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क्यों आर्यसमाज धर्म के क्षेत्र में समालोचना और तर्क के प्रयोग पर इतना बल देता है?

क्यों आर्यसमाज धर्म के क्षेत्र में समालोचना और तर्क के प्रयोग पर इतना बल देता है? •

 

• वैदिकधर्मी तर्क को ऋषि मानते हैं •

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– आचार्य प्रियव्रत वेदवाचस्पति

 

आर्यसमाज आचार्य यास्क और भगवान् मनु का अनुयायी है। आचार्य यास्क ने अपने सुप्रसिद्ध ग्रंथ निरुक्त (13.12) में तर्क को “ऋषि” कहा है। जिस प्रकार ऊंची कोटि के पहुंचे हुए आत्मज्ञानी ऋषियों को सत्य का प्रत्यक्ष हो जाया करता है उसी प्रकार तर्क भी सत्य को प्रत्यक्ष करा देने की शक्ति रखता है। इसी लिये आचार्य यास्क ने तर्क को “ऋषि” की पदवी प्रदान की है। भगवान् मनु ने अपने प्रसिद्ध धर्मशास्त्र मनुस्मृति में लिखा है कि – “जो व्यक्ति तर्क के द्वारा खोज करता है वही धर्म को जान सकता है, दूसरा नहीं – “यस्तर्केणानुसन्धत्ते स धर्मं वेद नेतरः।” (मनु. 12.106) आर्यसमाज अपने इन दोनों आचार्यों के चरण-चिह्नों पर चलता हुआ तर्क-ऋषि की सहायता से धर्म के सच्चे स्वरूप को जानने का प्रयत्न करता है। यदि हमारा मन राग और द्वेष से रहित हो तथा हमें सच्चाई को जानने की सच्ची इच्छा हो और हम तर्क करने के नियमों को जान कर उन का सही प्रयोग करें तो निश्चय ही तर्क में यह शक्ति है कि वह हमें सत्य का परिज्ञान करा दे। जब हम धर्म के सत्य स्वरूप को जानने के लिये तर्क का सही प्रयोग करेंगे तो तर्क हमें उस के सच्चे स्वरूप का भी परिज्ञान करा देगा। इसी लिये आर्यसमाज धर्म के क्षेत्र में समालोचना और तर्क के प्रयोग पर इतना बल देता है। तर्क और समालोचना की सहायता के बिना किसी धार्मिक मंतव्य की सत्यता का परिज्ञान हो ही नहीं सकता।

 

[स्रोत : मेरा धर्म, पृ. 304-5, प्रथम संस्करण, प्रस्तुतकर्ता : भावेश मेरजा]

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