Vedrishi

स्वामी दयानन्द सरस्वती का वैदिक दर्शन

Swami Dayanand Sarswati Ka Vedic Darshan

225.00

Subject: About Dayanand Sarswati’s Life and Thoughts
Edition: NULL
Publishing Year: NULL
SKU #NULL
ISBN : NULL
Packing: NULL
Pages: NULL
BindingHard Cover
Dimensions: 21 cms x 14 cms
Weight: NULLgm

पुस्तक का नाम – स्वामी दयानन्द का वैदिक दर्शन

अनुवादक का नाम – ड़ॉ. स्वरुपचन्द्र दीपक

 

महर्षि दयानन्द जी एक युगपुरुष थे। सत्य, विद्या, योग, तप, ईश्वरभक्ति, देशभक्ति, प्रेम, सेवा, धर्म और दर्शन की दृष्टि से वे किसी से कम न थे। उनके दर्शन पर स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती जी नें एक अंग्रेजी पुस्तक “ए क्रिटिकल स्टडी ऑफ द फिलॉसफी ऑफ दयानन्द” लिखी थी। वह पुस्तक ज्ञान की दर्जनों विधाओं को आत्मसात् करती एक मूल्यवान् पुस्तक है। उसमें वेद, विज्ञान, उपनिषद् एवं दर्शनशास्त्र के गम्भीरतम तत्त्व अनुस्यूत हैं। इस पुस्तक का अथक परिश्रम से हिन्दी अनुवाद डॉ. रुपचन्द्र दीपक जी ने किया ताकि इस पुस्तक का लाभ जनसामान्य भी उठा सके।

 

प्रस्तुत पुस्तक स्वामी सत्यप्रकाश जी की पुस्तक का हिन्दी रुपान्तरण है। इस पुस्तक में जो-जो विषय सम्मलित किये गये हैं उनका संक्षिप्त परिचय निम्न प्रकार है –

इस पुस्तक में अध्यायों का 15 भागों में विभाजन किया गया है।

प्रथम अध्याय आप्त जीवन की पृष्ठभूमि के नाम से है। इसमें स्वामी दयानन्द जी के जीवन चरित्र का वर्णन किया गया है।

द्वितीय अध्याय वैदिक दर्शन के नाम से है। इसमें वेदमन्त्रों का अन्तःभाव प्रकट किया गया है। स्वामी दयानन्द प्रतिपादित एकेश्वरवाद की व्याख्या की गई है। एकतत्त्ववाद और त्रेतवाद में अन्तर स्पष्ट किया है। सृष्टि उत्पत्ति और मोक्ष के स्वरुप को इस अध्याय में समझाया गया है।

तृतीय अध्याय भारतीय षड्दर्शनों में समन्वय के नाम से है। इसमें स्वामी दयानन्द जी का दर्शनों पर दृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया है।

चतुर्थ अध्याय दयानन्द की ज्ञानमीमांसा नाम से है। इसमें बौद्ध, जैन, रामानुज, शङ्कर आदि के दर्शनों की समीक्षा की गई है तथा उनकी स्वामी दयानन्द जी के दर्शन से तुलना की गई है।

पञ्चम अध्याय ईश्वर मीमांसा पर है। इसमें नास्तिकों की युक्तियों का खण्डन किया गया है।

षष्ठं अध्याय जीवात्मा के विषय पर है। इसमें जीवों के अनेकत्व का प्रतिपादन किया है तथा जीवधारियों की कृत्रिम उत्पत्ति के प्रयासों का खड़न किया गया है।

सप्तं अध्याय कार्य कारण सिद्धान्त पर आधारित है। कार्य-कारण सिद्धान्त की इसमें दार्शनिक मीमांसा की गई है।

अष्टम अध्याय में निमित्त और उपादान कारणों की समीक्षा की गई है तथा इस सम्बन्ध में स्वामी दयानन्द जी का मन्त्वय दर्शाया गया है।

नवम अध्याय मूल प्रकृति पर है। इस अध्याय में दर्शनों में प्रकृति और शंकराचार्य के मत में प्रकृति और स्वामी दयानन्द के मत में प्रकृति के उपादान, मूलकारणों पर समीक्षा की गई है।

दशम अध्याय में मन, चित्त, चेतना, योग आदि सूक्ष्म विषयों का विवेचन प्रस्तुत किया गया है।

एकादश अध्याय में पुनर्जन्म मीमांसा की गई है। जिसके अन्तर्गत जैन-बौद्ध के पुनर्जन्म विषयक मान्यताओं की समीक्षा की गई है। स्वामी दयानन्द जी के पारलौकिक सिद्धान्तों का वर्णन किया गया है।

द्वादश अध्याय में मोक्ष के स्वरुप और मोक्ष के पश्चात् पुनरावर्ती पर विचार प्रकट किया गया है।

त्रयोदश और चतुर्दश अध्याय में जीवन के प्रतिदृष्टिकोँण और आचार शास्त्र के सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया है।

पञ्चदश अध्याय में स्वामी दयानन्द जी के मन्तव्य-अमन्तव्य को प्रस्तित किया गया है।

 

इस कृति के द्वारा वैदिक दार्शनिक सिद्धान्तों का पाठकों को पूर्ण रस प्राप्त करना चाहिए।

स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती द्वारा अंग्रेजी में लिखित पुस्तक । A Critical Study of the Philosophy of Dayanand ज्ञान की दर्जन विधाओं को आत्मसात करती एक मूल्यवान पुस्तक है। इसमें वेद, विज्ञान, उपनिषद् एवं दर्शन शास्त्र गम्भीरतम तत्त्व अनुस्यूत हैं। विद्वानों को इसके अनुवाद की दशको से अपेक्षा थी।

महर्षि दयानन्द के दर्शन पर स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती द्वारा लिखित उक्त पुस्तक अंग्रेजी में लिखी गई प्रथम मौलिक पुस्तक थी।
किसी लेखक को पढ़ने का पूर्ण रस तो उसकी मूल कृति में ही मिलता है।
उसकी सामग्री पाठकों को उनकी भाषा में मिल सके, अनुवादक का यही प्रयास रहा है।

Dimensions2114 cm

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