Vedrishi

विज्ञानात्मा

Vigyantma

350.00

Subject: Kautilya Rajshastra
Edition: 2007
Publishing Year: 2007
ISBN : 9788180000000
Pages: 205
BindingHardcover
Dimensions: 14X22X4
Weight: 700gm

पुस्तक परिचय

यह द्रष्टा जगत् जड़ तथा चेतन के संयोगवियोग से संसरित हो रहा है, क्योंकि चेतन जड़ादि धर्मों को स्थूल शरीरादि रूप में धारण करके इस क्रियान्वित जगत् में कर्म करता है। इस प्रकार किये गये कर्मों को शरीरादि द्वारा भोगता है। यही इस जगत् का उपक्रम है। जिसमें यह दोनों पदार्थ जड़ तथा चेतन अनु उत्पन्न अनादि है और विनाश रहित वर्तमान है। इन दोनों में से एक के अभाव में संसार का व्यवहार ही नहीं बनता। इसलिये संसार को संसरित होने के लिये दोनों का होना आवश्यक है। महापुरुषों ने जड़ को प्रधान (प्रवृत्ति) तथा चेतन को पुरुष कहा है।

चेतन ही जीवात्मा रूप में विज्ञानात्मा है क्योंकि चेतन ही जड़ादि धर्मों को स्थूल शरीरादि रूप में धारण करके इस विश्व में क्रियान्वित होता है। इस प्रकार चेतन ने विराट रूप में व्यष्टि में प्रविष्ट होकर विश्वत्व को प्राप्त हुआ।

ईश्वर की आज्ञा से विराट ने व्यष्टि में प्रविष्ट होकर तथा बुद्धि में प्रविष्ट होकर विश्वत्व को प्राप्त किया अर्थात् विश्वत्व की संज्ञा प्राप्त की। विज्ञानात्मा चिदाभास, विश्व, व्यवहारिक, जाग्रत, स्थूल देहाभिमानी और भू से विश्व के विभिन्न नाम हैं। 

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