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यदि विश्व आज भारत को पहचानता है, सम्मान देता है, तो यह बॉलीवुड या फिल्मों के कारण नहीं, अपितु भारत की अपार संस्कृति, ज्ञान और विज्ञान, साहित्य, ज्योतिष, खगोल, गणित, वास्तुकला और चिकित्सा के क्षेत्र में दुनिया में योगदान के कारण है। आज दुर्भाग्यवश अधिकांश लोग वास्तव में प्राचीन भारत के योगदान को नहीं जानते हैं और मानते हैं कि हर आविष्कार पश्चिमी दुनिया द्वारा किया गया था।

तक्षशिला (आज पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के रावलपिण्डी जिले की एक तहसील), प्राचीन भारत में गांधार देश की राजधानी और शिक्षा का प्रमुख केन्द्र था। यहाँ के विश्वविद्यालय को विश्व के प्राचीनतम विश्वविद्यालयों में एक माना जाता था। इस विश्वविद्यालय को चाणक्य (कौटिल्य) ने अपने अर्थशास्त्र, आचार्य चक्र ने आयुर्वेद के जनक और पाणिनि ने संस्कृत की व्याकरण के रचयिता के रूप में पहचान दी। शिक्षा गुरुकुल पद्धति पर आधारित थी और तब विद्यालय शिक्षकों के घर में होते थे और विद्यार्थी वहीं शिक्षा ग्रहण करते थे। शिक्षा पर सभी का अधिकार था। शिक्षा के लिए धनी, निर्धन, जाति, कुल, वर्ण आदि का भेद नहीं था। शिक्षा का महत्त्व धन से अधिक था और इसे सभी के लिए अनिवार्य माना जाता था। शिक्षा के लिए शुल्क वर्जित था, निंदनीय था।

उस समय राजा या स्थानीय शासकों का शैक्षिक गतिविधियों पर कोई नियंत्रण नहीं था। शिक्षा आचार्यों व सम्पूर्ण समाज का सामूहिक दायित्त्व था। समाज से दान-दक्षिणा, धनी व्यापारियों और धनी माता-पिता से मिलाने वाली वित्तीय सहायता से शैक्षिक संस्थान अपना संचालन करते थे। व्यवहारिक-शिक्षा, चरित्र-निर्माण, व्यवसायिक-शिक्षा, सांस्कृतिक-शिक्षा, अध्यात्म, ये सभी शिक्षा के अंग थे।

आज की समय गणना से ३२७ [327] वर्ष पूर्व २,३४७ [2347] वर्ष पहले) जब यूनान (ग्रीस) का राजा सिकंदर (अलेक्जेंडर) विश्व – विजय की आकांक्षा लिए भारत पहुंचा था तब उसके साथ आए यूनानी इतिहासकारों ने तक्षशिला को “समृद्ध व सुशासित” राज्य बताया था। उन्हें तक्षशिला में एक ऐसा विश्वविद्यालय मिला था, जैसा उन्होंने ग्रीस में भी नहीं देखा था।

यह समृद्धि, सुशासन तक्षशिला अच्छी शिक्षा के कारण ही अर्जित कर पाई होगी। समाज ने शिक्षा को अनिवार्य समझा, अपना दायित्त्व समझा की सभी शिक्षित हों और शिक्षकों की सहायता कर यह संभव किया की सभी सही शिक्षा पा कर समाज में अपने कर्त्तव्य, अपने दायित्त्व समझें और अच्छे समाज के निर्माण में अपना योगदान दें।

“माता शत्रु: पिता वैरी येन बालो न पाठित:”

वे माता – पिता जो अपनी संतान को विद्याध्ययन नहीं करवाते अपनी संतान के शत्रु होते हैं।

शिक्षकों ने भी शिक्षा देना, जिससे अच्छे समाज का निर्माण हो अपना एक-मात्र उद्देश्य माना और कार्यरत रहे।

सिकंदर राजा पुरु (पोरस) से युद्ध के पश्चात अपनी थकी हुई कमज़ोर सेना के साथ पलायन कर गया। उसके उल्लेखों से भारत के पश्चिम में तक्षशिला की प्रसिद्धि बढ़ी और तक्षशिला को पाने के लिए अक्रांतियों के आक्रमण आरम्भ हो गए।

फारसियों, यूनानियों, पार्थियनों (प्राचीन ईरान की एक जाति ), शक और कुषाणों ने यहाँ विनाश के चिंह छोड़े पर हूणों ने सन ४५० [450] में तक्षशिला राज्य ही नहीं अपितु विश्वविद्यालय का भी विध्वंस कर दिया।

हूण खानाबदोश लोग थे जो ४ वीं और ६ [6] वीं शताब्दी के बीच मध्य एशिया, काऊकासुस पर्वतमाला और पूर्वी यूरोप में रहते थे। ये मूलत: कहाँ से थे यह कोई नहीं जनता। इनकी संस्कृति के बारे में भी इतिहासकार बहुत कम जानते हैं।

