पुस्तक का नाम – भाषा का इतिहास
लेखक – पंडित भगवद्दत्त जी
प्रस्तुत पुस्तक भाषा विज्ञान पर आधारित है। इस पुस्तक में भाषा की उत्पत्ति सम्बन्धित सभी मतों का उल्लेख कर उनकी समालोचना की है। वैदिक और मानुषी वाक् का स्वरूप इस पुस्तक में प्रस्तुत किया गया है। जिससे पाठको को यह स्पष्ट हो जायेगा कि प्राचीन आर्य विद्वानों के भाषा विषयक विचार कल्पना मात्र नहीं थे, बल्कि वे सत्य विचार थे। उन विद्वानों की उहा सटीक और वास्तविक थी। ईसाई यहूदी आदि गुटों के विद्वानों के भाषा सम्बन्धित विचार किस प्रकार पक्षपात युक्त हैं यह लेखक ने अनेक प्रमाणों द्वारा दर्शाया है। आक्सफोर्ड अंग्रेजी कोष की कई भ्रान्तियाँ इस पुस्तक में दर्शायी गयी हैं। अन्य भाषाओं और संस्कृत से तुलना कर बताया है कि संस्कृत ही सभी भाषाओं की जननी है तथा जो लोग प्राकृत और तमिल आदि भाषाओं को संस्कृत से पूर्व बताते हैं उनके मतों का निराकरण इस पुस्तक में किया गया है।
इस पुस्तक में लेखक ने भाषा की उत्पत्ति से प्रारम्भ करते हुए भाषा की वृद्धि, ह्रास, भाषा परिवर्तन, वर्ण-विमर्श, आदि भाषा, इंडोयूरोपियन भाषा मत की समीक्षा करते हुए ईरानी, हित्ती, यावन, द्रविड़, प्राकृत, अपभ्रंश, हिंदी पंजाबी आदि के अनेको शब्दों के उदाहरण प्रस्तुत पुस्तक में विवेचन हेतु रखे हैं।
पुस्तक के अंत में परिशिष्ट भाग के रूप में पुस्तक में आये विभिन्न पदों की वर्णमाला क्रमानुसार पद सूची भी प्रस्तुत कर दी गयी है।
इस पुस्तक के तुलनात्मक अध्ययन से पाठकों का ज्ञान और भाषा सम्बन्धित अवधारणाओं का बहुत परिमार्जन हो जायेगा।
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