वैदिककोषः
✍🏻 राजवीर शास्त्री
☀️ ग्रंथ परिचय ☀️
‘ वैदिक – कोष ‘ की प्रमुख विशेषताएँ
( १ ) महर्षि दयानन्द ने जो वैदिक पदों का विशेष अर्थ किये हैं , जिनसे वेदों का सत्यार्थ विशेषरूप में आता है , उनको दिखाया गया है ।
( २ ) वैदिक पदों की व्याख्या व्याकरण , निरुत्त तथा ब्राह्मण ग्रन्थों में ऋषियों ने स्पष्ट किया है , उसको दिखाया गया है । यह कार्य गुरुकुल कांगड़ी के आचार्य पं० चमूपति ने वैदिक – कोष में प्रकाशति किया था । उसी शैली में इस वैदिक – कोष को देखकर विद्वद्गण बहुत प्रभावित हुए थे । मुझे स्वामी दीक्षानन्द जी ने यह बड़े हर्ष से कहा था कि आर्ष साहित्य प्रचार ट्रस्ट का यह अद्भुत प्रकाशन है । विद्वानों को यह अमूल्य ग्रन्थ सम्मानपूर्वक भेंट में भी लाला जी ने दिया था ।
( ३ ) वैदिक पदों के अर्थ जानने के लिए विशेषण – विशेष्य का जाना अत्यन्त आवश्यक होता है । और यह कार्य अत्यन्त दुरूह होने पर भी इसे कोष के सहयोग से पाठकों के लिए बहुत सुबोध हो जायेगा । इससे पूर्व के सायणादि के भाष्यों में मन्त्रों में वर्णित रूपक , उपम आदि अलंकारों का स्पष्टीकरण नहीं होता था , यह इस कोष के सहयोग से सुगम हो सकेगा ।
( ४ ) इसी प्रकार वैदिक पदों के सन्दिग्ध एवं अस्पष्ट होने से पाठक सन्देह में रहता था कि मंत्र में ईश्वर , जीवात्मा और प्रकृति का कहाँ – कहाँ वर्णन किया गया है । इस वैदिक – कोषसे यह सरल , सुगम हो सकेगा ।
( ५ ) महर्षि दयानन्द के वेदभाष्य में यह भी स्पष्ट होता है कि मन्त्र का व्याख्या निरूक ब्राह्मण आदि ग्रन्थों में कहाँ – कहाँ की है ।
( ६ ) इस वैदिक – कोष से यह भी स्पष्ट हो जायेगा कि अविद्या आदि पदों को समझने में आदि शंकराचार्य को जो भ्रान्ति हुई , वह प्रभु को न होगी जैसे “अविद्यया मृत्युं तीर्त्वा विद्यायामृतमश्चुते” मन्त्र में अविद्या से मृत्यु को कैसे तर सकता है । इत्यादि बातें इस वैदिक – कोष से जानी जा सकती है ।
( यह पुस्तक आप https://www.vedrishi.com/ से घर बैंठे प्राप्त कर सकते है)
वैदिककोषः
✍🏻 राजवीर शास्त्री
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‘ वैदिक – कोष ‘ की प्रमुख विशेषताएँ
( १ ) महर्षि दयानन्द ने जो वैदिक पदों का विशेष अर्थ किये हैं , जिनसे वेदों का सत्यार्थ विशेषरूप में आता है , उनको दिखाया गया है ।
( २ ) वैदिक पदों की व्याख्या व्याकरण , निरुत्त तथा ब्राह्मण ग्रन्थों में ऋषियों ने स्पष्ट किया है , उसको दिखाया गया है । यह कार्य गुरुकुल कांगड़ी के आचार्य पं० चमूपति ने वैदिक – कोष में प्रकाशति किया था । उसी शैली में इस वैदिक – कोष को देखकर विद्वद्गण बहुत प्रभावित हुए थे । मुझे स्वामी दीक्षानन्द जी ने यह बड़े हर्ष से कहा था कि आर्ष साहित्य प्रचार ट्रस्ट का यह अद्भुत प्रकाशन है । विद्वानों को यह अमूल्य ग्रन्थ सम्मानपूर्वक भेंट में भी लाला जी ने दिया था ।
( ३ ) वैदिक पदों के अर्थ जानने के लिए विशेषण – विशेष्य का जाना अत्यन्त आवश्यक होता है । और यह कार्य अत्यन्त दुरूह होने पर भी इसे कोष के सहयोग से पाठकों के लिए बहुत सुबोध हो जायेगा । इससे पूर्व के सायणादि के भाष्यों में मन्त्रों में वर्णित रूपक , उपम आदि अलंकारों का स्पष्टीकरण नहीं होता था , यह इस कोष के सहयोग से सुगम हो सकेगा ।
( ४ ) इसी प्रकार वैदिक पदों के सन्दिग्ध एवं अस्पष्ट होने से पाठक सन्देह में रहता था कि मंत्र में ईश्वर , जीवात्मा और प्रकृति का कहाँ – कहाँ वर्णन किया गया है । इस वैदिक – कोषसे यह सरल , सुगम हो सकेगा ।
( ५ ) महर्षि दयानन्द के वेदभाष्य में यह भी स्पष्ट होता है कि मन्त्र का व्याख्या निरूक ब्राह्मण आदि ग्रन्थों में कहाँ – कहाँ की है ।
( ६ ) इस वैदिक – कोष से यह भी स्पष्ट हो जायेगा कि अविद्या आदि पदों को समझने में आदि शंकराचार्य को जो भ्रान्ति हुई , वह प्रभु को न होगी जैसे “अविद्यया मृत्युं तीर्त्वा विद्यायामृतमश्चुते” मन्त्र में अविद्या से मृत्यु को कैसे तर सकता है । इत्यादि बातें इस वैदिक – कोष से जानी जा सकती है ।
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