पुस्तक का नाम – संस्कृत वाङ्मय में वैदिक ऋषिकाएँ
लेखिका का नाम – डॉ. ज्योत्स्ना वशिष्ठ
संस्कृत साहित्य के प्रत्येक युग में साहित्य सर्जना के अन्तर्गत विदूषी महिलाओं का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। ऋग्वेद काल में स्त्रियों की शिक्षा पर विशेष महत्त्व दिया जाता था। अनेक विदूषियां ऐसी हुई हैं जिन्होनें न केवल अध्ययन किया, अपितु मन्त्रों का दर्शन भी किया। रोमशा, लोपमुद्रा, विश्ववारा, शाश्वती, अपाला, सिकता-निवावरी आदि विभिन्न वैदिक ऋषिकाएँ तथा उपनिषद कालीन मैत्रेयी तथा गार्गी आदि अनेक ऋषिकाएं हुई हैं। लौकिक संस्कृत काल में फल्गुहस्तिनी, विकटनितम्बा, विज्जिका, सरस्वती आदि कवियत्रियाँ तथा आधुनिक काल की विदुषियाँ पण्डिता क्षमाराव, मनोरमा तिवारी आदि विदूषियों का उल्लेख मिलता है।
अतः महिला काव्य सर्जन की अजस्त्रधारा प्राचीन काल से अर्वाचीन तक निरन्तर प्रवाहित हो रही है। महिला द्वारा रचित काव्य आज या तो उपलब्ध नहीं हैं या उपलब्ध भी है तो प्रकाशित नहीं है। महिला कवियित्री का साहित्य में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। इसी चिन्तन में “संस्कृत वाङ्मय में वैदिक ऋषिकाएँ” इस पुस्तक में विस्तार से प्रातिपादन करके एक मौलिक प्रयास किया गया है। विषय विवेचन की दृष्टि से इसे तीन खण्डों में विभाजित किया गया है।
प्रथम खण्ड़ के अन्तर्गत वैदिक कालीन, ब्राह्मण एवं उपनिषद युग की ऋषिकाओं का उल्लेख है। जिसमें ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद आदि वेदों की मंत्र दृष्टा ऋषिकाओं का परिचय है।
द्वितीय खण्ड़ में – प्राचीन, लौकिक-संस्कृत भाषा की विदूषियों, संस्कृत महाकाव्य की विदूषियों का उल्लेख किया है।
तृतीय खण्ड़ में अर्वाचीन काल की विदूषियों का वर्णन किया गया है।
आशा है कि इस पुस्तक में संस्कृत शोधकर्ताओं में न केवल प्राचीन व मध्यकालीन महिला कवियों की काव्य रचना के गहन अध्ययन की प्रवृति होगी, अपितु बीसवीं शती की महिला संस्कृत साहित्यकारों की पूर्वोत्तर काव्य विधाओं में की गई काव्य सर्जना के अन्वेषण, अध्ययन और समीक्षण करने में रूचि उत्पन्न होगी।
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