प्रियपाठक वृन्द! वर्तमान में इतिहास के नाम पर पढ़ाए जा रहे विषय में हमें बार-बार विदेशी लुटेरे आक्रमणकारियों द्वारा की गई लूट- पाट, कत्लेआम व अत्याचारों का वर्णन मिलता है। इसके साथ ही भारत के राजाओं द्वारा की गई गलतियों का भी वर्णन मिलता है, जिनसे हमारी हार हुई। इनका उद्देश्य यही है कि हम भविष्य में ऐसी गलतियाँ करने से बचें। यह तो अच्छा है, पर जिन सुल्तानों का चरित् पढ़ाया जाता है, उनका जीवन उन प्रेरक प्रसंगों से बिल्कुल सूना है, जिनसे भावी पीढ़ी अपने जीवन को उदात्त भावों से भर सके। इतिहास के विद्यार्थी को सिकन्दर के आक्रमण (३२६ ई० पू०) से लेकर १९४७ ई० तक भारत का इतिहास चीखों, चिल्लाहटों व लाशों से भरा दिखाई देता है और हमारे जिन पूर्वजों के उदात्त जीवन से प्रेरणा मिल सकती थी, उन्हें काल्पनिक कहकर इतिहास से हटा दिया गया और जो इस काल में थे, उन्हें गौण कर दिया गया। और प्रचार किया गया कि आर्यों को इतिहास लेखन का ज्ञान नहीं था। ‘संस्कृत साहित्य का इतिहास में आर्थर मैक्डानल ने तो यहाँ तक लिख दिया कि भारत में इतिहास का अस्तित्व ही नहीं। उन्होंने (आर्यों ने) इतिहास लिखा ही नहीं था क्योंकि उन्होंने कभी कोई ऐतिहासिक (उल्लेखनीय) कार्य किया ही नहीं था।’ जबकि हमारे प्राचीन ग्रन्थों में ‘इतिहास’ शब्द महाभारत, ब्राह्मण ग्रन्थ आदि के लिए अनेक बार प्रयुक्त हुआ है। $
डॉ० सुरेन्द्र कुमार शर्मा ‘अज्ञात’ ने भी यह जानते हुए कि हमारा इतिहास बहुत पुराना है, उसकी उपेक्षा कर मात्र २५०० वर्ष के इतिहास को लेकर कह दिया कि हमारा इतिहास एक तरह से पराजयों की लम्बी दास्तान है और ‘हिन्दू इतिहास : हारों की दास्तान’ पुस्तक लिख दी। इसमें अन्य पुस्तकों की तरह ही हमारी हार के कारणों (एकता का अभाव, सुदृढ़ अस्त्रशस्त्रों का अभाव, हाथी की भूमिका, अन्धविश्वास आदि) को हिन्दुत्व विरोधी (कम्यूनिस्ट) विचारधारा में रंगकर विद्वेषपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया है।
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