प्राक्कथन-वेदांत दर्शन जिसका कि दूसरा नाम शारीरिक सूत्र है, अनेक विद्वनमंडल के शिरोमणि महानुभावों द्वारा भाषा टीका जी से भूषित है। श्रीमद्भागवत गीता और उपनिषदों के साथ यह दर्शन प्रस्थानत्रई को बनाता है । उपनिषदरहस्य विस्फुट करने के लिए श्रीमान व्यास मुनि जी ने यह शास्त्र रचा है, यह प्रसिद्ध है। बोधायन मुनि , द्रमिड्टक आचार्यों ने भी इसकी व्याख्या की है, श्री रामानुजभाष्य से ज्ञात होता है। उक्त भाष्य काल कराल में चले गए। इस समय उपलब्ध भाष्यो में शांकरभाष्य अपेक्षाकृत प्राचीन है, उसके पीछे रामानुजाचार्य आदिकृत भाष्य हुए हैं। शंकराचार्य महान विद्वान यशोभाक् सुने जाते हैं ,उनका भाषा अद्वैतपरक है, ब्रह्म के अतिरिक्त कोई भी वस्तु सत्तात्मक नहीं है यह उनका सिद्धांत है।जीव और जगत की परमार्थिक सत्ता नहीं है, अतएव उनके अनुयायियों द्वारा पुनः पुनः रट लगाई जाती है ॓ब्रह्म सत्यं जगत मिथ्या॔ इस सिद्धांत को रामानुजाचार्य नहीं मानते उनके द्वारा यह प्रबल रूप से निराकृत किया जाता है उनके मत में जीव और जगत मिथ्या असत् या असत्य नहीं है किंतु ब्रह्म के देव रूप के देह रूप जीव और जगत् हैं ,उनसे विशिष्ट ब्रह्म हैअतएव उनका मत विशिष्टाद्वेत नाम से कहा जाता है, शंकराचार्य के मत में ब्रह्म ज्ञान वाला नही किंतु ज्ञान रूप है, रामानुज मतवाले ब्रह्म को चेतन = चेतना वाला ज्ञान वाला मानते हैं। उन दोनों का यह एक दूसरे से महान भेद विरोध है। रामानुजाचार्य विष्णु के उपासक हैं अतएव वैष्णव कहे जाते हैं शंकराचार्य बेचना है या शेर हैं शेव है शंकराचार्य वैष्णव हैं या शैव यह शंकराचार्य मतस्थ दक्षिणात्य शिरोमणि विद्वान निश्चय न कर सके । माधवाचार्य ने भी इस दर्शन का भाषण किया है। वह विस्तृत नहीं प्रत्युत अत्यल्प शब्दों में थोड़े आकार में है ,मैं समझता हूं वह उसका पूरक ही है वह भी वैष्णव है वे द्वेतवादी हैं पर रामानुज के भांति विशिष्ट द्वैतवाद को नहीं मानते। शांकरमति अपाणिपाद ,अचक्षु श्रोत्र, ब्रह्म का प्रतिपादन करते है। माधव मतवालों ने उस विषय में उपहास प्रदर्शित किया कि अपाणिपाद ब्रह्म तो पंगु- लंगड़ा टुंडा ,ब्रह्म है, यह आया और अचक्षु श्रोत्र ब्रह्म तो अंधा बहरा है ,ऐसा उपहास पूर्वक आक्षेप है । माध्वसंप्रदायवर्ती जन ब्रह्म को साकार कहते हैं यह विष्णु को ही परम देव मानते हैं वल्लभाचार्य भी भेद वादी हैं वह भी वैष्णव हैं वह अपना सिद्धांतशुद्धाद्वेत कहते हैं ब्रह्म के अतिरिक्त सभी जीव गोपिकाएं हैं ऐसा उनके द्वारा प्रचार किया जाता है निंबार्काचार्य भी वैष्णव हैं वे भेदाभेद के संस्थापक है जीवो और जगत से ब्रह्म भिन्न भी है।
Vedant Darshan
ब्रह्मसूत्र (वेदांत दर्शन)
Vedant Darshan
₹225.00
Author: Swami Brahmamuni Parivrajak
Subject: Darshan
Edition: 2018
Publishing Year: 2018
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ISBN : NULL
Packing: Paperback
Pages: 318
BindingPaperback
Dimensions: 14X22X4
Weight: 350gm
Description
Additional information
Weight | 350 g |
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