पुस्तक का नाम – आश्वलायनगृह्यसूत्रम्
अनुवादक का नाम – डॉ. जमुनापाठकः
गृह्यसूत्र भारतीय संस्कृति के नियामक ग्रन्थ है। इनका भारतीय जीवन को परिष्कृत, नियमित और व्यवस्थित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। इन्हीं के आधार पर अपना जीवन यावन करते हुए भारतीय उत्कृष्ट, आदर्शमय, परिष्कृत और व्यवस्थित जीवन व्यतीत करते थे। पाश्चात्य भी इनका अनुकरण करके अपने जीवन को उसी प्रकार से उत्कृष्ट और शान्त बनाने का यत्न करते थे। इसी कारण भारत को सम्पूर्ण विश्व में जगद्गुरु होने की प्रतिष्ठा प्राप्त थी। यद्यपि अधुना भारतीय भी पाश्चात्य सभ्यता से प्रभावित हुए हैं। उनके भी जीवन को भौत्तिकता से व्यथित विश्वजन जीवन में शान्ति के लिए उनकी ओर दृष्टिपात किये हुए हैं। प्राचीन भारतीय जीवन में यज्ञायागादि का महत्त्वपूर्ण स्थान था और उनका जीवन यज्ञयागादियों से पूर्णतः आप्लावित था जो आज भी अल्पाधिक रूप से भारतीय जीवन का अवलम्ब है। उस संस्कृति के कुछ मूलतत्त्व तो आज भी मूलरुप विद्यमान है किन्तु कुछ त्तत्व प्रतीकमात्र उपलब्ध होते हैं जिनसे उनका मूलस्वरुप प्रकाशित होता है।
सम्प्रति प्रत्येक वेद से सम्बन्धित कई गृह्यसूत्र आज प्रचलित है, इनमें से आश्वलायन गृह्यसूत्र ऋग्वेद के गृह्यसूत्र से सम्बन्धित है। यह गृह्यसूत्र आश्वालयन शाखा से सम्बन्धित है। यह चार अध्यायों में विभक्त है। अध्यायों का विभाजन कण्डिकाओं में किया गया है। प्रथम अध्याय में चौबीस, द्वितीय अध्याय में दस, तृतीय अध्याय में बारह तथा चतुर्थ अध्याय में नौ कण्डिकाएँ है।
प्रथम अध्याय में गृह्याग्नि में होने वाले वैश्वदेव आदि कर्मों तथा विवाह से लेकर उपनयन तक सभी का वर्णन है।
द्वितीय अध्याय में श्रवणा, आश्वयुजी आदि कर्मों, अष्टका, अन्वष्टका श्राद्धों तथा गृहनिर्माण-विधि का विवेचन किया गया है।
तृतीय अध्याय में पञ्चमहायज्ञों का स्वाध्याय विधि, तर्पण, उपाकरण कतिपय प्रायश्चित विधान तथा समावर्तन का वर्णन है। चौथे अध्याय में अन्तेष्टि का वर्णन है।
महर्षि दयानन्द जी ने भी सांस्कृति विधि नामक ग्रन्थ में इस गृह्यसूत्र से अत्यधिक सहायता ली है।
प्रस्तुत संस्करण नारायणवृत्ति और भाषानुवाद सहित है। जिससे यह हिन्दी माध्यम से वेदाध्यायियों के लिए अत्यन्त लाभदायक है। व्याख्या और अनुवाद के पश्चात् सूत्र पर विमर्श भी संयोजित किया गया है, जिसमें सूत्र में प्रतिपादित तथ्यों का स्पष्टीकरण और गृह्यसूत्र के संकेत के रुप में प्रयुक्त अन्य मन्त्रों की भी हिन्दी दी गई है जिससे गृह्यसूत्र के सूत्र भली भांति बोधगम्य हो।
इस ग्रन्थ के अध्ययन द्वारा पाठकों को अपने जीवन को आचार्यमय बनाना चाहिए तथा आज के युग में भी प्राचीन सुसंस्कृत की महत्ता को समझते हुए आदर्श का पुनः प्रचार प्रसार करना चाहिए।
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