महिला दिवस / Women’s Day
८ मार्च, प्रतिवर्ष विश्व में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है और कुछ देशों में तो इस दिन सार्वजनिक छुट्टी होती है। यह दिवस महिलाओं की सांस्कृतिक, राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक उपलब्धियों के उपलक्ष्य में, उनके अधिकारों जैसे लैंगिक समानता, प्रजनन अधिकार, उनके प्रति हिंसा, दुर्व्यवहार आदि विषयों पर ध्यान आकर्षित करता है।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का आरंभ २० वी. सदी के प्रारम्भ से माना जाता है। इसका सर्वप्रथम उल्लेख २८. ०२. १९०९ को अमेरिका के न्यूयार्क में ‘सोशलिस्ट पार्टी ऑफ अमेरिका’ द्वारा आयोजित एक “महिला दिवस” जो एक श्रमिक आंदोलन भी था के रूप में मिलता है। १९१० के अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी महिला सम्मेलन में जर्मन प्रतिनिधियों ने इसे प्रतिवर्ष “एक विशेष महिला दिवस” के रूप में मनाने का सुझाव दिया और १९११ में यूरोप में ‘महिला दिवस’ का सर्वप्रथम आयोजन हुआ। २० जुलाई १९१७ को रूस यूरोप में महिलाओं को वोट डालने का अधिकार देने वाला पहला देश बना और ८ मार्च को राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया। इसके बाद इसे कम्युनिस्ट देशों व समाजवादी आंदोलनकरियों द्वारा इस तारीख को ‘महिला दिवस’ के रूप में मनाया जाने लगा।
१९९० में महिलाओं को सभी चुनावों में वोट डालने का अधिकार देने वाला स्विजरलैंड यूरोप का अंतिम देश था
१९६० के दशक के उत्तरार्ध में वैश्विक नारीवादी आंदोलन द्वारा इसे अपनाने तक यह दिवस वामपंथी आंदोलनों व सरकारों से जुड़ा था। १९७७ में संयुक्त राष्ट्र द्वारा अपनाए जाने के पश्चात यह महिला-दिवस वैश्विक मुख्यधारा में आया है।
वर्तमान में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मुख्य उद्देश्य विश्व में महिलाओं के लिए पुरुषों के बराबर लैंगिक समानता पाना, महिलाओं की उपलब्धियों को उजागर करना व महिलाओं की समानता को प्रभावित करने वाले मुद्दों के बारे में अधिक जागरूकता बढ़ाना हैं।
२०२१ में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस को विशेष बनाने के लिए भारत की उत्तर रेलवे ने अपने सात शक्तिशाली डीजल इंजनों को देश की महिला योद्धाओं व महिला शासकों को समर्पित किया। इंजनों का नाम ऊदा देवी, रानी अहिल्याबाई, रानी अवंतीबाई, रानी लक्ष्मीबाई, रानी वेलु नचियार, रानी चेन्नम्मा और झलकारी बाई के नाम पर रखा गया है जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अपनी सेनाओं का नेतृत्व किया था।
ऊदा देवी पासी (मृत्यु १६. ११ . १८५७) एक दलित स्वतंत्रता सेनानी थीं जिन्होंने १६. ११. १८५७ को अपनी महिला बटालियन के साथ लखनऊ के सिकंदरबाग में अंग्रेजों की २००० सैनिकों की घेराबंदी के विरुद्ध युद्ध करते हुए वीरगति प्राप्त की थी।
अहिल्याबाई होलकर (३१. ०५. १७२५ – १३. ०८. १७९५ ), मराठा साम्राज्य की प्रसिद्ध महारानी थी। उनकी राजधानी माहेश्वर (वर्त्तमान में मध्य प्रदेश के इंदौर के दक्षिण-पश्चिम में लगभग ९० की. मी. दूर) थी। अहिल्याबाई जी ने अपने राज्य की सीमाओं के बाहर भारत-भर के प्रसिद्ध तीर्थों और स्थानों पर मन्दिर, घाट, कुँए, बावड़ियाँ, मार्ग, भूखों के लिए ‘अन्नसत्र’ (वह स्थान जहाँ धार्मिक लोग याचकों को अन्न बाँटते हैं), प्यासों के लिए प्याऊ आदि बनवाए। उन्होंने, मन्दिरों में शास्त्रों के मनन-चिन्तन और प्रवचन हेतु विद्वानों की नियुक्ति की। उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि १७७६ में काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण करना था, जिसे १६६९ में मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश पर लूटा गया, अपवित्र किया गया, ध्वस्त किया गया और ज्ञानवापी मस्जिद में परिवर्तित किया गया था।
