Vedrishi

वैशेषिक दर्शन

Vaisheshik Darshan

375.00

Subject: Philosophy
Edition: 2021
Publishing Year: 2021
Pages: 455
BindingHard Cover
Dimensions: 14X22X4
Weight: 655gm

ग्रन्थ का नाम वैशेषिक दर्शन

भाष्यकार आचार्य उदयवीर शास्त्री

वैशेषिक दर्शन के प्रणेता महर्षि कणाद हैं। इस ग्रन्थ में दस अध्याय हैं। प्रत्येक अध्याय में दो-दो आह्निक और 370 सूत्र है। इस दर्शन का प्रमुख उद्देश्य निःश्रेयस की प्राप्ति है।

वैशेषिक का अर्थ है – “विशेषं पदार्थमधिकृत्य कृतं शास्त्रं वैशेषिकम्”  अर्थात् विशेष नामक पदार्थ को मूल मानकर प्रवृत्त होने के कारण इस शास्त्र का नाम वैशेषिक है।

यह छह पदार्थ द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय मानता है।

द्रव्यों की संख्या नौ मानता है पृथिवी, जल, तेज, वायु, आकाश, काल, दिशा, आत्मा और मन।

चौबीस गुण स्पर्श, रस, रूप, गन्ध, शब्द, संख्या, विभाग, संयोग, परिणाम, पार्थक्य, परत्व, अपरत्व, बुद्धि, सुःख, दुःख, इच्छा, द्वेष, धर्म, अधर्म, प्रयत्न, संस्कार, स्नेह, गुरुत्व और द्रव्यत्व हैं।

कर्मों के पाँच प्रकार उत्क्षेपण, अवक्षेपण, आकुञ्चन, प्रसारण और गमन माने गये हैं।

सामान्य दो प्रकार का होता है सत्ता सामान्य और विशिष्ट सामान्य, ऐसा इस दर्शन में माना गया है।

इस दर्शन के मूलभूत सिद्धान्त निम्न हैं

परमाणु जगत का मूल उपादान कारण परमाणु माना है और परमाणुओं के संयोग से अनेक वस्तुएँ बनती हैं।

अनेकात्मवाद यह दर्शन जीवात्माओं को अनेक मानता है तथा कर्मफल भोग के लिए अलग-अलग शरीर मानता है।

असत्कार्यवाद इस दर्शन का सिद्धान्त है कि कारण से कार्य होता है। कारण नित्य हैं

और कार्य अनित्य।

मोक्षवाद आवागमन के चक्र से मुक्त हो, जीव का परम् लक्ष्य मोक्ष मानता है।

इस दर्शन में भूकम्प आना, वर्षा होना, चुम्बक में गति, गुरुत्वाकर्षण विज्ञान, ध्वनि तरंगे आदि के विषय में विवेचना प्रस्तुत की गई है।

प्रस्तुत भाष्य आचार्य श्री उदयवीर शास्त्री जी द्वारा किया गया है। यह किसी मध्यकालीन भाष्यकार का अनुसरण नहीं करता है। इस भाष्य में शास्त्रीय सिद्धान्तों को यथामति समझकर व आत्मसात् कर सूत्रपदों के अनुसार प्रसंग की उपेक्षा व अवेहलना न करते हुए सैद्धान्तिक परम्परा का पालन करने का यथाशक्ति ध्यान रखा गया है। सूत्रव्याख्या में सावधानीपूर्वक उस मार्ग को अपनाया गया है, जिसके अनुसार सूत्रकार द्वारा प्रयुक्त धर्मपद की शास्त्रीय सिद्धान्तों के अनुसार यथार्थ व्याख्या का उद्भावन सम्भव हो।

यह भाष्य आर्यभाषा में होने के कारण संस्कृतानभिज्ञ लोगों के लिए भी लाभकारी है।

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