आपस्तम्बश्रुतसूत्र का यद्यपि कृष्णयजुर्वेदीय श्रौतसूत्रों में क्रमिक तृतीयक स्थान है, जो कि गुरु सम्प्रति व्यवहार में सर्वोपरि है। एक प्रकार से अघोषित रूप से यह कृष्णयजुर्वेदीय सभी दस्तावेजों में शामिल है। संपूर्ण आपस्तंभकल्पसूत्र में कुल तीस प्रश्न शामिल हैं जिनमें से अंत वाले छः आदर्श में क्रमशः गृह्यसूत्रीय मंत्रपाठ, गृह्यसूत्र, धर्मसूत्र और शब्दसूत्र है। इस प्रकार आपस्तम्बकल्पसूत्र के स्टाइकिक अलग-अलग टुकड़ों में श्रौतसूत्र- विषयक व्याख्या की गई है। श्रौतसूत्र का प्रत्येक प्रश्न खण्ड शास्त्री में विभक्त हैं। इन काण्ड में सूत्र है। इस श्रौतसूत्र में कुल 588 कण्डिकाएँ और 7592 सूत्र हैं।
सूत्ररूप में उपनिहित तथा यज्ञविषयक गूढ़ सिद्धांत का विवेचन होने के कारण इसका सम्यग् अवबोध कठिन तथा दुरूह है। कई नए शब्दों के प्रयोग से यह सम्यग् ज्ञान और कठिन हो जाता है। जैसे वाचा पात्राणम् = वाचाध्याय कर्म, स्त्रीव्यञ्जनानि स्त्रीत्व- द्योतक यथास्थिति। अपाणिनीय प्रयोग और अप्रचलित शब्दों के प्रयोग से ग्रंथ की दुरूहता और वृद्धि होती है। ऐसे ग्रन्थ पर भाष्यसम्पत्ति भी एक है। जो भाष्य उपलब्ध है, वे भी अपूर्ण होने के कारण पूर्णोपयोगी के लिए ग्रन्थ के तथ्य समझने योग्य नहीं हैं। इस ग्रन्थ पर धूर्तस्वामी का अपूर्ण भाष्य प्रकाशित है। भरतरुद्रदत्त की संस्था द्वारा प्रकाशित इस संस्करण में आशिक पन्द्रह स्कूल की स्थापना की गई है। इस श्रौतसूत्र के कतिपय आदर्श पर चाण्डाचार्य की टीकाएँ और कुछ श्लोकों पर कपार्डीस्वामी के भाष्य की व्याख्या है भाई ये दोनों भाष्य भी अप्रकाशित हैं। श्रौतयागों पर ‘आपस्तम्ब दर्शनपूर्णमासेष्टि प्रयोग’ नामक एक ग्रन्थ मनोरंजनाश्रम पुणे से प्रकाशित हुआ है।
प्रकृत ग्रन्थ की दुरुहता को ध्यान में रखकर इस संस्करण का प्रकाशन किया जा रहा है। इस संस्करण में श्रौतसूत्र के प्रारम्भिक पन्द्रह प्रश्नों पर भट्टरुद्रदत्त की वृत्ति के साथ-साथ सूत्रों की पदानुसारी व्याख्या दी गयी है जो संस्कृत और हिन्दी दोनों भाषाओं के माध्यम से वेदाध्यायियों के लिए उपयोगी सिद्ध होगा-ऐसी आशा है। शेष षोडश से चतुर्विंश प्रश्न तक भाष्य न मिलने के कारण सूत्रों की केवल हिन्दी व्याख्या दी गयी है। इससे भी वेदाध्येताओं को ग्रन्थ को समझने में सहायता मिलेगी ।
इस संस्करण की पूर्णता में करुणासागर भगवान श्रीराम की इच्छा और उनके परमभक्त श्रीहनुमान जी की अर्हतुकी अनुकम्पा ही मूल कारण है
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