आनन्द स्वामी जी के पास आनन्द का दिव्य धन था और यह धन अक्षय और अपार था। दोनों हाथो से यह धन उन्होंने हर किसी को बांटा। स्वामी जी के सिद्धहस्त लेखक और कुशल कथाकार थे। उनकी लेखनी और वाणी में विनोद था।
इस पुस्तक की विशेषता यह है कि किसी प्राकृतिक दृश्य या मानवीय कर्म को, जो प्रायः हमारी आखों के सामने आते हैं, परन्तु जिन्हें देखते हुए भी हम नहीं देखते हैं. लेकर उनसे अत्युत्तम अध्यात्म-सम्बन्धी शिक्षा ग्रहण की गई है।
पढ़ने वाले के हदय पर उस दृश्य या कर्म के विभिन्न दृष्टिकोणों को लेकर अध्यात्मिक जीवन का एक ऐसा मनोरम दृश्य खींचा जाता है कि मानव आत्मा पर उसका प्रभाव अवश्यम्भावी हो जाता है।
प्रत्येक शिक्षा पाठकों को कुछ सोचने और करने के लिए प्रेरित करती है। इस पुस्तक में कुछ विचार तो इस प्रकार के प्रस्तुत किये गए हैं कि जिनकी आर्यसमाज को अत्यधिक आवश्यकता है।
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