Vedrishi

वैदिक वांग्मय में प्रकृति पूजा

Vedic Vangmay Men Prakruti Pooja

450.00

Category puneet.trehan
Subject: Atharvved, Ishwar Granth, Vedas, Ved, Gujarati ved
Edition: 2015
Pages: 177
BindingPaperback
Dimensions: NULL
Weight: NULLgm

प्रकृति पूजा हमारी अतिशय उदार संस्कृति की द्योतक है। अतः ऋत, स्वस्ति, शान्ति, तप, त्याग, सर्वभूतहित एवं लोक-मांगल्य की भावना हमारी महनीय संस्कृति के अमर उद्घोष हैं। ईशावास्योपनिषद् का प्रथम मन्त्र हमारी सम्पूर्ण संस्कृति का महावाक्य है-"तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा।" इस लोक मंगल की भावना से पूरित हमारी संस्कृति जीवन के त्याग पक्ष पर आधृत है। इसलिए प्रकृति की मनसा पूजा के बिना भारतीय संस्कृति का ज्ञान दिवा स्वप्न है। अतः वेदस्थ प्रकृति ऋतंवृहत् का भास्वर रूप अंकित करते हुए धरती से स्वर्ग की ओर दिव्य चेतना के साथ उद्गमन करती हुई चित्ताकर्षक एवं रमणीय दिखाई देती है। सम्पूर्ण प्रकृति के द्वार सभी के लिए सदैव ही खुले हुए है। हमारी आरण्यक संस्कृति प्रकृति की कमनीय क्रोड में ही पुष्पित एवं पल्लवित हुई। मन्त्रद्रष्टा ऋषियों ने मानव जीवन को स्वस्थ रखने के उद्देश्य से प्रकृति प्रदत्त वनस्पतियों, जड़ी-बूटियों पर अनुसंधान करते हुए अमूल्य योगदान दिया। मानव जीवन के कल्याणार्थ वैदिक कालीन समाज में न केवल पर्यावरणीय तत्त्वों के प्रति सजगता थी, वरन् उसकी रक्षा के प्रति तत्परता तथा महत्त्व के

प्रति मान्यता भी विद्यमान थी। भूमि को ईश्वर का प्रतिरूप मानकर उसका रक्षण और पूजन उनके जीवन का अविभाज्य अंग था। जैसा कि कहा भी गया है

यस्य भूमिः प्रमाऽन्तरिक्षमूतोदरम ।

दिवं यश्चक्रे मूर्धानं तस्मै ज्येष्ठाय ब्रह्मणे नमः ।।' अर्थात् जिसकी पाद स्थानीय और अन्तरिक्ष उदर के समान है, धुलोक जिसका मस्तक है, उन सबसे उत्तम ब्रह्म को नमन है। यहाँ पर ब्रह्म को नमन करते हुए प्रकृति के अनुसार चलने का निर्देश दिया गया है। वैदिक ऋषि को यह भान था कि भूमि, द्यौ, अन्तरिक्ष, जल, वनस्पति आदि के दूषित हो जाने पर जीवन दूभर हो जायेगा, इसीलिए इनके पूज्य स्वरूप को स्वीकार कर इनके शान्ति की बात करता है। शान्ति मंत्र का प्रयोजन सिर्फ इतना ही नहीं है कि किसी क्रिया-कलाप के शुभ अवसर पर बोला जाए, बल्कि इसमें पृथिवी, जल, वनस्पति, औषधि आदि सभी प्राकृतिक तत्त्वों का समावेशन किया गया है। जिन पर हमारा जीवन आश्रित है। ऋग्वेद में मनोहारी प्राकृतिक जीवन को ही सुख–शान्ति का आधार माना गया है। इसमें वर्षा ऋतु को उत्सव एवं पूजन द्वारा शस्य-श्यामला प्रकृति के प्रति हार्दिक प्रसन्नता व्यक्त की गई है। अथर्ववेद में जल, वायु एवं औषधियों को छन्दस या आच्छादक बताया गया है। प्रकृति के ये तीनों ही तत्त्व जीवन को सुरक्षा प्रदान करते है। अतः इनको परिधि शब्द से वर्णित किया गया है।

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