Vedrishi

वैदिक इतिहासार्थ निर्णय

Vedic Itihasarth Nirnaya

300.00

SKU field_64eda13e688c9 Category puneet.trehan
Subject: Ancient Indian Study about Vedas
Edition: NULL
Publishing Year: NULL
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ISBN : 9780990000000
Packing: NULL
Pages: NULL
BindingHard Cover
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पुस्तक का नाम वैदिक-इतिहासार्थ-निर्णय

लेखक का नाम पं.शिवशङ्कर शर्मा काव्यतीर्थ

 

प्राचीनकाल से भारतीय जनमानस वेदों को ईश्वरकृत मानता है। ईश्वरकृत होने से वेदों में अनित्य इतिहास नहीं हो सकता है। भारतीय परम्परा की इस आस्था पर पाश्चात्य और वामपंथी लेखकों ने कुठाराघात किया और व्यापक स्तर पर यह प्रचारित किया कि वेद ऋषियों द्वारा रचित है। इसका कारण है कि वेदों से मिलते-जुलते नामों का पुराणादि में होना और दूसरा सायणादि भाष्यकारों का वेदों में अनित्य इतिहास का वर्णन करना यद्यपि सायण ने अपनी भाष्यभूमिका में वेदों में किसी भी तरह के अनित्य इतिहास और व्यक्ति विशेष के वर्णन का खंड़न किया है। वेदों में जो व्यक्तियों के तुल्य प्रतीत होने वाले नाम दिखाई देते है वस्तुतः वह किसी व्यक्ति विशेष का नाम न होकर, सामान्य शब्द है। इन्हीं वेदों के इन सामान्य शब्दों से ऋषियों और राजाओं ने अपने नामकरण किये थे। अतः वेद ऋषियों से भी पूर्व में थे और इन्हीं वेदों से ऋषियों के नामकरण हुए है, इसीकारण इतिहास ग्रन्थों के व्यक्तियों के नामों और वेद में दिए शब्दों में समानता दृष्टिगोचर होती है।

 

इस कथन की सम्मति में मनुस्मृति का निम्न प्रमाण देखना चाहिए

सर्वेषां तु नामानि कर्म्माणि च पृथक्-पृथक्।

वेदशब्देभ्य एवादौ पृथक् संस्थाश्च निर्म्ममे।।– मनु. 2.21

सब पदार्थों के नाम, पृथक्-पृथक् कर्म और पृथक्-पृथक् संस्थाएँ हिरण्यगर्भ ने वेदों के शब्दों से ही निर्माण की।

शङ्कराचार्य वेदान्त सूत्र 1.3.30 के भाष्य में कहते है

ऋषीणां नामधेयानि याश्च वेदेषु दृष्टयः।

शर्वर्य्यन्ते प्रसूतानां तान्येवैभ्योददात्यजः।।

प्रलय के अन्त और सृष्टि के आदि में वेदों से ही ब्रह्माजी ऋषियों के नाम रखते हैं और वेदों के जो-जो ऋषि द्रष्टा हुए हैं। इनके नाम भी वेदों से ही स्थिर किये गये हैं।

इस तरह इस विषय में प्राचीन आचार्यों की एक सी ही सम्मति है तब केवल नाम देखने से कैसे कह सकते हैं कि ये नाम इन वसिष्ठादिंको के हैं अर्थात् वेदों में अनित्य इतिहास की कल्पना तक नहीं की जा सकती है। किन्तु फिर भी कई लोग वेदों में से विभिन्न ऐतिहासिक परिकल्पनाओं को दर्शाने लगते है और वेदों पर विभिन्न आरोप भी करने लग जाते है। वेदों में इतिहास सम्बन्धित सभी आरोपों का निराकरण प्रस्तुत पुस्तक वैदिक इतिहासार्थ-निर्णय में किया गया है।

इस पुस्तक में लेखक नें पाश्चात्यों द्वारा स्थापित भ्रान्तियों का सप्रमाण विद्वत्तापूर्ण निराकरण किया है और यह सिद्ध किया है कि वेदों में मानवीय इतिहास एवं भूगोल नहीं है।

उन्होंने तर्क एवं प्रमाणों के आधार पर यह दर्शाया है कि वेदों में कहीं भी जात-पात, मूर्तिपूजा, तीर्थाटन, सतीप्रथा, पशुबलि, अवतारवाद, अनेकेश्वरवाद, षोड़शोपचार एवं नवग्रहादि की पूजा का विधान नहीं है।

सायणादि द्वारा वेदों का जो घृणित एवं अश्लील अर्थ किया गया है उसकी भी महर्षि दयानन्द जी महाराज की मान्यता के आधार पर पं. जी ने सूक्तों की व्याख्या प्रस्तुत की है।

 

वेदों का स्वाध्याय करने वाले व्यक्तियों, शोधकर्त्ताओं और विद्वानों के लिए यह ग्रन्थ अत्यन्त उपयोगी है। पाठकों को इसके स्वाध्याय का लाभ उठाना चाहिए।

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