Vedrishi

श्रीमदभगवदगीता सिद्धांत

Shrimadbhagwadgita Siddhant

150.00

302 in stock

Subject: Garbh Vigyan
Edition: 2021
Publishing Year: 2021
BindingHARDCOVER
Dimensions: NULL
Weight: NULLgm

भारतवर्ष में शताब्दियों से श्रीमद्भगवद्गीता का ऐसी महान् महिमा, श्रद्धा तथा सम्मान से पठन-पाठन क्यों है? बड़े-बड़े पाश्चात्य विद्वान् इसकी मुक्तकण्ठ से क्यों प्रशंसा करते हैं? समझनेवाले सभी देशों के मतों के, सम्प्रदायों और सभी विचारों के मनुष्यों की इसकी ओर इतनी अभिरुचि क्यों है?

इसका अनुवाद संसार की प्रायशः सभी मुख्य-मुख्य भाषाओं में क्यों किया गया है? इसका एकमात्र उत्तर यही है कि यह ग्रन्थ आर्यधर्म के मार्मिक तत्वों का भण्डार है। यह ग्रन्थ दार्शनिक विचारों का गूढ़ से गूढ़ रहस्य तथा विषयों का पुंज है। यह सार्वभौम नैतिक सिद्धान्तों का कोष है। साम्प्रदायिक भेदभावों से रहित एक निष्पक्ष ज्ञान विषयक गुटिका है।

इसमें धार्मिक, दार्शनिक, वैज्ञानिक, नैतिक, सामाजिक तथा आर्थिक आदि के जटिल प्रश्नों को बड़ी सुगमता से हल गया किया है। यह अतुल, उच्च विचारों की तालिका । मनुष्य का जीवनोद्देश्य और कर्तव्य-दर्शन का अतुलनीय साधन है। वेद, उपनिषद् एवं धर्मशास्त्रादि, दार्शनिक शास्त्रों के मूलाधार सिद्धान्तों की अटल नींव है। इसमें मार्मिक, निष्पक्ष तथा सार्वभौम सिद्धान्तों का है

 

इस तरह वर्णन है कि सभी सम्प्रदाय के लोग इसे ज्ञान का कोष मानकर इसका सम्मान करते हैं- मनोयोग से इसका अध्ययन-अध्यापन करते हैं। 5000 वर्षों से यह – सत्य प्रतिभाशाली सिद्धान्तों का भण्डार तथा आर्य जाति का गौरवग्रन्थ अपनी पूर्ववत् सफलता के साथ आज भी सम्पूर्ण मनुष्य जाति के व्यथित हृदयों को उसी तरह सान्त्वना दे रहा है, जैसे युद्धभूमि (कुरुक्षेत्र) में निराश तथा तिमिराच्छन्न अर्जुन को कर्म करने की प्रेरणारूपी ज्योति के प्रकाश से उसके अन्तःकरण को प्रकाशित कर युद्ध के लिए सन्नद्ध कर दिया था। यह ग्रन्थ असमर्थ को सामर्थ्यवान् बनाकर उसमें जीवन-संचार करने वाली संजीवनी बूटी के समान है। निःसन्देह इस सिद्धान्त-ग्रन्थ का जैसा आदर, सम्मान और गुणगान प्राचीनकाल से होता आ रहा है, वैसा ही भविष्य में भी होता रहेगा।

> संसार भर के तत्ववेत्ता ज्ञानी संसारोत्पत्ति के समय से अब तक जिन जटिल सिद्धान्त समस्याओं को सदियों से स्पष्ट करते आ रहे हैं, उनमें तीन समस्यायें अत्यन्त महत्त्वपूर्ण सार्वभौमिक तथा सार्वकालिक हैं। उनके समाधान का प्रयास सर्वधर्मों, शास्त्रों तथा दार्शनिक विचारों के मूल में दृष्टिगोचर होता है। वे जटिल प्रश्न हैं:

ईश्वर क्या है? संसार कैसे उत्पन्न हुआ? जीव क्या है? इन्हीं से सम्बन्ध रखने वाले ये प्रश्न भी स्वाभाविक रूप से उठते हैं कि "ईश्वर और जीव का परस्पर क्या सम्बन्ध है? जीव का उद्देश्य क्या है? मानव के लिए कर्तव्य और अकर्तव्य क्या है? प्राणी सुख-दुःख क्यों भोगता है? उससे छुटकारा भी होता है या नहीं?

इन प्रश्नों के साथ-साथ उन सभी प्रश्नों के उत्तर भी जो मानव जाति के जीवन से जुड़े हैं, वे गीता में जिस विद्वत्ता, स्पष्टता और सफलता से दिये गये हैं, वह कोटि-कोटि कण्ठों से प्रशंसनीय, आदरणीय और आचरणीय है। ऐसे मार्मिक प्रश्नों के उत्तर और भी ग्रन्थों में मिल जाते हैं, परन्तु उनका प्रभाव संसार के विद्वानों से लेकर अल्पबुद्धि मनुष्यों पर वैसा एकसमान प्रभाव नहीं पड़ता, जैसा गीता द्वारा पड़ता है।

(1) ईश्वर के विषय में गीता का सिद्धान्त यह है कि ईश्वर निर्गुण तथा सगुण दोनों है। संसार में चित और अचित दो प्रकार की वस्तुयें मानी जाती हैं। चित् को चैतन्य कहा जाता है और अचित् की श्रेणी में जड़ वस्तुएँ आती हैं।

पृथिवी तथा समुद्र आदि अचित् (जड़) और नाशवान् हैं। मनुष्य का पार्थिव (पंचभौतिक) शरीर भी जड़ है, परन्तु जिनमें चलने, हिलने, बढ़ने तथा घटने की अर्थात् कार्य करने की शक्ति होती है, वे जीव हैं। जिस आदि शक्ति से प्राणी चेतनरूप कहलाते हैं, उसका मूलाधार एकमात्र अव्यय, अमर और निर्विकल्प परमार्थ तत्व वही निर्गुण ईश्वर है। वह इस ब्रह्माड का आदि कारण है। उससे कोई महान् नहीं है। वह सर्वाधार है तथा सृष्टि में ओतप्रोत है। वही जल का जलत्व, सूर्य-चन्द्र की ज्योति और वेदों का पवित्र शब्द एक निरंजन ओङ्कार है। वही पाँचों तत्वों का आधार है। उसके भाग नहीं हो सकते। वह अपनी योगमाया के आश्रित रहता है। वह किसी के लिये भी दृश्य नहीं होता है। वही सर्वदेवों (मूल प्रकृति), सर्वभूतों (विकृति) तथा सर्वयज्ञों (परिणामों) का ज्ञाता और अधिष्ठाता है। वह सूक्ष्म से सूक्ष्म और बड़े से बड़ा है। वह प्रत्येक वस्तु मात्र में आदि, मध्य और अन्त तक व्याप्त है। यह गीता का निर्गुण ब्रह्मगीत है जो वेदानुकूल अटल और अक्षुण्ण है। जो सब संसार का स्रष्टा, उपदेष्टा, भर्ता, भोक्ता और प्रलयकर्ता है, वही अनादि तथा अनन्त चराचर का पोषक, तीनों लोकों और अवस्थाओं में व्यापक सगुण ईश्वर है।

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