हिन्दू: नाम कहाँ से
‘धर्म’शब्द से हम वर्तमान में आस्तिकों (प्रभु में आस्था रखने वाले) द्वारा परमेश्वर के लिए की गई पूजा-पद्धति, आराधना, जीवन-शैली का अनुसरण समझते हैं। धर्म को साधारणत: निर्दिष्ट व्यवहारों व प्रथाओं, नैतिकताओं, विश्वासों, विश्वदृष्टि, ग्रंथों, पवित्र स्थानों, भविष्यवाणियों, नैतिकता की एक सामाजिक-सांस्कृतिक प्रणाली के रूप में परिभाषित किया जाता है। वर्तमान में हमें धर्म के नाम पर ऐसे संगठन भी देखने को मिलते हैं जो मानवता को अलौकिक, पारलौकिक और आध्यात्मिक तत्वों से जोड़तें हैं। वास्तव में ‘धर्म’क्या है, इस पर विद्वानों की सहमति नहीं है। विभिन्न धर्मों में दैवीय, पवित्र वस्तुएं, अलौकिक प्राणी, किसी प्रकार की परम व श्रेष्ठता वाले विभिन्न तत्व अस्तित्व में हो सकते हैं या नहीं भी हो सकते हैं। ये वे मानदंड हैं जो उस धर्म के अनुयायियों को जीवन भर के लिए शक्ति व प्रेरणा प्रदान करते हैं।
विश्व के प्रमुख धर्मों को कुछ प्रमुख समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है। विश्व जनसंख्या में अब्रहमिक धर्मों का समूह सबसे बड़ा समूह है। इस संसार के आधे से अधिक वासी किसी एक अब्रहमिक धर्म के अनुयायी हैं। इस धरती के लगभग १६% निवासी स्वयं को नास्तिक (प्रभु पर विश्वास न करने वाला) बताते हैं व किसी भी धर्म को नहीं मानते। विश्व की लगभग १५% जनसंख्या स्वयं को हिन्दू बताती है और लगभग ७% लोग बौद्ध-अनुयायी कहलाते है।
अब्रहमिक धर्म उन धर्मों को कहते हैं जो एक ईश्वर को मानते हैं एवं अब्रहम (इब्राहीम) को ईश्वर का पैग़म्बर (ईश्वर का संदेशवाहक) मानते है। इनमें यहूदी, ईसाई, इस्लाम, आदि धर्म शामिल हैं। विश्व जनसंख्या में अब्रहमिक धर्मों के अनुयायियों का अनुपात ५६% से अधिक है। सन २०२० के आंकड़ों के अनुसार इस धरती पर ईसाई ३१. ११% व मुस्लमान २४.९% थे।
सुन्नी, शिया, कैथोलिक, इवांजलिक, महायान बौद्ध , सिख, यहूदी, हिन्दू आदि भिन्न मत-मतान्तरों के अनुयायियों की १९४५ से वर्तमान तक की बढ़ती संख्या को जाने: भिन्न मतों के अनुयायी
‘हिन्दू’ शब्द किसी भी ऐसे व्यक्ति का उल्लेख करता है जो स्वयं को सांस्कृतिक व धार्मिक रूप से ‘हिन्दू-धर्म’ से जुड़ा हुआ मानता हैं। यदि हम हिन्दुओं के प्राचीन ग्रंथों को टटोलें तो हमें उनमें कहीं भी ‘हिन्दू’ शब्द नहीं मिलता है। तो फिर यह ‘हिन्दुओं’ को परिभाषित करने वाला शब्द कहाँ से और कब आया। ‘हिन्दू’ शब्द के मूल को लेकर भिन्न सिद्धांत प्रचलित हैं। सबसे प्रचलित सिद्धांत के अनुसार ‘हिन्दू’ शब्द ‘सिंधु’ शब्द से आया है। इस सिद्धांत के अनुसार मध्यकाल में ईरान के लोगों ने सिंधु नदी (अंग्रेजी में इंडस नदी) के पास रहने वाले लोगों के लिए इस शब्द का प्रयोग किया। (ऐसे ही एक सिद्धांत के अनुसार यूनानियों ने इंडस नदी होने से वहां के क्षेत्र को ‘इंडिया’ नाम दे दिया।) एक अन्य सिद्धांत के अनुसार महाभारत के युद्ध के पश्चात पराजित सैनिक पराजय के अपमान के साथ अपने देश वापिस लौटने के स्थान पर हिन्दु-कुश के सुलेमान पर्वत (इन्हें महाभारत काल में सुमेरू पर्वत कहा जाता था) को पार कर पश्चिम की ओर चले गए। समय के साथ-साथ वातावरण के प्रभाव मे ये अपना उच्चारण शुद्ध नही रख सके। भारत के लोग जिन्हे ये अपना बंधु मानते थे और बंधु कह कर पुकारते थे उच्चारण के बदलने से बंधु से ‘हिन्दू’ हो गये और बंधुओं का स्थान, बंधुस्थान बदल कर हिन्दुस्थान और उससे बिगड़ कर हिंदुस्तान हो गया।