अवंतीबाई लोधी (१६. ०८. १८३१ – २०. ०३. १८५८) एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और मध्य प्रदेश में रामगढ़ (वर्तमान डिंडोरी) की रानी थीं (लोधी : मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश की एक किसान जाति; दिल्ली सल्तनत के लोधी शासक से भिन्न)। उनके पति विक्रमाजीत सिंह की राज्य संचालन में रुचि न होने के कारण वे ही राज्य के सभी कार्य करती थीं। राजा विक्रमाजीत सिंह को विक्षिप्त तथा उनके दोनों पुत्रों अमान सिंह और शेर सिंह को नाबालिग घोषित कर अंग्रेजों ने रामगढ़ राज्य को हड़पने के लिए पालक न्यायालय (कोर्ट ऑफ वार्ड्स) की कार्यवाही की। रानी अवंतीबाई ने अंग्रेज शासकों की इस हड़प नीति का विरोध किया। उन्होंने खैरी (नवम्बर १८५७) के युद्ध में अंग्रेजों को हराया। १५. ०१. १८५८ को घुघरी के युद्ध में अंग्रेजों से हार के पश्चात वे उनसे छापामार युद्ध करती रहीं। २०. ०३. १८५८ को युद्ध में जब उन्हें अपना बच कर निकलना असंभव लगा तो उन्होंने अपने सीने में कटार घोंप कर मृत्यु का वरण किया।
रानी लक्ष्मीबाई (१९. ११. १८२८ – १८. ०६. १८५८) मराठा शासित झाँसी राज्य की रानी थीं। उनका बचपन का नाम मणिकर्णिका था। अंग्रेजों ने उनका राज्य हड़पने हेतु उनके दत्तक पुत्र को अमान्य घोषित कर दिया था। अंग्रेजों से अपने राज्य की रक्षा करते हुए वे रणभूमि में वीरगति को प्राप्त हुईं। साहित्य में उनकी वीर-गाथाएँ बहुत उपलब्ध हैं।
रानी वेलु नचियार (०३. ०१. १७३० – २५. १२. १७९६) दस वर्षों के लिए (१७८० – १७९०) तमिलनाडु के शिवगंगा रियासत की रानी थी। वह भारत में अंग्रेज़ी औपनिवेशिक शक्ति के विरुद्ध लड़ने वाली पहली भारतीय रानी थीं। उन्हें तमिलनाडु में ‘वीरमंगई’ (बहादुर महिला) नाम से भी जाना जाता हैं। अंग्रेजों से युद्ध में उनके पति की वीरगति के पश्चात उन्होंने पुन: सेना का गठन किया। रानी वेलु नचियार ने वह स्थान खोज निकाला जहां अंग्रेज अपना गोला-बारूद जमा रखते थे। एक आत्मघाती हमले में उन्होंने उस स्थान को नष्ट कर दिया व अपने पति के राज्य को फिर से प्राप्त किया।
रानी चेनम्मा (२३. १०. १७७८ – २१. ०२. १८२९) भारत के कर्नाटक के कित्तूर राज्य की रानी थीं। १८२४ में उन्होने अंग्रेजों की हड़प नीति (डॉक्ट्रिन ऑफ लेप्स; दत्तक पुत्रों को राज करने का अधिकार नहीं ताकि भारतीय राज्यों को अंग्रेज साम्राज्य में मिलाया जा सके) के विरुद्ध अंग्रेजों से सशस्त्र संघर्ष किया था। अंग्रेजों ने कित्तूर पर २०,८०० सैनिकों व ४३७ तोपों के साथ हमला किया पर उन्हें बहुत हानि हुई। अंग्रेजों ने रानी को धोखा दिया। युद्ध-समाप्ति की संधि-वार्ता होते हुए भी उन्होंने युद्ध समाप्त नहीं किया व रानी चेनम्मा को बंधी बना कर बैलहोंगल किले में रखा गया, जहां पर उनका निधन हुआ।
झलकारी बाई (२२. ११ . १८३० – ०४. ०४. १८५७) का जन्म झांसी के समीप भोजला गाँव में एक निर्धन कोली परिवार में हुआ था। वे झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की नियमित सेना में, महिला शाखा ‘दुर्गा दल’ की सेनापति थीं। वे लक्ष्मीबाई की हमशक्ल भी थीं जिस कारण शत्रु को गुमराह करने के लिए वे रानी के वेश में भी युद्ध करती थीं। १८५७ के संग्राम में अंग्रेज जनरल रोज ने १४,००० सैनिकों के साथ झांसी पर आक्रमण किया। रानी के सेनानायकों में से एक दूल्हेराव ने उन्हें धोखा दिया और किले का एक संरक्षित द्वार अंग्रेजों के लिए खोल दिया। ऐसे में लक्ष्मीबाई ने अपने कुछ विश्वस्त सैनिकों, विश्वासपात्रों व अपने बेटे के साथ किला छोड़ दिया व झांसी से दूर निकल गईं। तब झलकारी बाई भेष बदलकर जनरल रोज़ के शिविर के लिए निकलीं और खुद को रानी बताया। इससे एक भ्रम पैदा हुआ जो पूरे दिन बना रहा और रानी को सुरक्षित निकलने का अवसर मिल गया।
