Vedrishi

यातुधान (virus) नाशक वेद-विद्या

Yatudhan (virus) Nashak Ved Vidya

200.00

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Subject: Swami Ramdev Ek Yogi-Ek Yoddha, Swami Ramdev
Edition: 2015
ISBN : 9788190000000
Pages: 420
BindingPaperback
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सभी प्राणधारियों में मनुष्य ईश्वर जी विशिष्ट रचना है l मनुष्य के अतिरिक्त सभी प्राणी बिना किसी नैमेत्तिक शिक्षा व शिक्षक के अपने स्वाभाविक ज्ञान से अपने समस्त आवश्यक कार्य करते है l यह ज्ञान उन्हें बिना सिखाएं अपने आप आ जाता है किन्तु मनुष्य नैमेत्तिक ज्ञान के बिना न भाषा न विज्ञान आदि का विकास कर सकता है l उदारणार्थ यदि मनुष्य का बालक आरम्भ से ही पशु की संगति में रहें, तो उसका भाषा व विज्ञान से रहित पशुओं सा ही ज्ञान होगा व उसका मानवीय विकास नहीं होगा l मनुष्यों में भी वह बालक यदि ज्ञानवानों की संगती में रहा तो ज्ञानवान होगा l यह बात प्रमाणों से सिद्ध है कि मनुष्य को बिना मैमेत्तिक ज्ञान के स्वयं विशेष ज्ञान की उपलब्धि नहीं हो सकती l

अब इस विषय पर विचार करते है कि ज्ञान का नैमेत्तिक कारण क्या है ? इस ब्रह्माण्ड में मनुष्य के द्वारा स्वीकृत, तर्क द्वारा सिद्ध, ब्रह्मडीय नियमों के द्वारा परिपुष्ट एक स्वाभाविक सिद्धांत है l जिसको हम कार्य कारण सिद्धांत कहते है l इस सिद्धांत का तात्पर्य यह है कि हर कार्य पदार्थ के कुछ कारण होते है, बिना कारण के कुछ भी कार्य नहीं हो सकता है l  इस पर विचार करते है –मनुष्य अपने जीवन में नित्य प्रति होने वाली घटनाओं में देखता है कि संसार में कोई भी वस्तु बिना बनाये नही बन रही है l जैसे लोहार के बिना कृषि कार्य के औजार नही बन रहें, बिना रुई और जुलाहे के कपडा नही बनता, कुम्हार मिट्टी व चक्र के बिना घड़ा अपने आप नही बनता l आज के परिप्रेक्ष्य में देखें तो मोबाइल, कंप्यूटर, वायुयान आदि के निर्माण में भी यह ब्रह्मडीय कार्य कारण रूपी सिद्धांत कर्ता, पदार्थ व उपभोक्ता रूप में स्थित है l

आधुनिक समय के एक महान वैदिक विद्वान महर्षि दयानंद जी ने निर्णायक रूप से घोषणा की थी कि ‘वेद सब सत्य विद्याओं का पुस्तक है’ l इसलिए वेदों में सभी प्रकार के विज्ञान का प्रतिपादन होना चाहिए l चूँकि आज दुनिया एक वायरस महामारी से निपटने के लिए संघर्ष कर रही है, इसलिए इस सम्बन्ध में वेदों में उपलब्ध विज्ञान और संधान के विषय पर विचार अति आवश्यक है l वस्तुतः सभी प्रकार के विषाणुओं के विनाश का विज्ञान वेदों के व्यापक ज्ञान के सागर में उपलब्ध अनेक विज्ञानों में से एक है l आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के विषाणु (virus) को वेदों में “यातुधान” शब्द से वर्णित किया गया है l इसकी व्याख्या के लिए विस्तृत चर्चा और आत्मनिरीक्षण की आवश्यकता हो सकती है, जिसकी चर्चा हम अपने आगामी रचना ‘वैदिक वायरोलाजी में करेंगे जो प्रगति पर है l

 

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