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सम्पूर्ण वेद भाष्यम् (अजमेर)

Sampurna Veda Bhashyam (Ajmer)

8,200.00

SKU N/A Category puneet.trehan
Subject : Four Vedas Commentary
Edition : 2022
Publishing Year : 2022
SKU # : 36840-PP01-0H
ISBN : N/A
Packing : 21 Volumes
Pages : 15600
Dimensions : N/A
Weight : 12540
Binding : Hard Cover
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सम्पूर्ण वेद भाष्य (अजमेर)

सम्पूर्णवेदभाष्यम्
भाष्यकार –
ऋग्वेदभाष्यम् – स्वामी दयानन्द सरस्वती जी (मण्डल 1 से 7वें के 61वें सूक्त तक)

आर्यमुनि जी (7वें मण्डल से 8वें मण्डल तक)
ब्रह्ममुनि जी (9वें मण्डल से 10वें मण्डल तक)

सामवेदभाष्यम् – ब्रह्ममुनि जी
यजुर्वेदभाष्यम् – स्वामी दयानन्द सरस्वती जी
अथर्ववेदभाष्यम् – प्रो. विश्वनाथ विद्यालङ्कार

मनुष्य की विशिष्टता यह है कि वो ब्रह्माण्ड में अन्य जीवों की अपेक्षा अधिक बुद्धिमान है। उसे जीवन निर्वाह और प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग हे तु ज्ञान की आवश्यकता होती है, किन्तु यह ज्ञान स्वाभाविक न हो कर यत्नसाध्य है। मनुष्य प्रारम्भिक ज्ञान अपने माता – पिता और गुरूजनों से सीखता है अतः मनुष्य को निमित्त ज्ञान की आवश्यकता होती है। इससे एक प्रश्न उठता है कि सृष्टि के आरम्भ में जब सर्गारम्भ में जो मनुष्य उत्पन्न हुए थे, उन्हें ज्ञान किसने दिया था? क्योंकि उस समय कोई उनका देहधारी पिता-माता या गुरू नहीं था। अतः उस समय भी कोई ऐसी सत्ता होना अपेक्षित है जो उन्हें ज्ञान दे सके, इसीलिए ईश्वर और ईश्वरीय ज्ञान की सत्ता अपेक्षित है। महर्षि पतञ्जलि ने इसीलिए ईश्वर को गुरूओं का गुरू कहा है – “स एषः पूर्वेषामपि गुरूः कालेनानवच्छेदात्”(यो.द.1.26)।

भारतीय मनीषा का चिरन्तन विश्वास है कि – वेद ईश्वरीय ज्ञान है। कोई ज्ञान ईश्वरप्रदत्त है या नहीं, इसकी निम्न कसौटी है –
1) वह ज्ञान ईश्वर के गुण-कर्म-स्वभाव के अनुकूल हो।
2) सृष्टिक्रम के अनुकूल हो।
3) वह ज्ञान देशकाल की सीमाओं में आवद्ध न होकर मनुष्य मात्र के लिए एक समान उपयोगी हो।
4) किसी भी व्यक्ति, देश-काल का इतिहास वर्णित न हो।

इन सब कसौटियों पर वेद ही विश्व का एकमात्र ग्रन्थ है जो कि खरा उतरता है किन्तु वेद ज्ञान को समझने के लिए उसका अर्थ सहित चिंतन आवश्यक है। महर्षि यास्क ने निरूक्त में कहा है – “यदगृहीतविज्ञात निगदेनैव शब्द्यते |
अंगनाविव शुष्केधो न तज्ज्वलति कर्हिचित” – निरुक्त १/१८
अर्थात जो बिना अर्थ ज्ञान के उच्चारण किया जाता है। अग्निरहित अवस्था में जैसा सुखा ईधन है, वैसे ही वह भी है अर्थात् जलता नही है।

वेदों के अर्थों और ज्ञान को समझने के लिए, इस ज्ञान में प्रवेश के लिए वेदों के भाष्य अर्थात् व्याख्या की आवश्यकता है। वेद भाष्य करने के लिए निम्न शर्तों का होना आवश्यक है –
1) वेदभाष्य में ऋषि, देवता, छन्द और स्वरों को ध्यान में रखते हुए, वेदों का भाष्य हो।
2) वेदों के शब्द यौगिक है इसलिए उनकें व्याकरण, निरूक्त और ब्राह्मणग्रन्थों के द्वारा उचित निर्वचन रखने चाहिए।
3) वेदों के किए गए अर्थों में आपस में वदतु व्याघात दोष न हो।
4) अर्थ प्रकरण को भंग न करे।
ये वेदार्थ की कसौटी है।