इन सम्मानित महिलाओं में दलित व निर्धन परिवार की महिलाएं भी हैं जिन्होंने पुरुषों से भी बढ़कर वीरता व शौर्य दर्शाया है। वर्तमान समय में भी भारत में महिलाएँ पढ़ाई, प्रशासनिक सेवाएँ, अंतर्राष्ट्रीय खेलों में नए कीर्तिमान स्थापित कर रहीं है। अधिकांश महिलाएँ साधारण परिवारों से हैं। धन व संसाधनों के अभाव में भी इन्होने अपने परिश्रम से समाज में अपने लिए स्थान ही नहीं अपितु प्रशंसा भी पाई है। महिलाओं की उपलब्धियां आज कई क्षेत्रों में नए मापदंड निर्धारित कर रही हैं।
दुर्भाग्यवश अपर्याप्त जानकारी होने से भारत की महिलाएँ यह समझतीं हैं कि पश्चिम के देशों में महिला और पुरुष में कोई भेद नहीं है, दोनों के अधिकार समान हैं व समाज में महिला का शोषण नहीं होता। जर्मनी के सरकारी आंकड़ों के अनुसार ही वर्ष २०१९ में जर्मनी में प्रत्येक घंटे एक महिला पारिवारिक हिंसा का शिकार रही है (२०२०-२१ में कोरोना लॉकडाउन के कारण घरेलू हिंसा में वृद्धि हुई है; आंकड़े अभी उपलब्ध नहीं )। वर्ष २०१४ की यूरोपीय संघ की एक रिपोर्ट भयानक आंकड़े दिखती है जिसके अनुसार १५ वर्ष से अधिक आयु की हर पांचवीं महिला (२१%) पिछले १२ माह में यौन-उत्पीड़न का शिकार रही है (पृष्ठ २८)।
इसका निर्णय महिला को स्वयं करना है कि वह पश्चिम की महिला अथवा हिंदी सिनेमा की कलाकारों से प्रेरित हो कर उनके अनुसार वेश-भूषा धारण कर, मादक-वस्तुओं के सेवन कर, अभद्र-भाषा के उपयोग कर लैंगिक-समानता पाना चाहती हैं अथवा अपने भीतर ऐसे गुणों को प्रखर करना चाहती है जिनसे उनका, उनके परिवार का एवं समाज का आत्म-विश्वास बड़े व उत्थान हो।
वर्तमान में युवतियों में ‘हॉट दिखने’ का विचित्र प्रचलन निकल पड़ा है। सुन्दर-, सुडौल-, निरोगी-काया एक आकर्षक-, प्रेरणादायक- व्यक्तित्व का अंश ही हो सकती है, पूर्ण व्यक्तित्व नही। ‘हॉट दिखना‘ तो सुन्दर-, सुडौल-, निरोगी-काया का भी अंश नहीं है।
हम न भूलें कि
महिलाएँ वह सूत्र हैं जो परिवार को बांध कर रखता हैं। परिवार की मजबूती उसे बांधने वाले सूत्र निर्धारित करते हैं।
स्वस्थ, सुशिक्षित, सुशील, सुदृढ़, सक्षम परिवार का आधार उसकी महिलाओं का तप व त्याग है। ऐसे परिवार ही ऐसे समाज और ऐसे राष्ट्र का निर्माण कर सकते हैं।
नारी अस्य समाजस्य कुशलवास्तुकारा अस्ति: अर्थात महिलाएं समाज की आदर्श शिल्पकार होती हैं।
आपके आदर्श, आपके प्रेरणास्रोत आपके कार्यों व आपके भविष्य का निर्धारण करते हैं।
महिलाओं का आदर करना प्रत्येक पुरुष का कर्तव्य है और यह प्रत्येक महिला का दायित्व है कि वह अपने कृत्यों से निरादर की पात्र न बने।
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः अर्थात जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं।
Women’s Day
8th March is celebrated every year in the world as International Women’s Day and in some countries this day is a public holiday. The day highlights the cultural, political, social and economic achievements of women and draws attention towards their issues of concern such as gender equality, reproductive rights, violence against them, abuse etc.
