भारत देश में हिन्दू, हिन्दू धर्म, हिन्दू दर्शन, हिन्दुत्व, हिन्दुवाद पर चिंतन-चर्चा व विचार-विमर्श की एक लंबी परंपरा रही है। हिन्दुत्व पर विचारों का आदान-प्रदान, तर्क-प्रतितर्क अनंत व असीम रहा है। परिभाषाओं को स्थापित-विस्थापित करने का क्रम निरंतर प्रवाहित होता रहा है। अपनी-अपनी समझ व दृष्टि से हिन्दुत्व के विविध आयामों को लिपिबद्ध व शब्दबद्ध करने का प्रयास भी सनातन काल से चला आ रहा है। रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानन्द, स्वामी दयानंद, वीर सावरकर, महर्षि अरविन्द, बाल गंगाधर तिलक, महात्मा गाँधी, पंडित दीनदयाल उपाध्याय, डॉ० लोहिया, डॉ० हेडगेवार, श्रीगुरुजी आदि महानायकों ने हिन्दुत्व पर अपने दृष्टिकोण को समाज के सम्मुख प्रस्तुत किया है। किसी की दृष्टि में 'हिन्दुत्व' शब्द नहीं वरन विचार है तो किसी के अनुसार यह जीवन जीने की शैली है। किसी के अनुसार यह अनेक युगों का विकासफल है तो किसी के अनुसार सिंधु नदी के तट पर विकसित सभ्यता और विभिन्न धर्मों का समुच्चय। वीर सावरकर के अनुसार एक ही रक्त, एक ही संस्कृति, समान प्रथाओं और विधियों, एक ही इतिहास के योग से ही हिन्दुत्व बना है। संस्कृत के निम्न सुभाषित में उन्होंने हिन्दुत्व का सार प्रस्तुत 2
किया है:
आसिंधु सिंधु पर्यन्ता यस्य भारतभूमिकाः। पितृभूः पुण्यभूश्चैव स वै हिंदुरिति स्मृतः।।
अर्थात्
प्रत्येक व्यक्ति जो सिंधु से समुद्र तक फैली भारतभूमि को – साधिकार अपनी पितृभूमि एवं पुण्यभूमि मानता है, वह हिन्दू है। 'पितृभू' और 'पुण्यभू' शब्दों के विशिष्ट अर्थ हैं। पितृभू का अर्थ है अपने पूर्वजों की कर्मभूमि और पुण्यभू का अर्थ है – जो जिस दर्शन को मानते हैं, उस दर्शन का प्रतिपादन करने वाले दार्शनिकों के कार्य, निवास एवं संस्कृति द्वारा बनी पवित्र भूमि।"
ऐसा ही चिंतन सन् 1994 में न्यायमूर्ति भरूचा और न्यायमूर्ति अहमदी ने प्रस्तुत करते हुए कहा था "सामान्यतः हिन्दुत्व एक जीवन-दर्शन के अतिरिक्त कुछ भी नहीं। यह सहिष्णु है। इस्लाम, ईसाई, पारसी, यहूदी, बौद्ध, जैन, सिख आदि मत के लोग इसीलिए इस देश में संरक्षण प्राप्त कर सके।" विचारों की विविधता ही हिन्दुत्व का आधार है और हिन्दुत्व हमारी राष्ट्रीयता का आधार। इसकी मूल प्रकृति आध्यात्मिक है, अहिंसात्मक है। परमात्मचिंतन इसकी अमरता का स्रोत है। प्रस्तुत पुस्तिका 'हिन्दुत्व आंदोलन – क्या, क्यों और कैसे?' के लेखक डॉ० सत्य प्रकाश सिंह ने उचित ही लिखा है कि हिन्दुत्व एक सांस्कृतिक आंदोलन है और इसका आधार मानवतावाद है तथा हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद का रास्ता मानवतावाद की मंजिल पर जाकर समाप्त होता है। वह हिन्दुत्व दर्शन को और स्पष्ट करते हुए लिखते हैं कि हिन्दुत्व आंदोलन इस दर्शन में विश्वास करता है कि समस्त मानवीय प्रयास सद्जीवन के लिए होने चाहिए और जो भी मानवीय कार्य सद्जीवन में सहायक नहीं है, उसे मान्यता नहीं दी जानी चाहिए। डॉ० सत्य प्रकाश के इस चिन्तन को उन्हीं के शब्दों में समझा जा सकता है “हिन्दुत्व आन्दोलन अल्पसंख्यक समुदायों के पृथक अस्तित्व एवं पहचान को पूर्ण मान्यता देता है तथा इनकी पूजा-पद्धतियों के प्रति पूर्ण आदरभाव रखता है परन्तु यह अल्पसंख्यकवाद के खिलाफ है क्योंकि इससे पृथकतावाद को बढ़ावा मिलता है जो राष्ट्र के स्वास्थ्य के लिए अहितकर है।
डॉ० सत्यप्रकाश ने इस पुस्तिका में हिन्दुत्व की प्रमुख मान्यताओं, दृष्टिकोणों एवं कार्यों को 28 बिन्दुओं के अंतर्गत रेखांकित किया है जिनमें प्रमुख हैं: हिन्दुत्व और धर्मनिरपेक्षता, हिन्दुत्व और धर्म, हिन्दुत्व आंदोलन और अल्पसंख्यकवाद, हिन्दुत्व और राष्ट्र निर्माण, हिन्दुत्व आंदोलन और वामपंथ, हिन्दुत्व आंदोलन एवं जातिवाद, हिन्दुत्व आंदोलन एवं भारतीय जीवन मूल्य तथा अंत में हिन्दुत्व आंदोलन एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। इस अंतिम उपशीर्षक के अन्तर्गत डॉ० सत्य प्रकाश लिखते हैं कि हिन्दुत्व आंदोलन को नयी दिशा एवं धार देने के लिए सन् 1925 में डॉ० हेडगेवार के नेतृत्व में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नींव पड़ी। विभिन्न भारतीय समुदायों के हित साधन के लिए 'संघ' के स्वयंसेवकों ने अनेक स्वैच्छिक एवं सामुदायिक संगठनों यथा विश्व हिन्दू परिषद, राष्ट्रीय सिख संगत, वनवासी कल्याण आश्रम, सामाजिक समरसता , मंच, मुस्लिम राष्ट्रीय मंच आदि की स्थापना की।" इन संगठनों ने समाज के बीच रहकर जो आदर्श कार्य किए हैं वह संपूर्ण विश्व में अनोखे व बेजोड़ हैं। अंत में, प्रस्तुत पुस्तिका के सम्बन्ध में निष्कर्ष स्वरूप कहा जाय तो डॉ० सत्यप्रकाश ने हिन्दुत्व से आम पाठकों को सरल शब्दों में परिचित करवा दिया है। हिन्दुत्व आंदोलन क्या है? क्यों है? कैसे है? जैसे गूढ़ प्रश्नों पर सहजता से समझ में आने वाले बिन्दुओं के रूप में उन्होंने हमारे सम्मुख प्रस्तुत किया है। वर्तमान में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विश्व विभाग से सम्बद्ध अन्तर्राष्ट्रीय सेवा संगठन – 'सेवा इंटरनैशनल' – में समन्वयक के दायित्व का निर्वहन करने वाले मेरे मित्र की कलम से भविष्य में सांस्कृतिक, राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक आदि अन्य विषयों पर भी सरल एवं सुबोध शब्दों में पुस्तकें व पुस्तिकाएँ निरंतर आती रहेंगी, ऐसी मेरी मान्यता है. शुभेच्छा है, शुभकामनाएँ हैं।
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