प्रस्तुत वेदों के भाष्य परोपकारिणी सभा, अजमेर से प्रकाशित है। ये सब भाष्य उपरोक्त नियमों पर खरे उतरते हैं। इन भाष्यों की निम्न विशेषताएँ हैं –
1) इसमें स्वामी दयानन्द जी द्वारा किया गया, संस्कृत में पदार्थान्वय और भावार्थ सम्मलित है जो कि अन्य प्रकाशित संस्करणों में नहीं है।
2) पाठों को शुद्धतम करके रखा गया है।
3) इसमें आर्यमुनि जी कृत वेदों की भूमिका और उपसंहार को भी सम्मलित किया गया है जिसमें वेदों से सम्बन्धित अनेकों महत्त्वपूर्ण लेख है।
4) अथर्ववेद के भाष्य में मुख्य मुख्य काण्डों की पूर्व में भूमिका प्रस्तुत की गई है।
5) इनमें स्थान-स्थान पर सायण, महीधर और मैक्समूलर के भाष्यों की समीक्षा की गई है।

इन वेदभाष्यों में मुख्यतः जिन विषयों पर प्रकाश डाला है, वह निम्न प्रकार है –

ऋग्वेदभाष्यम् – यह भाष्य 13 खंडों में है। इसमें 7 वें मण्डल से 61 वें सूक्त तक का भाष्य स्वामी दयानन्द जी कृत है तथा शेष भाष्य आर्य्य मुनि जी और ब्रह्ममुनि जी रचित है।
जिनमें प्रमुख रूप से अग्नि विद्या, विमान विद्या, चिकित्सा विज्ञान, पवन और सूर्य ऊर्जा विज्ञान, गणित विद्या, राजनीति, सृष्टि रचना, अर्थशास्त्र, शिल्प विद्या, धातु विद्या, भूगर्भ विद्या, विद्युत विद्या आदि का वर्णन है। इन सब भौत्तिक विद्याओं के साथ-साथ आध्यात्मिक तथ्य और अन्य व्यवहारिक शिक्षाओं का भी ऋग्वेद में समावेश है।

यजुर्वेदभाष्यम् – यह भाष्य 4 खण्डों में है। यह सम्पूर्ण भाष्य स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा विरचित है। ऋग्वेद में ईश्वर ने गुण और गुणी के विज्ञान के प्रकाश के द्वारा सब पदार्थ प्रसिद्ध किये हैं, उन मनुष्यों को पदार्थों से जिस-जिस प्रकार यथायोग्य उपकार लेने के लिये क्रिया करनी चाहिए तथा उस क्रिया के जो-जो अङ्ग वा साधन है, वे सब यजुर्वेद में प्रकाशित किये हैं।

सामवेदभाष्यम् – यह भाष्य 2 खण्डों में है। यह सम्पूर्ण भाष्य ब्रह्ममुनि परिव्राजक जी द्वारा रचित है। इसमें उपासना विषय पर सारगर्भित और मार्मिक व्याख्या है।

अथर्ववेदभाष्यम् – यह भाष्य 3 खण्डों में है। यह सम्पूर्ण भाष्य विश्वनाथ विद्यालङ्कार जी द्वारा रचित है। अथर्ववेद में ज्ञान, कर्म एवं उपासना तीनों का सम्मिश्रण है। इसमें जहाँ प्राकृतिक रहस्यों का उद्घाटन है, वहाँ गूढ़ आध्यात्मिक रहस्यों का भी विवेचन है। यह धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के साधनों की कुञ्जी है।

अथर्ववेद को ब्रह्मवेद, अथर्वाङ्गिरसः, छन्दवेद, चित्तवेद, अमृतवेद और आत्मवेद भी कहते हैं। अथर्ववेद में 20 काण्ड, 111 अनुवाक, 731 सूक्त और 5977 मन्त्र है।

अथर्ववेद में शिल्प विद्या, विष चिकित्सा विज्ञान, चिकित्सा विज्ञान, रश्मि विज्ञान, युद्धादि सम्बन्धित विज्ञान, अर्थशास्त्र और राजनीति शास्त्र आदि अनेकों विद्याओं का सम्मिश्रण है।

इस तरह ये चारों वेदों का समुच्चय है। आशा है कि आप सब इस वेद समुच्चय को मंगवाकर, अध्ययन और मनन से अपने जीवन में उन्नति करेंगे।

1 review for Sampurna Veda Bhashyam (Ajmer)

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  1. Rishika

    This set has 21 volumes… The most comprehensive set of books that has the most detailed explanation of the Ved-mantras. Vedas cover many streams of knowledge and ancient wisdom. Some people will connect with one set of mantras whereas other people will find a different set of mantras logical and convincing. It depends upon one’s thirst of knowledge about what you are going to extract from it. I, as an individual, bought it as a collection of reference books. You will find Ved-mantras, borrowed in different subjects such as vedic-mathematics, Indian philosophy and history. This whole set of books will stay in my family forever now. Thanks to all those people who preserved this knowledge just by memorizing it and transferring it from one generation to the next. It is my honor to have it in book form. Thanks to Swami Dayanand Saraswati Ji for the interpretation of all vedic mantras in Hindi and Sanskrit.Thanks to publisher and providers for a great collection.

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