निराकार ईश्वर का ध्यान कैसे ?
ईश्वर का ध्यान करने वाले साधकों के सामने सबसे बड़ी समस्या यह आती है कि निराकार ईश्वर की उपासना कैसे की जाए ? मन को टिकाने के लिए कोई न कोई तो आधार होना ही चाहिए, चाहे वह आधार कोई मूर्ति हो, कोई प्रकाश हो, कोई दीपक हो, कोई अगरबत्ती हो, कोई लौ हो, कोई बिन्दु हो, कोई चिह्न हो। कोई न कोई वस्तु तो होनी चाहिए। बिना किसी आधार के मन को कैसे टिका पायेंगे ? इस विषय में ध्यान देने की बात है कि मन को टिकाने के लिए आश्रय की आवश्यकता तो है, हम भी कहते हैं कि आश्रय तो लेना ही चाहिए किन्तु वह आश्रय ईश्वर का ही होना चाहिए। हम ध्यान तो करना चाहे ईश्वर का किन्तु आश्रय लें प्रकृति का, तो ये तो गड़बड़ हो जायेगी इसलिए आश्रय, वह लेना है जो ईश्वर का ही गुण-कर्म-स्वभाव हो। शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध, भार, लंबाई, चौड़ाई गुण प्रकृति के हैं और प्रकृति से बने पदार्थों में भी आते हैं, किन्तु ये गुण ईश्वर में नहीं है। इनका आश्रय हम लोग लेंगे, तो यह प्रकृति का आश्रय हो गया। ईश्वर का आश्रय कैसे कहलायेगा? यहाँ प्रकृति के आश्रय को लेकर कहा जा रहा है कि ईश्वर का आश्रय ले रहे हैं। यह मिथ्या धारणा हो जाएगी। ईश्वर का ध्यान ईश्वर का ही आश्रय लेना है ईश्वर का आश्रय लेना अर्थात् ईश्वर के गुणों का आश्रय लेना। ईश्वर का गुण आनन्द है; ईश्वर का गुण ज्ञान है, ईश्वर का गुण बल है, ईश्वर का गुण दया है, ईश्वर का गुण न्याय है इत्यादि। तो हमें ईश्वर की उपासना करने के लिए और अपने मन को टिकाने के लिए ईश्वर के गुणों का ही आश्रय लेना चाहिए। उन गुणों को लेकर के ही मन को टिका सकते हैं, और ध्यान कर सकते हैं।
निराकार का आश्रय
यदि हम किसी रूप का आश्रय ले करके ईश्वर का ध्यान कर रहे हैं तो वह ध्यान होगा ही नहीं, वहाँ तो वृत्ति बन रही है, क्योंकि रूप नेत्र का विषय है और हम नेत्र से रूप को देखकर वृत्ति बनाये हुए हैं, वृत्ति-निरोध कैसे हो पायेगा? ईश्वर का ध्यान करने के लिए वृत्ति-निरोध कहा गया है। अर्थात् मन के माध्यम से, इन्द्रियों के माध्यम से, जो प्राकृतिक विषय हैं, ५ भूत हैं हैं शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध उनका हम ग्रहण न करें। यदि ध्यान काल में रूप की अनुभूति कर रहे हैं, तो वृत्ति-निरोध होगा ही नहीं, वहाँ तो वृत्ति चल रही है। उस वृत्ति को रोक करके ही ईश्वर का ध्यान हो सकता है, इसलिए रूप के आश्रय का निषेध है। इसी प्रकार यदि हम शब्द का आश्रय लेकर के ईश्वर का ध्यान करते हैं, तो उसका भी निषेध है। क्योंकि वह भी इन्द्रिय का विषय है। यह आवश्यक है कि हम उपासना काल में वृत्तियों का निरोध करें। हम ध्यान करने जा रहे हैं ईश्वर का, किन्तु प्रकृति का आश्रय ले कर प्रकृति का ध्यान करने लग जायें, यह उचित नहीं है अतः उपासना काल में शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध गुणवाले प्राकृतिक पदार्थों का शरा नहीं लेना चाहिए – ।
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