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चतुर्वेदमन्त्रानुक्रमविवरणिका

Chaturveda Mantranukram Vivaranika

600.00

SKU 36684-PP00-SH Category puneet.trehan

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Subject : Four Veda Mantras Index
Edition : N/A
Publishing Year : 2012
SKU # : 36684-PP00-SH
ISBN : N/A
Packing : N/A
Pages : 816
Dimensions : N/A
Weight : NULL
Binding : Hard Cover
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पुस्तक का नाम चतुर्वेदमन्त्रानुक्रमविवरणिका

लेखक डा. विजयवीर विद्यालंकार

वेद मानवीय साहित्य की अपौरुषेय कृति हैं, इसके बारे में स्मृतिकार कहते हैं –  वेदोऽखिलो धर्ममूलम् धर्मं जिज्ञासमानाना प्रमाणं परमं श्रुति: अर्थात अच्छे और बुरे की परख बताने वाला वेद मात्र ही हैं। वेद के पाठ और वेदों से मन्त्र खोजने की सरलता हेतु इस ग्रन्थ का निर्माण किया गया है इसकी उपादेयता निम्न प्रकार है

१. इस विवरणिका से मूल वेद मन्त्रों के क्रम को बनाये रखने में सहयोग मिलेगा।

२. वेदपाठी प्रारम्भिक मन्त्रांशों का भी क्रमेण पाठ करेगा तो वेदों की क्रमिक स्मृति बनी रहेगी।

३. विभिन्न ग्रन्थों में उद्धृत वेद मन्त्रों के संख्यागत प्रमाणों की जानकारी इस ग्रन्थ के माध्यम से मिल सकेगी।

४. इससे वेदों में पूर्ण प्रवेश तो न सही, चंचु प्रवेश तो हो ही जाएगा।

५. मन्त्रारंभ भाग के निरंतर पारायण से स्मृति पटल पर वेद मन्त्र की छाया परिष्कार रूप में पड़ जायेगी।

६. जहाँ कहीं मूलवेदमन्त्र का पाठ होगा, मन्त्रारंभ में ही आपको पता लग जाएगा कि यह मूलवेद हैं या नहीं।

७. इसके द्वारा सूत्रों की तरह मन्त्रों का स्मरण कर सकेंगे।

८. इससे चारों वेदों में विद्यमान मन्त्र सामान्य और तदत्त वेद के स्वतंत्र मन्त्रों का परिज्ञान भी हो सकेगा।

९. ऋग्वेद के १०५५२, यजुर्वेद के १९७५, सामवेद के १८७५, अथर्ववेद के ५९७७ मन्त्र हैं। इस प्रकार चारों वेदों के कुल २०३७९ संहितागत मूल मन्त्रों की क्रमगत स्थिति का परिज्ञान हो सकेगा।

वेद परायणकर्ता, स्वाध्यायशील एवं अनुसन्धानरत् वेदवत्स महानुभावों के लिए यह चतुर्वेद मन्त्रानुक्रमविवरण सर्वथा उपयोगी सिद्ध होगा।

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