आर्ष और अनार्ष ग्रंथ
वेद ऋषि प्रकल्प द्वारा विशेषत: आर्ष ग्रंथों का ही विक्रय किया जाता रहा है किंतु कुछ समय से जिज्ञासु पाठकों द्वारा अन्य साहित्यों की भी मांग की जा रही है। जिनमें कुछ साहित्य अनार्षकोटि का तथा कुछ अन्य मतों व मान्यताओं पर भी आधारित है। ऐसे अनेकों शोधार्थी हैं जिन्हें आर्ष ग्रंथों के अलावा अन्य साहित्यों की भी आवश्यकता शोध कार्य के दौरान होती हैं। इसलिए वेद ऋषि प्रकल्प का विस्तार करने का विचार किया जा रहा है जिसमें तुलनात्मक और शोधान्वेषण हेतु अन्य साहित्यों को भी विक्रय के लिए सम्मलित किया जा रहा है।
अब आप सभी विभिन्न प्रकार के साहित्यों को एक ही माध्यम वेद ऋषि से प्राप्त कर सकते हैं।
पाठकगण अपने विवेकानुसार तथा महर्षि दयानन्द सरस्वती द्वारा दी गई परिभाषानुसार आर्ष और अनार्ष ग्रंथों की पहचान करें।
“महर्षि दयानंद जी के अनुसार ऋषि प्रणीत आर्ष ग्रंथों को इसलिए पढना चाहिए कि वे बडे विद्वान, सर्वशास्त्रवित् और धर्मात्मा थे और अनृषि अर्थात् अल्प शास्त्र पढे तथा पक्षपातयुक्त थे।”
सत्यार्थ प्रकाश अनुसार आर्ष ग्रंथ निम्न हैं –
पूर्व मीमांसा पर व्यासमुनि कृत व्याख्या, वैशेषिक पर गौतममुनिकृत प्रशस्तपाद भाष्य, न्यायसूत्र पर वात्स्यायनकृत भाष्य, सांख्य पर भागुरिमुनिकृत भाष्य, वेदान्त पर वात्स्यायनकृत अथवा बोधायनमुनि कृत भाष्य।
ऐतरेय, गोपथ, साम और शतपथ चारों ब्राह्मण, शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निघण्टु – निरुक्त, छन्द और ज्योतिष। आयुर्वेद, गंधर्ववेद, अर्थवेद और धनुर्वेद ये सभी ऋषि प्रणीत ग्रंथ हैं। इनमें भी वेदविरुद्ध को त्याग देना चाहिए।
अब अनार्ष ग्रंथ लिखते हैं –
व्याकरण में कातन्त्र, सारस्वत, चन्द्रिका, मुग्धबोध, कौमुदी, शेखर, मनोरमा आदि। कोश में अमरकोशादि, शिक्षा में श्लोकात्मक प्रचलित पाणिनि शिक्षा, ज्योतिष में शीघ्रबोध, मुहुर्तचिंतामणि आदि। काव्य में नायिकाभेद कुवलयानन्द, रघुवंश, माघ, किरातार्जुनीय आदि। मीमांसा पर धर्मसिंधु, व्रताकार्दि, वैशेषिक में तर्कसंग्रह, न्याय में जागदीशी आदि, योग में हठयोगप्रदीपिका आदि। सांख्य में सांख्यतत्वकौमुदी, वेदान्त में योगवासिष्ठ और वैद्यक में शार्ङ्गधरादि। मनुस्मृति के प्रक्षिप्त श्लोक तथा अन्य सभी स्मृतियां, सब तंत्र, पुराण, उपपुराण तथा तुलसीकृत भाषा रामायण आदि सब अनार्ष ग्रंथ हैं।