Vedrishi

स्वतन्त्रयोत्तर भारत में संस्कृत की विकास यात्रा

Swatantrayottar bharat me sanskrit kee vikas Yatra

1,100.00

Subject: Vedic Nityakarma Evam Panchmahayagya Vidhi
Edition: 2022
Publishing Year: 2011
ISBN : 9789380000000
Packing: 5
Pages: 850
BindingHardcover
Dimensions: 14X22X6
Weight: 2000gm

हम स्वतन्त्र भारत के लोग आज आजादी के ७५ वें वर्ष पर 'अमृत महोत्सव' को सोल्लास मना रहे हैं। यह महोत्सव अपने अतीत के आलोक में वर्तमान और भविष्य को सर्वतोभावेन सृदृढ, समर्थ और सुन्दर बनाने का अवसर प्रदान करता है । 'यद्यत्परवशं कर्म तत्तद्यत्नेन वर्जयेत् । यद्यदात्मवशन्तु स्यात् तत्सेवेत प्रयत्नतः। | अपि च 'सर्वं परवशं दुःखं सर्वमात्मवशं सुखम्' अर्थात् आत्मनिर्भरता के लिये सब कुछ आत्म नियन्त्रित होना चहिए कदाचिद् इसी भाव को हृदयस्थ कर हमारे पूर्वजों, भारत माता के वीरपुत्रों ने अनेक बलिदान, त्याग और समर्पण से सब कुछ अपने अधीन वाली जहाँ की सभी सुख सुविधाएँ अपनी हों ऐसी स्वतन्त्रता हमें दिलायी। उन सभी अमर सपूतों को विनम्र श्रद्धाञ्जलि प्रदान करने, उन पर अभिमान करने, उन्हें स्मरण, वन्दन और अभिनन्दन करने हेतु भारत के यशस्वी प्रधानमन्त्री माननीय श्री नरेन्द्र मोदी जी ने ‘अमृत महोत्सव' मनाने का आह्वान किया है । यह महोत्सव हमारे लिये अमृत काल है। अच्छे दिनों की संकल्पना, आत्मनिर्भरता पूर्वक सबका साथ, सबका योगदान, सबका विकास ही अमृत महोत्सव है यह सन्देश गीता में भगवान् श्रीकृष्ण ने ही दिया है 'परस्परं भावयन्तः श्रेयः परमवाप्स्यथ’। अतः आत्मनिर्भर बनें, परस्पर सहयोग और विश्वास की भावना रखें। यह भी स्मरण रखना है कि अमृत काल के इस अवसर के लिये जिन भारत माता के वीर सपूतों ने सर्वस्व न्योछावर किया उनके प्रति सगर्व, साभिमान विनम्र श्रद्धा सुमन, श्रेयस् पुरुषार्थ प्रस्तुत करना है।
स्वतन्त्रता के बाद अब तक बहुत ऐसे कार्य हुए जिससे हम भारतीय गौरवान्वित हैं। विशेष रूप से हमारी भारतीय ज्ञान – परम्परा समाज के उत्कर्ष और राष्ट्र की समृद्धि के लिये समर्पित है। यह सुविदित है कि विश्व में भारत ही एक ऐसा राष्ट्र है जिसे विश्वगुरु कहा गया है । इस विश्वगुरुता और भारतीय ज्ञान-विज्ञान की परम्परा का मूल संस्कृत है। एतद्विषयक बहुत सी ठयाँ होती रहती हैं, विभिन्न पत्र-पत्रिकाएँ प्रकाशित हो रही हैं, ग्रन्थ लिखे जा रहे हैं। शोध किये जा रहे हैं। संस्कृत शिक्षा प्राप्त करने हेतु पारम्परिक और आधुनिक इत्युभय रूप शिक्षण संस्थाओं की व्यवस्था है। 

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