पुस्तक का नाम – सन्मार्ग दर्शन
लेखक का नाम – स्वामी सर्वदानन्द सरस्वती
वेद के शब्दों में भक्त प्रार्थना करता है।
मा प्र गाम पथो वयम्। – ऋ. 10-57-1
हम पथ से विचलित न हों, मार्ग से भटकें नहीं।
वह मार्ग कौन सा है। वह मार्ग है – वैदिक पथ। वेद परमात्मा का दिव्यज्ञान है। इसमें मनुष्यों के सभी कर्तव्य कर्मों का विशद विवेचन है। हम इधर-उधर न भटक कर वैदिक पथ पर ही चलें। यही कल्याण का मार्ग है। यही इहलौकिक और पारलौकिक, अभ्युदय और निश्रेयस की प्राप्ति का मार्ग है। जो वैदिक पथ का अनुसरण करेगा, वह न ठोकर खा सकता है, न भटककर मार्गभ्रष्ट हो सकता है।
सन्मार्गदर्शन में इसी वैदिक पथ की मनोहारी व्याख्या है। वीतराग स्वामी सर्वदानन्दजी महाराज ने सूत्र शैली को अपनाते हुए मानव जीवन के सभी बिन्दुओं पर प्रकाश डाला है। सर्वप्रथम परमपिता परमात्मा के सर्वश्रेष्ठ, सर्वोत्तम और निज नाम ओम् की व्याख्या है। तत्पश्चात् अन्य विषयों पर सुन्दर विवेचन है।
धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष जीवन के चार फलों का मनुष्य के परमपुरुषार्थ का, उसके उपायों का रोचक वर्णन है। मुक्ति के साधन के रुप में पंचकोशों की व्याख्या है।
वर्ण और आश्रम धर्मों का विवेचन है। इसी प्रसंग में पञ्चमहाज्ञों का वर्णन है। इन वर्णनों के साथ परिवार, समाज और राष्ट्र के कल्याण के लिए स्थान-स्थान पर सुझाव दिये गये हैं। प्रसङ्गवश अवैदिक मतों का तर्कपूर्ण खण्डन करके वैदिक मन्तव्यों की स्थापना की है।
सारा ही ग्रन्थ अत्युत्तम है। सभी विषय महत्त्वपूर्ण हैं, परन्तु सरलगतिः तो इसका मुकुटमणि है। साधारण से साधारण व्यक्ति भी इसे समझकर इससे लाभ उठा सकता है। सभी दृष्टान्त अत्यन्त रोचक और शिक्षाप्रद है।
स्वामीजी महाराज की भाषा तो अनूठी है। स्वामीजी महाराज भाषा के शिल्पी प्रतीत होते है। गद्य होने पर भी भाषा काव्यमयी है। भाषा में गति है, लय है, तुक है। अनुप्रास की छटा देखते ही बनती है।
आशा है कि हमारे पाठक इस सहज प्राप्त ज्ञान का सम्पूर्ण लाभ उठाकर अपने जीवन का साध्य प्राप्त करने की ओर अग्रसर होंगे।
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