पुस्तक का नाम – वेदतत्त्व श्राद्ध-निर्णय
लेखक का नाम – पं. शिवशङ्कर शर्मा ‘काव्यतीर्थ’
महर्षि दयानन्द जी ने प्रबल स्थापना की थी कि वेदों में कहीं भी मृतक श्राद्ध का वर्णन नहीं है। वेदों में जीवित पितरों अर्थात् माता पिता और आचार्यादियों की सेवा का विधान है, यही श्राद्ध कहलाता है। महर्षि के समय और उनके बाद भी कई लोगों ने जीवित श्राद्ध पर अनेकों आक्षेप किये और उनका समाधान भी विभिन्न आर्य विद्वानों ने लेखों और शास्त्रार्थ के माध्यम से किया।
आर्यसमाज के ही श्रेष्ठ विद्वान पण्डित शिवशङ्कर शर्मा जी ने भी श्राद्ध विषय पर प्रस्तुत पुस्तक “वैदतत्त्व-प्रकाश श्राद्ध-निर्णय” लिखी है। इस पुस्तक में मृतक श्राद्ध का खंड़न और जीवित श्राद्ध का मंड़न किया गया है। इस पुस्तक में जीवित श्राद्ध के पक्ष में उठने वाली अनेकों समस्याओं और आक्षेपों का समाधान किया गया है जिनमें से कुछ निम्न प्रकार हैं –
1) पितरों के लिए दक्षिणायन समय का विधान क्यों किया गया है?
2) पितरों के लिए कृष्णपक्ष का विशेष विधान क्यों किया गया है?
3) पितरों के लिए रात्रिकाल का उल्लेख का अभिप्राय क्या है?
4) पितरों के लिए अपराह्न भाग क्यों है?
5) पितरों के लिए विशेष तिथि अमावस्या किस लिये है?
6) सांयकाल को पितृप्रसू क्यों कहते हैं?
7) केवल पितरों के ही सम्बन्ध में स्वधा शब्द के प्रयोग क्यों होते हैं?
😎 इस स्वधा शब्द का क्या अर्थ है?
9) यम कौन है? यम के दो कुत्तों और चित्रगुप्त का क्या आशय है?
10) पितर कौन है? अग्निष्वात्, अग्निदग्ध, बर्हिषद, सोम्य, सुकाली, अंगिरा आदि पितृगण कौन है? पितर प्राचीनवीती का क्या आशय है? इसमें ब्राह्मण भोज की सावधानता किसलिए है?
11) अमावस्या मासिक श्राद्ध ही सब आचार्यों नें क्यों विहित रखा है?
12) सन्यासियों को क्यों श्राद्ध निषेध किया गया है?
13) पितृऋण और पुत्र शब्दार्थ क्या है?
14) गया बौद्ध स्थान होने पर भी वहां श्राद्ध का इतना महत्त्व क्यों?
15) महाभारत की आख्यायिका क्या सूचित करती है?
16) श्राद्ध में तिलों का महत्त्व क्यों?
17) पाणिनी में श्राद्ध का क्या अभिप्राय है?
18) श्राद्ध विषयक ईश्वरीय नियम क्या है?
इस तरह के अनेकों प्रश्नों और शङ्काओं का समाधान इस पुस्तक में शास्त्रोक्त प्रमाणों द्वारा दिया गया है।
इस पुस्तक को पाठकों को अवश्य ही अध्ययन करना चाहिए ताकि किसी भी प्रकार का संदेह मस्तिष्क में न रहें।
प्राप्ति स्थल
वेद ऋषि
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