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वैदिक माईक्रोबायोलौजी

Vedic Microbiology

500.00

SKU 36541-MB00-SH Category puneet.trehan

Out of stock

Subject : Vedic Science
Edition : N/A
Publishing Year : N/A
SKU # : 36541-MB00-SH
ISBN : 9789386081179
Packing : N/A
Pages : 164
Dimensions : 9.00 X 6.00 INCH
Weight : 380
Binding : HARDCOVER
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वैदिक माइक्रोबायोलॉजी

(एक वैज्ञानिक दृष्टि)

 

(रमेश चन्द्र दुबे)

 

यह सर्वमान्य सत्य है कि अपौरुषेय वेद विश्व का प्राचीनतम ग्रन्थ है ।हमारे तत्त्ववेत्ता ॠषियों द्वारा हिमालय कि कन्दराओं मे गहन साधना के पश्चात्, ॠचाओं के रूप में प्राप्त ईश्वरीय ज्ञान को सर्वजन हिताय सकल विश्व को दिया जिस वेद कहा जाता है। वेदज्ञान किसी भी एक ॠषि नही अपितु अनेक ॠषियों के ज्ञान का समूह है जो कई सहस्र ॠचाओं के रूप में संकलित किया गयाह है। उन ॠचाओं में विविध आयामों जैसे ज्योतिष, गणित, भौतिकी, रसायन, आयुर्वेद, आयुर्विज्ञान, विज्ञान, कृषिविज्ञान , सूक्ष्मजैविकी, भूगोल, अन्तरिक्षविज्ञान आदि का अपार भण्डार है। सैकड़ों बार विदेशी आक्रान्ताओं एवं लुटेरों कि क्रूरता के कारण हमारे तक्षशिला और नालन्दा विश्वविद्यालय का प्राचीनतम पुस्तकलय जलकर समाप्त हो गया। विदेशी लुटेरों तथा पाश्चात्य संस्कृति के बलात् प्रवेश एवं धन के प्रलोभन से मन-मस्तिष्क के परिवर्तन के कारण हजारों वर्ष प्राचीन संस्कृति, ज्ञान एवं परम्पराओं से आधुनिक भौतिकवादी समाज दूर होता गया।

धीरे-धीरे हम भारतीय परम्पराओं से विमुख होते गये। वेद का पठन-पाठन त्यागकर केवल कर्मकाण्ड को ही स्वीकार कर लिया। किन्तु कोई भी राष्ट्र तभी तक जीवित रह सकता है जब तक उसकी संस्कृति जीवित रहती है, क्योंकि किसी भी राष्ट्र कि संस्कृति उसकी जीवन्त आत्मा होती है। सैकड़ों वर्षों के संघर्ष से मिली स्वतंत्रता के पश्चात् यह देश भाषाई विवादों में फंसा रहा। हम आपस में ही लड़ते रहे तथा स्वदेशी और विदेशी दुश्मन हमारे देश को बांटने का षडयंत्र करते रहे। यह क्रम अभी भी चल रहा है। स्वतंत्रता के बाद से ही भारतवर्ष कि शिक्षा-व्यवस्था भारतीय संस्कृति पर आधारित न होकर मैकाले कि शिक्षा पध्दति पर आधारीत हो गयी। फलतः इसके कुप्रभाव से युवावर्ग भारतीय संस्कृति एवं परम्परओंसे अछूता होता गया। इसके विपरीत विदेशी अब भारतीय धर्म, दर्शन, संस्कृति, योग, व्याकरण आदि सीखने के लिये भारतवर्ष आने लगे है।

देश-विदेश मे भारतीय संस्कृति का डंका बजाने वाले सन्यासियों जैसे स्वामी दयानन्द सरस्वती, स्वामी श्रध्दानन्द, स्वामी विवेकानन्द, महर्षि अरविन्द आदि अनेकानेक महापुरुषों के योगदान को कभी भी विस्मृत नहीं किया जा सकता। प्राचीन भारतीय संस्कृति की नीव पर आधारीत स्वामी श्रध्दानन्द की इस पावन तपस्थली गुरुकुल कांगडी विश्वविद्यालय में रहकर मै भी अभिभूत होता रहा। विचार में आता रहा कि सूक्ष्मजैवीक विज्ञान की परिधि से निकल कर वेदज्ञान की पुनीत जल कि कुछ छीटों को यदि अपने उपर डाल लूं तो स्म्भवतः इस पावन स्थल पर आकर मेरा रहना सार्थक हो जाएगा। किन्तु मेरे साथ सबसे बडी बाधा है कि मैं न तो संस्कृत का छात्र रहा हूँ और वेद का, परन्तु अपनी संस्कृति से मुझे अगाध लगाव एवं अतीव प्रेम है । इस दुर्गम यात्रा पर निकलना मेरा दुस्साहस ही कहा जा सकता है। मेरा साहस उस समय बढ़ जाता था जब सोचता था कि ईश्वर की कृपा होने पर यदि मूकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिम् हो सकता है तो मेरा सपना साकार क्यों नहीं हो सकता यही सोचकर मैने वैदिक माईक्रोबायोलॉजी – एक वैज्ञानिक दृष्टि के स्वप्न को साकार करने कि यात्रा प्रारम्भ कर दिया।