चौथी शताब्दी के मध्य में तक्षशिला पर गुप्त वंश का शासन था। यह समय कुछ इतिहासकारों द्वारा भारत का स्वर्ण युग माना जाता है। उस समय यह शहर रेशम, चंदन, घोड़े, कपास, चांदी के बर्तन, मोती और मसालों के व्यापार के लिए ही प्रसिद्ध नहीं था अपितु इसकी पहचान साहित्य, कला व संस्कृति के गढ़ के रूप में भी थी।

अपने स्वर्णिम काल में एक शिक्षित, समृद्ध राज्य कैसे असंस्कारित, असभ्य, असमृद्ध लड़ाकुओं से हार गया?

भारत पर हूणों के पहले आक्रमण को कुमारगुप्त के बेटे स्कंदगुप्त ने विफल कर दिया था। स्कंदगुप्त की आयु ७० वर्ष से अधिक थी जब हूण सरदार खिलखिल के नेतृत्त्व में दूसरा आक्रमण हुआ। ऐसे समय में स्कंदगुप्त के सौतेले भाई पुरुगुप्त ने उनका साथ नहीं दिया अपितु उनके शासन को उखाड़ फेंकने के लिए विश्वासघात किया और उनके विरुद्ध साजिश रची। वीर स्कंदगुप्त ने इन बर्बर हूणों से मातृभूमि की रक्षा करते हुए अपने सैन्य शिविर में अपनी आखिरी सांस ली।

(यह युद्ध जीतने के बाद हूण लड़ाकू और अधिक शक्ति से लूटपाट करते उज्जैन तक पहुँच गए थे)

पुरुगुप्त ने अपने राजा बनने की स्वार्थपूर्ति हेतु छल व विश्वासघात किया। ऐसा करने पर उसकी ही हानि नहीं अपितु सहस्त्रों जीवन, धन-संपदा, कला, संस्कृति, आदि की हानि हुई। स्कंदगुप्त की आयु हो चुकी थी और पुरुगुप्त स्वयं को योग्य सिद्ध कर राजा बन सकता था पर वह जानता था कि वह योग्य नहीं है जिस लिए उसने अपनी बुद्धि अनुसार छल का मार्ग सही समझा। यदि वह राजा बनने योग्य होता तो वह दूरदर्शी होता और आक्रांताओं से युद्ध हारने से होने वाले अल्पकालीन व दूरगामी परिणामों का आंकलन करता।

हम न भूलें कि

  • निर्णायक स्थलों पर अयोग्य व्यक्ति अपने निर्णयों से अपनी स्वार्थपूर्ति करता है। उसके निर्णय अनुचित हो सकते हैं जिनके दूरगामी दुष्परिणाम हो सकते हैं।

  • अयोग्य व्यक्ति स्वयं को योग्य सिद्ध करने के लिए अपने साथ अपने कवच के रूप में चाटुकारों का समूह रखता है जो सदैव उसकी झूठी प्रशंसा करते हैं जिससे की वह योग्य सिद्ध हो सके। ये चाटुकार भी अपने छोटे-छोटे निजी स्वार्थों के कारण अयोग्य व्यक्ति का साथ देते हैं।

  • हमें अयोग्य व्यक्ति का ज्ञान हो जाता है, उसके चाटुकारों का भी पता चल जाता है पर हम फिर भी मन में आक्रोश भरे उनको सहन करते रहते हैं। हमें यह भय सताता है कि उनके विरुद्ध कुछ कहने मात्र से ही संभवत: हमें किसी भी रूप में हानि हो सकती है। यह भय क्यों?

  • यह भय योग्यता के होते हुए भी सामर्थ्य न होने के कारण होता है।

  • जो सामर्थ्य है उसी में आत्म-विश्वास है और वही कठिनाइयों का सामना कर टिका रह सकता है।

  • योग्यता व सामर्थ्य पूर्ण शिक्षा (सार्वभौमिक शिक्षा) से ही आ सकते है। व्यवसायिक शिक्षा तो शिक्षा का मात्र एक अंग है।

सार्वभौमिक शिक्षा : आज की प्रचलित शिक्षा नहीं अपितु ऐसी शिक्षा जिसमें व्यवहारिक- शिक्षा, चरित्र-निर्माण, व्यवसायिक-शिक्षा, सांस्कृतिक-शिक्षा, अध्यात्म, आदि संग्रहित हों (शिक्षा विषय एक अलग लेख में)

  • शैक्षिक संस्थान पर आघात पूरे समाज पर आघात है।

  • सार्वभौमिक शिक्षा ही सफलता की कुँजी है।

Taxila: Education, Qualification & Capability

If the world recognizes, honors India today, it is not because of Bollywood or films, but because of its immense culture, knowledge and contribution to the world in the fields of science, literature, astrology, astronomy, mathematics, architecture and medicine. Unfortunately most people today do not really know the contribution of ancient India and believe that every invention was done by the Western world.