The start of International Women’s Day is considered to be from the beginning of the 20th century. The first reference is the naming of 28.02.1909 as a “Women’s Day”. This day was organized as a labor movement by the ‘Socialist Party of America’ in New York, USA. At the 1910 International Socialist Women’s Conference, German delegates suggested celebrating it annually as a “special women’s day”. In 1911 the first ‘Women’s Day’ was held in Europe. On 20th July 1917, Russia became the first country in Europe to give women the right to vote and declared 8th March as a national holiday. Thereafter the communist countries and socialist movement started celebrating the day as ‘Women Day’.
Switzerland was the last country in Europe to give women the right to vote in all elections (local, regional & central) in 1990.
This day was associated with left-wing movements and governments until its adoption by the global feminist movement in the late 1960s. The Women’s Day came into the global mainstream after its adoption by the United Nations in 1977.
Currently, the main objectives of International Women’s Day are to achieve gender equality, to highlight the achievements of women and to raise more awareness about the issues affecting women’s equality.
To make International Women’s Day special in 2021, Northern Railway of India dedicated its seven powerful diesel locomotives to the women warriors and women rulers of the country. The engines were named after Uda Devi, Rani Ahilyabai, Rani Avantibai, Rani Lakshmibai, Rani Velu Nachiyar, Rani Chennamma and Jhalkari Bai who led their armies in India’s freedom struggle.
Uda Devi (died 16.11.1857) was a Dalit freedom fighter who fought with her women battalion on 16th November 1857. She was martyred while fighting against the British who laid siege around 2000 soldiers at Sikanderbagh in Lucknow.
Ahilyabai Holkar (31.05.1725 – 13.08.1795), was a famous queen of the Maratha Empire. Her capital was Maheshwar (about 90 km south-west of present-day Indore in Madhya Pradesh). Ahilyabaiji built temples, ghats, wells, stepwells, roads, ‘Annsatr’ for the hungry (the place where religious people distribute food to the needy), drinking water stalls for the thirsty etc. for the welfare of public. She appointed scholars for contemplation and discourse of the scriptures in the temples. Her greatest achievement was the reconstruction of the Kashi Vishwanath Temple in 1776, which was looted, desecrated, demolished and converted into the Gyanvapi Mosque on the orders of the Mughal Emperor Aurangzeb in 1669.
Avantibai Lodhi (16.08.1831 – 20.03.1858) was an Indian freedom fighter and queen of Ramgarh (present-day Dindori) in Madhya Pradesh (Lodhi: a peasant caste from Madhya Pradesh and Uttar Pradesh; different from the Lodhi ruler of Delhi Sultanate). Her husband Vikramajit Singh had nearly no interest in state affairs hence she was de facto the caretaker of the state. British declared Raja Vikramajit Singh incapable and his two sons Aman Singh and Sher Singh as minors, to rule. British conducted the ‘Court of Wards’ proceedings to annex the state of Ramgarh. Rani Avantibai opposed this usurp policy of the British. She defeated the British in the Battle of Khairi (November 1857) and Ramgarh remained safe. After her defeat on 15.01.1858 at the hands of British in the battle of Ghughari, she continued to fight against them in guerilla warfare. On 20. 03.1858 during the battle when she found it impossible for her to escape, she committed suicide by piercing a dagger in her chest.
