password via email.

Close
Close
Shopping cart
Close
Wishlist