सुलेमान पर्वत, जिसे वर्तमान में ‘किह-ए सुलेमान’ या ‘दा कासी घराना’ के नाम से भी जाना जाता है, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में दक्षिणी हिंदू कुश पर्वत श्रंखला का उत्तर-दक्षिण विस्तार है। वे ईरानी पठार के पूर्वी किनारे तक फैले हैं।
कुछ लोगों का कहना है कि जो बुराई (दु) का हनन करे, नाश करे (संस्कृत की हन् धातु) वह हिन्दू है।
हिन्दुओं के मूल ग्रंथों में हिन्दुओं के लिए “आर्य” शब्द का प्रयोग किया गया है (आर्य का अर्थ: श्रेष्ठ; अच्छे गुणों वाला)और धरती के उस भू-भाग के लिए जहाँ ‘आर्य’ रहते थे “आर्यव्रत” शब्द का प्रयोग हुआ है। (राजा भरत के नाम से इस भू-भाग को ‘भारत’ भी कहा जाने लगा।) मध्यकाल में हिन्दू शब्द का प्रयोग फारसियों द्वारा सिंधु नदी के आसपास रहने वाले लोगों के लिए प्रयोग हुआ तो फिर ये कन्याकुमारी तक रहने वाले लोगों के लिए, सिंधु नदी से हजारों कोस दूर आसाम के निवासियों के लिए भी कैसे प्रयोग होने लगा? ‘हिन्दू’ शब्द का प्रयोग ऐतिहासिक रूप से भारतीय उपमहाद्वीप में रहने वाले लोगों के लिए भौगोलिक, सांस्कृतिक और बाद में धार्मिक पहचानकर्ता के रूप में किया गया है।
वास्तव में ‘हिंदुत्व’ व ‘हिंदू’ शब्द ब्रिटिश उपनिवेशवादी विद्वानों द्वारा लोकप्रिय किया गया है। १९.वी सदी तक ये शब्द अंग्रेजी भाषा के अस्तित्व में नहीं थे। (स्रोत: कॉम्पैरिटिव स्टडीज इन सोसाइटी एंड हिस्ट्री, वॉल्यूम ४१ , नंबर ४ (अक्टूबर, १९९९), पृष्ठ. ६३० – ६५९; कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय प्रेस द्वारा प्रकाशित); (ब्रिटानिका एन्साक्लोपीडिया) अंग्रेजी भाषा का ऑक्सफोर्ड शब्दकोष (डिक्शनरी) ‘धर्म’ को एक असीम नियंत्रण-शक्ति से भरपूर अलौकिक प्राणी में विश्वास और उसकी पूजा के रूप में परिभाषित करता है। ये अलौकिक प्राणी किसी के व्यक्तिगत भगवान या देवता भी हो सकता हैं। पश्चिमी से आए उपनिवेशवादी विद्वानों को अपनी अब्रहमिक विचारधारा द्वारा आर्यों की संस्कृति, कला, वास्तुकला, इतिहास, आहार, वस्त्र, ज्योतिष, अध्यात्म, शिक्षा, जीवन-शैली आदि को परिभाषित करने की समस्या थी। इस विशाल भू-खंड में भिन्न वेश-भूषा, खान-पान, भाषा के लोग रहते थे जिन्हें अपार विविधताएँ होने पर भी वैदिक संस्कृति एक सूत्र में बांधती थी। चूँकि अंग्रेजों से पहले भारत के बड़े भू-क्षेत्र पर मुसलमानों का राज्य था और वे वहां के निवासियों को ‘हिन्दू’ कह कर बुला रहे थे अंग्रेजों ने भी मुसलमानों की भाँति भारत के सभी क्षेत्रों में उन लोगों को जो वैदिक-, सनातनी-जीवन पद्धति के अनुसार जीवन व्यतीत करते थे ‘हिन्दू’ कहना आरम्भ कर दिया। हिंदू धर्म व हिंदुत्व ऐसे शब्द है जिनका प्रचलन ब्रिटिश उपनिवेशवादियों ने किया।
