Vedrishi

वैदिक संध्या

Vedic Sandhya

220.00

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Subject: kashikavritti (Set of 3 Vol.)
Edition: 2010
Publishing Year: 2010
ISBN : 9788170000000
Packing: 1
Pages: 245
BindingPaperback
Dimensions: 14X22X4
Weight: 400gm

स्वभाव से ही मनुष्य विपत्ति में अपने से अधिक सामर्थ्यशाली का आश्रय चाहने वाला होता है। जैसे कोई भी भयभीत बच्चा किसी से भी भयभीत होने पर तुरन्त अपनी माँ की गोद में आकर बैठ जाता है और अपने को सर्वथा सुरक्षित अनुभव करने लगता है। इसी प्रकार संसार में सभी ईश्वरवादी, चाहे वे किसी भी सम्प्रदाय से जुड़े हों, सुख में भले ही न सही, दुःख में तो अपने उपास्य की पूजा करने लग ही जाते हैं, कोई-कोई तो कब्रों से ही अपने दुःख दूर करने की याचना करने लग जाते हैं। जो अनीश्वरवादी हैं और ईश्वर जैसी किसी सत्ता के अस्तित्व पर सदैव अहंकारपूर्वक व्यंग्य करते रहते हैं, वे भी जब किसी विशेष आपत्ति में होते हैं, तब किसी अदृश्य शक्ति से अपने प्राणों की भीख माँगते हुए देखे जा सकते हैं ।

इस प्रकार मनुष्य स्वभाव से आस्तिक ही होता है, परन्तु वह अपने अहंकार वा घोर अज्ञानता के कारण नास्तिकता के दलदल में फँस जाता है और वह इसमें अपना बड़प्पन व प्रगतिशीलता भी समझता है ।

अब यहाँ हम उनकी चर्चा करते हैं, जो स्वयं को ईश्वरवादी कहते हैं। संसार में इनकी ही संख्या अधिक है, भले ही वे भिन्न-भिन्न सम्प्रदायों के अनुयायी क्यों न हों, सबकी पूजा-पद्धतियाँ भिन्न-भिन्न हैं | ईश्वर सम्बन्धी सबकी धारणाएँ भी भिन्न-भिन्न हैं और इसी कारण उनकी पूजा-पद्धतियाँ भी भिन्न-भिन्न हैं। ऐसा होने के कारण सभी ईश्वरवादी एक दूसरे के ऐसे शत्रु बने हुए हैं, जैसे कि अनीश्वरवादी भी एक दूसरे के शत्रु नहीं हैं । इतिहास इस बात का साक्षी है कि सम्पूर्ण संसार में धर्म और अध्यात्म के नाम पर जो हिंसा वा रक्तपात हुआ है, जो घृणा और द्वेष का वातावरण बनाया गया है, उतना अन्य किसी कारण से नहीं हुआ ।

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