अथर्ववेद विज्ञान का वेद है। जो तीनों वेदों में नहीं वह अथर्ववेद में है। इसमें नाना प्रकार की चिकित्साओं और औषधियों का भी वर्णन है।
पश्चात्य विद्वानों ने वेद का गौरव गिराने के लिए इसे जादू-टोने का वेद बताकर अनर्गल प्रलाप किया है। इस वेद में जादू-टोनेवाला एक भी मन्त्र नहीं है। अन्य वेदों की भाँति इस वेद में भी परमात्मा के आदेश, उपदेश और सन्देश है। महर्षि दयानन्द के शब्दों में ‘वेद सब सत्यविद्याओं का पुस्तक है। वेद का पढ़ना-पढ़ाना और सुनना-सुनाना सब आर्यों का परम धर्म है। स्वय वेद पढ़ो, उनपर आचरण करो।
जो मनुष्य घोर संसाररूपी समुद्र से पार होना चाहता है, वह वेदरूपी नौका पर चढ़कर सुख से पार उतर सकता है। हमने चारों वेदों को शुद्धतम छापने का संकल्प किया था। अपनी ओर से हमने पूर्ण प्रयत्न किया है। अब तक जितने भी संस्करण छपे हैं और जहाँ से भी छपे हैं, यह उनमें सर्वोत्कृष्ट है। इस वेद के ईक्ष्यवाचन प्रूफ रीडिंग, में श्री हनुमत्प्रसादजी नौटियाल, उपाचार्य गुरुकुल टटेसर, दिल्ली, ने अमूल्य सहयोग दिया है, तदर्थ उन्हें हार्दिक साधुवाद देता हूँ। इतने शुद्ध, नयनाभिराम और सस्ते वेद अन्यत्र कहीं भी उपलब्ध नहीं होंगे। इसकी टाइप अन्य संस्करणों की अपेक्षा मोटी रक्खी गई है। पाठगण ! इन्हे आप स्वयं क्रय कीजिए और अन्यों को प्रेरित कीजिए। गुरुकुलों में अभ्यास के लिए, वेद पाठ के लिए, वेद परायण यज्ञों के लिए तथा वेद-मन्त्रों को कण्ठस्त करने के लिए अथर्ववेद (मूल मात्र) का यह संस्करण अत्यन्त उपर्युक्त है।
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