पुस्तक का नाम – रोग तथा उनकी होम्योपैथिक चिकित्सा
लेखक का नाम – डॉ. सत्यव्रत सिद्धान्तालङ्कार
चिकित्सा जगत में अनेकों पद्धतियाँ प्रचलित है जिनमें प्रमुख आयुर्वेद, होम्योपैथी और ऐलोपैथी है। इन सबकी कार्यशैली में अनेकों समानताऐं है तो अनेकों भिन्नताऐं भी है। यदि होम्योपैथी की बात की जाए तो यह रोग के लक्षणों पर कार्य करके रोग को समाप्त कर देती है जबकि ऐलोपैथी में रोग के नाम के बाद उस रोग के निदान का कार्य आरम्भ हो जाता है। इसको इस उदाहरण से समझा जा सकता है कि कोई सिर दर्द का रोगी किसी ऐलोपैथी चिकित्सक के पास जाता है तो वह उससे पूछेगा कि क्या हुआ? इस पर रोगी कहेगा कि मेरे सिर में दर्द है और इस पर चिकित्सक कोई दर्द की या सिर दर्द की गोली दे देगा। इससे रोगी का सिर दर्द तो सही हो जाएगा किन्तु मूल समस्या का जड़ से नाश नही होगा। अब यदि रोगी किसी होम्योपैथी के चिकित्सक के पास जाता है तो चिकित्सक उससे कई प्रश्न करेगा जैसे – सिर दर्द कब शुरु हुआ? कबसे है? सुबह – सुबह होता है या सुबह शाम, दोपहर को रात्रि को कब – कब होता है और कब – कब नहीं होता है? सिर दर्द सिर के बाईं तरफ है या दाईं तरफ अथवा बाईं – दाईं दोनों तरफ होता है। इन लक्षणों को जानने के बाद होम्योपैथी चिकित्सक उसे औषधि देगा। इससे रोग की जड़ अर्थात् उसके लक्षणों का ही नाश हो जाएगा। अतः होम्योपैथी में चिकित्सा से पूर्व रोग तथा रोगों के लक्षणों को जानना आवश्यक है इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए ही प्रस्तुत पुस्तक का निर्माण किया गया है। जहां अन्य पुस्तकों में भिन्न – भिन्न रोगों पर भिन्न – भिन्न औषधियाँ देकर इतिश्री कर दी जाती है वहीं प्रस्तुत पुस्तक में रोगों के लक्षण और उनकी औषधि का सङ्ग्रह किया गया है। साथ ही साथ प्रस्तुत पुस्तक में औषधियों का उल्लेख करते हुए उस – उस रोग में दी जानेवाली अन्य औषधियों की आपसी तुलना भी साथ – साथ की गई है।
इस पुस्तक की प्रमुख विशेषता यह है कि यह हिन्दी भाषा में होने के कारण हिन्दी भाषाई पाठकों के लिए अत्यन्त लाभदायक सिद्ध होगी क्योकि प्रायः इस प्रकार की पुस्तकें अंग्रेजी या अन्य जर्मन आदि विदेशी भाषाओं में ही होती है।
आशा है कि जिन – जिन हाथों में यह पुस्तक पहुँचेगी वे होम्योपैथी पर की गई वर्षों की साधना का लाभ उठा सकेंगे
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