पुस्तक का नाम – यज्ञ चिकित्सा
लेखक का नाम – डॉ. फुन्दनलाल अग्निहोत्री
क्षयरोग (टी.बी.) प्राचीनकाल से एक संहारक और व्यापक रोग रहा है। अन्तिम अवस्था में पहुचनें पर यह पहले भी असाध्य माना जाता था और आज भी असाध्य माना जाता है। ऐसे भयंकर रोग से बचने का सर्वोत्तम उपाय है – पूर्ण सावधानी, अर्थात् रोग उत्पन्न करने के कारणों से ही बचा जाये अथवा उन कारणों को पहले ही नष्ट कर दिया जाये। आयुर्वेद में इसी को ‘पथ्य’ कहा गया है। आहार – विहार में पथ्य का ध्यान रखने वाला व्यक्ति समस्त रोगों से बचा रह सकता है।
लन्दन में वर्तमान चिकित्सा-विज्ञान से शिक्षा प्राप्त और टी.बी. अस्पताल जबलपुर के प्रसिद्ध क्षयरोग चिकित्सक डॉ. फुन्दनलाल ने इस भयंकर रोग से बचने का और रोग हो जाने पर उसकी चिकित्सा करने का एक महत्त्वपूर्ण उपचार बताया है – यज्ञ चिकित्सा।
यज्ञ वैदिक ऋषियों द्वारा किया गया उत्कृष्ट आविष्कार है। यह ईश्वर भक्ति का साधन है, पर्यावरण की शुद्धि का आधार है, रोगों से बचाव का साधन है।
प्राचीन शास्त्रों में रोगविशेष के निवारण के लिए यज्ञों का उल्लेख मिलता है। उन यज्ञों को “भैषज्य यज्ञ” नाम दिया गया है –
भैषज्ययज्ञा वा एते, ऋतुसन्धिषु प्रयुज्यन्ते।
ऋतुसन्धिषु व्याधिर्जायते।। – गो. ब्रा. उत्तरार्चिक 1.19
अर्थात् भैषज्ययज्ञ ऋतुओं के मेल के समय किये जाते हैं क्योंकि ऋतुसन्धिकाल में अनेक रोग उत्पन्न होते हैं।
इस प्रकार यज्ञ से रोगों की चिकित्सा करना एक प्राचीन वैज्ञानिक पद्धति है। उसी वैज्ञानिकता का लेखक ने प्रस्तुत पुस्तक में पुनरुद्धार किया है।
प्रस्तुत पुस्तक में डॉ. फुन्दनलाल ने अपनी खोज से हमारे सामने पुनः नये ढ़ग से यज्ञ के महत्त्व और उपयोग को प्रस्तुत किया है। चिकित्सा वैज्ञानिक होने के कारण और उपयोग को प्रस्तुत किया है। चिकित्सा वैज्ञानिक होने के कारण इनकी प्रत्येक शोध विज्ञान सम्मत है।
पाठकों को इस पुस्तक से श्रद्धापूर्वक लाभ उठाना चाहिए और यज्ञ को अपनाकर स्वयं को तथा परिवार को अनेक रोगों से बचान चाहिए।
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