आर्ष/अनार्ष

आर्ष-अनार्ष ग्रंथो में भेद:

महर्षि लोगों का आशय, जहाँ तक हो सके, वहाँ तक सुगम और जिसके ग्रहण करने में समय थोडा लगे, इस प्रकार का होता है।

और क्षुद्राशय लोगों की मनसा ऐसी होती है, की जहाँ तक बने, वहाँ तक कठिन रचना करनी, जिसको बडे परिश्रम से पढकर अल्प लाभ उठा सकें। जैसे: पहाड का खोदना और कौडी का लाभ होना।

आर्ष ग्रन्थों का पढना ऐसा है की एक गोता लगाना और बहुमूल्य रत्नों का पाना।

आर्ष ग्रन्थ(ग्राह्य ग्रन्थ):-

चारों मूल वेद :-

१) ऋग्वेद (ज्ञान)

२) यजुर्वेद (कर्म)

३) सामवेद (उपासना)

४) अथर्ववेद (विज्ञान)

छः दर्शनशास्त्र (उपाङ्ग):

१) जैमिनी मुनि कृत

 पूर्वमीमांसा-दर्शन (व्यासमुनि कृत व्याख्या)

२) कणाद मुनि कृत वैशेषिक-दर्शन (प्रशस्तपाद कृत भाष्य)

३) गौतममुनिकृत न्याय-दर्शन (वात्स्यायनमुनि कृत व्याख्या)

४) पतञ्जलि मुनि कृत योग-दर्शन

 (व्यासमुनि कृत व्याख्या)

५) कपिल मुनि कृत सांख्य-दर्शन

 (भागुरिमुनि कृत व्याख्या)

६) व्यास मुनि कृत उत्तर-मीमांसा-दर्शन/ब्रह्मसूत्र/वेदान्त-सूत्र (वात्स्यायनमुनि कृत या बौधायनमुनि कृत व्याख्या)

उपनिषद् :-

 १) ईश

 २) केन

३) कठ

४) प्रश्न

 ५) मुण्डक

६) माण्डूक्य

 ७) ऐतरेय

८) तैत्तिरीय

९) छान्दोग्य

 १०) बृहदारण्यक्

 ११) श्वेताश्वरतर

ब्राह्मण ग्रन्थ :-

१) ऐतरेय

२) शतपथ

३) साम (ताण्ड्य आदि)

४) गोपथ

वेदाङ्ग :-

१) शिक्षा

२) कल्प (गृह्यसूत्र)

३) व्याकरण (अष्टाध्यायी + महाभाष्य)

४) निरुक्त + निघण्टु

५) पिङ्गल छन्द

६) ज्योतिष

उपवेद :-

१) आयुर्वेद (चरक, सुश्रुत आदि)

२) धनुर्वेद

३) गान्धर्ववेद

४) अर्थवेद (स्थापत्यवेद)

अनार्ष ( जाल ) ग्रन्थ :-

१) मनुस्मृति के प्रक्षिप्त श्लोकों सहित अन्य सभी स्मृतियाँ

२) सभी तन्त्र

३) सभी 18+ पुराण

सभी 18+ उपपुराण

४) तुलसीदासकृत भाषारामायण

५) व्याकरण में, कातन्त्र, सारस्वर, चन्द्रिका, मुग्धबोध, कौमुदी, शेखर, मनोरमा आदि।

६) कोश में अमरकोश आदि

७) छन्दग्रन्थ में वृत्तरत्नाकर आदि

८) शिक्षा में, “‘अथ शिक्षाम् प्रवक्ष्यामि पाणिनियं मतम् यथा’ आदि

९) ज्योतिष में, शीघ्रबोध, मुहूर्त्तचिन्तामणि आदि

१०) काव्य में नायिकाभेद, कुवलयानन्द, रघुवंश, माघ, किरातार्जुनीय आदि

११) मीमांसा में, धर्मसिन्धु, व्रतार्क आदि

१२) वैशेषिक में, तर्कसंग्रह आदि

१३) न्याय में, जगदीशी आदि

१४) योग में, हठप्रदीपिका आदि

१५) सांख्य में, सांख्यतत्त्वकौमुदी आदि

१६) वेदान्त में, योगवाशिष्ठ, पञ्चदशी आदि

१७) वैद्यक में, शारङ्गधर आदि

१८) रुक्मिणीमङ्गल, सभी संस्कृतरहितग्रन्थ

ऋषिप्रणीत ग्रन्थों को इसलिए पढ़ना चाहिए क्योंकि वे बड़े विद्वान् सबशास्त्रवित् और धर्मात्मा थे। और अनृषि अर्थात् जो अल्पशास्त्र पढ़े हैं, और जिनका आत्मा पक्षपात सहित है, उनके बनाये हुए ग्रन्थ भी वैसे ही हैं।

साभार: सत्यार्थ प्रकाश, तृतीय समुल्लास