भाषा का ज्ञान सीमित होना, रुचि, समय अथवा धन का अभाव होना आदि अनेक कारणों से बहुत से लोगों की वैदिक सिद्धान्तों का बोध करवाने वाले सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, मनुस्मृति, उपनिषद्, वेद, शास्त्र आदि ग्रन्थों तक पहुँच नहीं है। उनमें बहुत सारे लोग तो केवल अपनी अनभिज्ञता के कारण ही पौराणिक पाखण्ड में फंसे हुए व्यर्थ में नाना प्रकार के दु:ख भोगते रहते हैं। काफी समय से विचार कर रहा था कि कोई एक ऐसी पुस्तक होनी चाहिए जिसमें मुख्यतः सभी वैदिक सिद्धान्त वर्णित हों और सरल, संक्षिप्त तथा स्पष्ट भाषा में हों। जो उन महानुभावों को दी जा सके ताकि उन्हें भी अज्ञान अन्धकार से निकलने का अवसर मिल सके। इन्हीं विचारों से प्रेरित होकर तथा विशेषकर ऐसे सज्जनों की आवश्यकता पूर्ति के लिए ही यह पुस्तक तैयार की गई है।
आशा की जाती है कि यह पुस्तक हमारे बच्चों को और नौजवानों को भी आर्य सिद्धान्तों की जानकारी देने के लिए उपयोगी सिद्ध होगी तथा विवाह आदि के अवसरों पर और आर्यसमाजों के उत्सवों पर वितरण के लिए भी प्रयुक्त हो सकेगी।
पुस्तक में सिद्धान्तों की मौलिकता, विषय की स्पष्टता, भाषा की सरलता तथा संक्षेप पर विशेष बल दिया गया है। वैदिक सिद्धान्तों और मान्यताओं को उसी रूप में प्रकट किया गया है, जिस रूप में महर्षि दयानन्द सरस्वती ने अपने ग्रन्थों में प्रकाशित किया है। पुस्तक की सामग्री मुख्यतः महर्षि द्वारा लिखित पुस्तकों से तथा उन द्वारा प्रतिपादित ग्रन्थों से ली गई है। बहुत से स्थलों पर महर्षि दयानन्द की भाषा और शैली को ज्यों का त्यों रखा गया है। 1
महर्षि दयानन्द एक ऐसे महापुरुष हुए हैं, जिन्होंने हम भारतीयों के पतन और पराधीनता के वास्तविक कारणों-बुद्धि की जड़ता, अज्ञानता, दुर्बुद्धि, दुराग्रह, शिथिलता, , निष्क्रियता आदि दोषों को समुचित ढंग से, वेदों के सबल आश्रय से तथा अपने पूर्ण सामर्थ्य से दूर करने का प्रयत्न किया। उस महर्षि के प्रति हम आभार प्रकट करते हैं।
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