(क्रमश :- )
हम न भूलें कि
हिन्दुत्त्व की अजर-अमर जीवन-शक्ति इसकी विशेषता है। युगों-युगों के भीषण प्रहार, राजनैतिक व सामाजिक परिवर्तनों के उपरांत भी यह अपना अस्तित्त्व बनाए हुए है। प्राचीन मिस्र, यूनान, बेबीलोन और रोम के धर्म नष्ट हो गए किन्तु हिन्दू सनातन धर्म अनादिकाल से आज भी विद्यमान है।
हिन्दू धर्म किसी भी रूप में आक्रमणकारी नहीं रहा है। इसके विपरीत अन्य धर्मों ने प्रभु के नाम पर संसार में भीषण रक्तपात किया है और मानवजाति को धर्मान्धता में उनके शोषण का शिकार होना पड़ा है।
हिन्दू धर्म मनुषयों को अपने विश्वसानुसार प्रभु या देवी-देवता को मानने, उन्हें पूजने की पूर्ण स्वतंत्रता देता है। अब्रहमिक धर्मों में ऐसी स्वतंत्रता नहीं है। वे अपने अनुयायियों को किसी विशेष व्यक्ति एवं पुस्तक पर विश्वास करने के लिए बाध्य करते हैं।
Hindu: name comes from
By the word ‘religion’ we understand the way of worship, rituals and lifestyle followed by the believers. English Oxford dictionary defines ‘Religion’ as the belief in and worship of a superhuman controlling power, especially a personal God or gods. Religion is generally defined as a socio-cultural system of specified behaviours and practices, beliefs, scriptures, worldviews, sacred places, prophecies and morals. At present we also get to see organizations in the name of religion which connect humanity with supernatural, transcendental and spiritual elements. There is no scholarly consensus on what exactly a ‘religion’ is. In different religions divinities, sacred things, supernatural beings, various entities with some kind of ultimate and superiority may or may not exist. These are the norms and elements that provide strength and inspiration to the followers of that particular religion for a lifetime.
The major religions of the world can be classified into a few major groups. The Abrahamic religions are the largest group in the world population. More than half of the inhabitants of this world are followers of one of the Abrahamic religions. About 16% of the inhabitants of this earth describe themselves as atheists (non-believers) and do not believe in any religion. About 15% of the world’s population call themselves as Hindus and about 7% are Buddhist-followers.
Abrahamic religions are religions which believe in one God and consider Abraham (Ibrahim) to be the prophet of God (messenger of God). These include religions like Judaism, Christianity, Islam, etc. The proportion of followers of Abrahamic religions in the world population is more than 56%. According to the data of the year 2020, Christians on this earth are 31. 11% and Muslims 24.9%.