वैदिक माइक्रबायोलॉजी – एक वैज्ञानिक दृष्टि पुस्तक में वेद, वैदिक काल तथा आर्यों का संक्षिप्त परिचय के साथ ब्रह्माण्ड कि उत्पत्ति, सूक्ष्मजीवों की व्याप्ति एवं उनका वर्गीकरण, मानव स्वास्था एवं रोगकारी क्रिमियाँ क्रिमियों के द्वारा उत्पन्न व्याधियों तथा क्रिमियों का विनाश तथा अग्निहोत्र की वैज्ञानिकता पर कुछ चयनित वैदिक मन्त्रों का, हिन्दी और अंग्रेजी मे अर्थ सहित उचित स्थानों पर चित्रों के माध्यम से वैज्ञानिक विश्लेषण किया गया है तांकि विज्ञान और अन्य विषयों के पाठकों को इसके तत्त्वज्ञान का सरलतपूर्वक बोध हो सके। जिस प्रकार विद्यार्थी अपनि जिज्ञासा को तृप्त करने के लिये अपने शिक्षकों से प्रश्न पुछ्ते है और शिक्षक उन्हें अपने उत्तर से संतुष्ट करता है उसी प्रकार इस पुस्तक मे, प्रश्नोत्तर के माध्यम से सरल हिन्दी भषा में अर्थ के साथ वैज्ञानिक विश्लेषण किया गया है। भारतीय विश्वविद्यालयों मे गुरुकुल कांगडी विश्वविद्यालय का सूक्ष्मजैविकी विभाग ही ऐसा विभाग है जहाँ पर स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर पर वैदिक माइक्रोबायोलॉजि को एक इकाई के रूप मे पाठ्यक्रम में समाहित किया गया है। वैदिक माइक्रोबायोलॉजी पर किसी भी पुस्तक का प्रकाशन अभी तक किसी ने नही किया है। आशा है कि मेर यह लघु प्रयास पाठकों को रुचिकर लगेगा तथा वैदिक माइक्रोबायोलॉजी पर ॠषियों द्वारा दिये हुये वेदज्ञान को वैज्ञानिक विश्लेषण सहित अर्जन करने में सफल होंगे। इसमे प्रयुक्त अन्य वैज्ञानिक शोधकर्ताओं के विचारों का संदर्भ रूप में उल्लेख किया गया है। इसके लेखन कार्य में विभागीय सहयोगियों से सतत प्रेरेणा मिलती रही है। इस कार्य को सम्पादित करने केलिये मेरे सहयोगी डॉ0 वेदप्रकाश शास्त्री, डॉ0 डी0 के0 माहेश्वरी, प्रो0 नवनीत एवं टेक्नीशियन श्री चन्द्रप्रकाश आर्य के विविध प्रकार के सहयोग के लिए मैं आभारी हूँ मै प्रो0 मनुदेव बन्धु और प्रो0 दिनेश चन्द्र शास्त्री वेद विभाग का आभार प्रकट करता हूँ जिन्होने मूललिपि मे संशोधन करके अनेक त्रुटियों को दूर किया है । मै प्रोफेसर रूप किशोर शास्त्री, कुलपति, गुरुकुल कांगडी विश्वविद्यालय का विशेष आभारी हूँ जिनसे सतत प्रोत्साहन एवं सहयोग प्राप्त होता रहा है।

इस पुस्तक के सम्पादन, संशोधन एवं उत्कृष्ट बनाने मे विशेष सहयोग के लिये मै डॉ0 दया शंकर त्रिपाठी (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वारणसी) का ह्रदय से आभारी हूँ आस्था प्रकाशन के अधिष्ठाता श्री दया शंकर पाण्डे को मै साधूवाद देता हूँ जिन्होनें इस पुस्तक का आकर्षक रूप में यथाशीघ्र प्रकाशन करके पाठकों तक पहूँचाने का कार्य किया है।

Weight 380 g
Dimensions 9006.00 cm

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