Taxila (today a tehsil of Rawalpindi district of Punjab province of Pakistan) was the capital of Gandhara country in ancient India and a major center of education. The university here was considered one of the oldest universities in the world. This university became popular due to its association with Chanakya (Kautilya) for his Arthashastra (knowledge of economics), Acharya Chakra, the father of medicinal stream Ayurveda, Panini, for his creation of Sanskrit grammar. Education was based on the Gurukul system when the schools were in the teacher’s house and the students were educated there. Everyone had right to education. There was no distinction of rich, poor, caste, clan, breed etc. for education. The importance of education was higher than wealth and education was considered compulsory for all. The fee for education was prohibited and condemned.

At that time the kings or local rulers had no control over educational activities. Education was the collective responsibility of the teachers and society. Educational institutions operated with donations from society, financial assistance from wealthy businessmen and wealthy parents. Behavioral-education, character-building, vocational-education, cultural-education, spirituality, were all part of education

327 years earlier than present time counting (2,347 years ago), when Alexander, the king of Greece arrived in India to conquer the world, the Greek historians accompanying him described Taxila as “wealthy, prosperous and well governed”. His troops were said to have found a university in Taxila, the like of which had not been seen even in Greece.

This prosperity, good governance of Taxila could only be achieved with good education. The society considered education mandatory, understood its responsibility that everyone should be educated. Society helped teachers and made it possible that everyone gets proper education, understand his/her duties, responsibilities in the society and contribute to the creation of a good society.

Mata shatru pita vairi yaen baalo na paathitah

Parents who do not provide education to their children are their enemies.

For teachers also providing education to build a good society was their sole purpose.

Alexander after the war against King Puru went back with his tired, weak army. His descriptions increased the fame of Taxila in the west of India and the invasion to conquer Taxila started.

The Persians, Greeks, Parthians (a race from ancient Iran), Shakas and Kushans left signs of destruction here, but in the year 450 the Huns not only destroyed the Taxila state but also the university.

The Huns were nomadic people who lived in Central Asia, the Caucasus mountain range and Eastern Europe between the 4th and 6th centuries. No one knows where they were originally from and also very little is known about their culture.

In the middle of the fourth century, Taxila was ruled by the Gupta dynasty. This time is considered by some historians to be the golden age of India. At that time, the city was not only famous for the trade of silk, sandalwood, horses, cotton, silverware, pearls and spices, but it was also recognized as a stronghold of literature, art and culture.

How could a prosperous state in its golden period lose to uncultured, uncivilized, militias?

Hunas first invasion on India was destroyed by Kumaragupta’s son Skandagupta. Skandagupta was over 70 years old when the second invasion led by Hun leader Khilkhil took place. At this time, Skandagupta’s half-brother Purugupta did not support him but betrayed and conspired against him to overthrow him. Skandagupta while protecting the motherland from these barbaric Huns took his last breath in his military camp.

(After winning this war, the number of Hun fighters increased and they continued their destruction and plundering till they reached Ujjain.)

Purugupta tricked and betrayed to become the king. On doing so, he did not only harm himself but also thousands of lives, wealth, art, culture, etc. Skandagupta was already old and Purugupta could prove himself worthy and become a king. But he knew that he was not worthy and can never become king that is why he took the short path of deceit to fulfill his self-interest. If he would have had the qualification to become a king, he would have been far-sighted and would have assessed the short-term and far-reaching consequences of losing the war against invaders.

Let us not forget that

  • In decision making places inappropriate person fulfils his self-interests first. His decisions may be improper which may have far-reaching consequences.

  • This unworthy/incompetent person always has a gang of followers like an armour around him. These followers will praise him falsely in order to prove him worthy and expect fulfillment of their small personal interests as reward.

  • We are able to recognise unqualified person, his follower gang, but tolerate them. We are afraid that any statement against them may annoy them and they may probably harm us in one form or other. Why do we have this fear?

  • In spite of having qualification this fear is due to lack of capability.

  • One who is capable, has self-confidence, can face difficulties, stand firm and sustain.

  • Qualification and capabilities can only be achieved through complete education (universal education), vocational education is only part of education.

Complete education: Not today’s popular education, but such an education in which, character-building, vocational-education, cultural-education, spirituality, are included.

(Education: in a separate article)

  • Attack on educational institution is attack on the whole society

  • Complete education is the key to success

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यहाँ पर कुछ विशेष लेखों को ब्लॉग की रूप में प्रेषित क्या जा रहा है। विभिन्न विद्वानों द्वारा लिखे गए यह लेख हमारे लिए वैदिक सिद्धांतों को समझने में सहायक रहें गे, ऐसी हमारी आशा है।

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