To know the number of followers of different faiths like Sunni, Shia, Catholic, Evangelical, Mahayana Buddhist, Sikh, Jewish, Hindu etc. from 1945 till present: Followers of different faiths
The word ‘Hindu’ refers to any person who considers himself culturally and religiously associated with ‘Hinduism’. If we go through the ancient texts of the Hindus, we do not find anywhere the word ‘Hindu’ in them. Then from where and when did this word defining ‘Hindus’ come from? There are different theories about the origin of the word ‘Hindu’. According to the most popular theory, the word ‘Hindu’ comes from the word ‘Sindhu’. According to this theory, the people of Iran during medieval times used to call the people living near the Indus River (Sindhu in Hindi) as ‘Hindu’. (According to one such theory, the Greeks named the region as ‘India’ because of the Indus river.) According to another theory, after the war of Mahābhārat the warriors who were defeated did not return to their native places to avoid the humiliation of defeat. They rather crossed the Suleiman Mountains of Hindu-Kush mountain range (they were called Sumeru Mountains during the Mahābhārat period) and migrated to North-West. With the passage of time and under the influence of the climatic conditions and environment, they could not keep their pronunciation pure. The people of India, whom they considered as their brothers and used to call them as ‘Bandhu’ (Bandhu in Sanskrit means one with whom you are attached), changed from Bandhu to Hindu due to change of pronunciation and the place of brothers, Bandhusthan (‘Sthan’ is Sanskrit word for ‘place’) changed to Hindusthan and from that to Hindustan.
The Suleiman Mountains, also known as Kōh-e Sulaymān or Da Kasē Ghrūna are a north–south extension of the southern Hindu-Kush mountain range in Pakistan and Afghanistan. They rise to form the eastern edge of the Iranian plateau.
Some people say that the one who destroys (the root verb ‘Han’ in Sanskrit means to kill/destroy) evil (du in Sanskrit), is a Hindu.
In the original Hindu texts, the word “ārya” has been used (Meaning of ārya: noble; person with good qualities) for the Hindus and the word “āryavrat” has been used for the part of the earth where the ‘āryans’ lived. (This region was later also called ‘Bhārat’ after the name of King Bharat). In the medieval period, when the word Hindu was used by the Persians for the people living around the Indus river, then how come the people living even thousands of miles away from the Indus river in east in Assam or in south in Kanyakumari were also called as Hindu? The term ‘Hindu’ has historically been used as a geographical, cultural and later religious identifier for people living in the Indian subcontinent.
In fact the terms ‘Hinduism’ and ‘Hindu’ have been popularized by British colonial scholars. These words did not exist in the English language until the 19th century. (Source: Comparative Studies in Society and History, Volume 41, No. 4 (October, 1999), pp. 630 – 659; published by Cambridge University Press); (Britannica Encyclopedia). As the English Language defines ‘religion’ as belief in and/or worship of a superhuman controlling power, especially a personal god or gods, the colonial scholars from the west had the problem of defining the culture, art, architecture, history, diet, clothing, astrology, spirituality, education, lifestyle etc. of the āryans by their Abrahamic ideology. People wearing different dress attires, having different food habits and speaking different languages lived in this vast land area, who in spite of their diversities were tied by Vedic culture in one thread. Since before the British, a large area of India was ruled by the Muslims and they used to call the native and non-Muslim residents as ‘Hindu’, the British also started calling the people of every region of India who used to live according to the Vedic-, Sanātanī-way of life as ‘Hindu’. Hinduism and Hindutva are the words that were conceived by the British colonialists.
(To continue:- )
Let us not forget that
The immortal life-force of Hinduism is its characteristic. It is maintaining its existence even after the fierce blows, political and social changes of ages. The religions of ancient Egypt, Greece, Babylon and Rome were destroyed, but Hindu Sanātan Dharm is still present from time immemorial.
Hinduism has not been aggressive in any way. On the contrary, other religions have done horrific bloodshed in the name of God and mankind has been subjected to their exploitation in fanaticism.
Hindu religion gives complete freedom to people to believe and worship God and saints according to their beliefs. There is no such freedom in the Abrahamic religions. They force their followers to believe in a particular person and book.