Rani Lakshmibai (19.11.1828 – 18.06.1858) was the queen of the Maratha-ruled Jhansi kingdom. Her childhood name was Manikarnika. Her adopted son was declared invalid by the British to annex her kingdom. While protecting her kingdom from the British, she attained martyrdom. Her heroic stories are available in literature.
Rani Velu Nachiyar (03.01.1730 – 25.12.1796) was the queen of the princely state of Sivaganga in Tamil Nadu for ten years (1780 – 1790). She was the first Indian queen to fight against the British colonial power in India. In Tamil Nadu she is also known as ‘Veermangai’ (Brave Woman). After her husband’s death in war with British, she formed the army again. Rani Velu Nachiyar found out the place where the British used to store their ammunition. In a suicidal attack she destroyed the ammunition store and regained her husband’s kingdom.
Rani Chennamma (23.10.1778 – 21.02.1829) was the queen of the Kittur kingdom of Karnataka, India. In 1824, she fought against the British annexation policy (Doctrine of Lapse; adopted sons did not have the right to rule so that Indian states could be annexed into the British Empire). The British attacked Kittur with 20,800 soldiers and 437 cannons, but they suffered heavy losses. The British betrayed the queen. Despite the negotiations to end the war, they continued and imprisoned Rani Chennamma in the Bailhongal Fort, where she died.
Jhalkari Bai(22.11.1830 – 04.04.1857) was born in a poor Koli family in the village of Bhojla, near Jhansi. She was the commander of the women wing ‘Durga Dal’ in the regular army of Rani Laxmibai of Jhansi. She was also a lookalike of Lakshmibai, due to which she used to fight in the guise of the queen, to mislead the enemy. In the war of 1857, the British General Rose attacked Jhansi with 14,000 soldiers. Dulherao, one of the queen’s commander, betrayed her and opened a gate of the fort to the British. Lakshmibai left the fort along with some of her trusted soldiers, confidants and her son to escape. Then Jhalkari Bai disguised herself as the queen and left for General Rose’s camp. This created a confusion which lasted for the whole day and the queen got an opportunity to escape safely.
Women not only from royal families but also from poor and deprived background have shown extreme courage and valor. Even during present days, women in India are gaining new heights in education, administrative services and international sports. Most of the women are from simple families. In spite of lack of money and resources, they have not only earned a place for themselves in the society but are also being praised for their hard work. The achievements of women are setting new benchmarks in many fields today.
Unfortunately, due to insufficient information, women in India feel that there is no difference between men and women in western countries. In the west they have equal rights and are not exploited in the society. According to government statistics from Germany, in the year 2019, every hour in Germany, a woman was the victim of family violence(Corona lockdown has increased domestic violence in 2020-21; data not yet available). A report of the European Union published in 2014 shows horrific statistics. According to this report every fifth woman (21%) over the age of 15 has been a victim of sexual abuse in the past 12 months (page 28).
It is for the woman herself to decide how she wants to achieve gender equality. Is getting inspired by western women or female artists of Indian cinema and dressing up like them, smoking, consuming drugs, using abusive language, will bring gender equality and liberation? Or should she develop qualities within herself which will not only increase her self-confidence but also of her family and society and make her self-dependent? At present one observes a strange trend of ‘Looking Hot‘ among young girls. A nice looking-, healthy- physique can only be a part of an attractive-, inspiring- personality but never a complete personality. ‘Looking Hot‘ is not even a part of nice looking-, healthy- physique.
Let us not forget that
Women are the cord that binds the family. The strength of the family is determined by the strength of its cords.
The basis of a healthy, well-educated, well-mannered, strong, capable family is the tenacity and sacrifice of its women. Only such families can build such a society and such a nation.
nāri asy smājasy kushalvāstukārā asti means women are the ideal architects of the society.
Your ideals, your inspirations determine your actions and your future.
It is the duty of every man to respect women and it is the responsibility of every woman that she should not become an object of disrespect by her actions.
yatr nāryastu pujyante ramante tatra devatā: that means gods reside where women are worshiped.