मानव-चिन्तन में उपनिषदों की भूमिका
भारतीय चिन्तन में ही नहीं, मानव-चिन्तन में उपनिषदों का चिन्तन उल्लेखनीय स्थान रखता है। उपनिषदें भारतीयों और आर्यों के आध्यात्मिक चिन्तन की विश्वसनीय स्रोत हैं। उपनिषद् शब्द षद्लू धातु से बना है। उसके तीन अर्थ हैं-विशरण नाश करना, गति करना और शिथिल करना, जिसके द्वारा निश्चयपूर्वक ब्रह्म का सामीप्य प्राप्त किया जा सके, अथवा उस ब्रह्मविद्या की उपलब्धि, जिससे अविद्या का नाश होता है, जिससे आनन्द मिलता है और जन्म-मरण के चक्कर से मुक्ति मिल सकती है। आधुनिक विचारक भी उपनिषदों को भारत का सर्वश्रेष्ठ दार्शनिक साहित्य स्वीकार करते हैं। मुक्तक उपनिषद् में १०८ उपनिषदों का उल्लेख है। मुख्य प्रामाणिक सर्वसम्मत ११ उपनिषदे कही जाती हैं। इन प्रसिद्ध ११ उपनिषदों में सर्वाधिक ख्यात ‘ईशोपनिषद्’ यजुर्वेद का अन्तिम ४०वाँ अध्याय है। इसी प्रकार शतपथ ब्राह्मण का अन्तिम भाग ही बृहदराण्यक उपनिषद् है. इसमें अद्भुत वन-संस्कृति का नमूना देखने को मिलता है।
ये प्रधान उपनिषदें हैं- (1) ईश (2) केन, (3) कठ, (4) प्रश्न, (5) मुंडक, (6) मांडूक्य, (7) तैत्तिरीय, (8) ऐतरेय, (9) छांदोग्य, ( 10) बृहदारण्यक (11) श्वेताश्वर।
उपनिषदों का सन्देश
उपनिषदों में बतलाया गया है ईश्वर सर्वव्यापक है और वही सबमें प्रतिष्ठित है। उसे पाने के लिए मनुष्य को सरल-सात्त्विक जीवन बिताना चाहिए। उसे सत्य का पालन करना चाहिए। किसी से वैर-विरोध नहीं करना चाहिए। गुरुजनों का आदर करना चाहिए। उसे न प्रमाद करना चाहिए
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