पुस्तक का नाम – सत्यार्थ प्रकाश (उभरते प्रश्न, गर्जते उत्तर)
लेखक का नाम – आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक
आनन्द कन्द स्वामी दयानन्द द्वारा विरचित जितने भी ग्रंथ है, उनमें “सत्यार्थप्रकाश” एक प्रमुख एवं सार्वजनीन ग्रंथ है। इस ग्रन्थ के पूर्वार्ध में मण्डनात्मक शैली व उत्तरार्ध में खण्डनात्मक शैली से मनुष्य मात्र के लिये आवश्यक सभी विषयों का वैदिक और आर्ष पद्धति से ज्ञान दिया है। बहुत से लोग स्वामी जी के इस ग्रन्थ को पढ़कर ही सत्य सनातन वैदिक धर्म की श्रेष्ठता को जानकर जीवनभर इसके प्रचार – प्रसार में समर्पित रहे। इस ग्रन्थ रत्न ने देश को अनेकों बलिदानी वीर दिये।
कभी – कभी इस ग्रन्थ की भाषा बदलकर समसामयिक करने या कुछ भाग निकालकर उसे उसे इतर साम्प्रदायिक लोगों को मान्य बनाने हेतु विचार व्यक्त किये गये हैं। यह ग्रन्थ के साथ न्याय नही कहलायेगा। समाजवादी, सर्वोदयी, वर्णाश्रम विरोधी, भौत्तिकवादी, पाश्चात्य और आधुनिक मतानुयायी एवं कुछ कथित आर्यसमाजी इत्यादि लोग इस ग्रन्थ के कटु आलोचक रहे हैं। खुले हृदय़ से सम्पूर्ण ग्रन्थ को पढ़ने के बाद इस ग्रन्थ के प्रशंसक भी बहुत लोग बने हैं। कुछ कथित आर्यसमाजियों द्वारा और इतर लोगों द्वारा भी सत्यार्थप्रकाश पर शङ्काये और आक्षेप भी बहुत उठाये गये हैं। विभिन्न विद्वानों द्वारा कुछ – कुछ शंकाओं और आक्षेपों का निरसन भी किया गया है। पौराणिक, ईसाई और मुस्लिमों के साथ हुये शास्त्रार्थों में इन आक्षेप और शङ्काओं पर शास्त्रीय और प्रसंगोचित सप्रमाण उत्तर और विवेचन आर्य विद्वानों ने दिये हैं। नियोग और धाय को नवजात बच्चे को दूध पिलाने के लिये रखना इत्यादि विषयों पर शास्त्रीय निरसन प्राप्त है, लेकिन तार्किक और व्यावहारिक उत्तर अभी भी चाहिये, ऐसा बहुत लोग आग्रह करते हैं। सृष्टि उत्पत्ति सम्बन्धित शङ्काओं का विज्ञान सम्मत उत्तर भी अपेक्षित है। सूर्य में मनुष्यादि प्राणियों का होना तथा भूमि के अन्दर से सृष्टि के आदि में युवा पीढ़ी का जन्म लेना, ऐसा प्रश्नों का समाधान देना एक बढ़ी समस्या है। प्रस्तुत पुस्तक “सत्यार्थ प्रकाश उभरते प्रश्न, गर्जते उत्तर” में आचार्य अग्निव्रत जी ने ऐसे ही अनेकों आश्रेपों और प्रश्नों के वैज्ञानिक और तार्किक उत्तर दिये हैं।
प्रस्तुत पुस्तक मूलतः तीन अध्यायों में विभक्त है –
1) पहला अध्याय – क्या सत्यार्थप्रकाश हमें लज्जित भी करता है? इस विषय के अन्तर्गत, नियोगप्रथा, धाय की नियुक्ति, गर्भाधान विधि इत्यादि पर विवेचन है।
2) दूसरा अध्याय ‘पथभ्रष्टों का दम्भ’ है। सत्यार्थ प्रकाश में संशोधन, हिन्द, हिन्दी और हिन्दू की मान्यता, सत्यार्थप्रकाश ग्रन्थ में त्रुटियां, शूद्र, मुर्तिपूजा, मांसाहार – शाकाहार इत्यादि विषयों पर समाधान है।
3) तीसरा अध्याय “अन्य जटिल शंकाओं का समाधान” नामक है। इसमें सूर्य में मनुष्यादि प्राणियों का होना (ख) सृष्टि उत्पत्ति के समय प्राणी और मनुष्यों का भूगर्भ के खोल में तरूण अवस्था में जन्म और (ग) शूद्र एवं पाक कर्म के बारे में विशेष व्यावहारिक समाधान है।
प्रस्तुत पुस्तक द्वारा सत्यार्थप्रकाश की गरिमा के महत्त्व उजागर किया गया है अतः यह पुस्तक स्वाध्याय के लिए सर्वोत्तम ग्रन्थ है।
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