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रामायण में प्रकृति पर्यावरण विचार

Ramayan Men Prakruti Paryavaran Vichar

800.00

Subject : Ramayan Men Prakruti Paryavaran Vichar
Edition : 2015
Publishing Year : 2015
SKU # : 37584-AP02-0H
ISBN : 9788183902106
Packing : N/A
Pages : 208
Dimensions : 14X22X6
Weight : 700
Binding : Hardcover
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भारतीय संस्कृति को अरण्य – संस्कृति से भी आख्यायित किया गया है, क्योंकि इसका विकास ऋषि-महर्षियों के तपश्चरण और वैदिक मंत्रागम के साथ हुआ है। भारतीय ऋषि-मनीषियों के पास विपुल और पारदर्शी ज्ञान का अक्षय भांडार था। उन्होंने उस ज्ञान के सहारे अपने परमपिता की कल्पना ही नहीं की, बल्कि उनसे साक्षात्कार कर एक अदृश्य शक्ति के रूप में उन्हें प्रतिष्ठित किया, अपनी महिमामयी माता को पहचाना और क्रमश: उन्हें ब्रह्म और प्रकृति की संज्ञा दी ।

माता-जैसे महनीय पद से अलंकृत प्रकृति पाँच तत्त्वों से निर्मित है। परब्रह्म परमात्मा की शक्ति भी इसी प्रकृति की माया और प्रभाव से उत्पन्न और क्रियाशील होती है। रूप, शब्द, स्पर्श, स्वाद और गंध इनके पृथक्-पृथक् गुण हैं।

हमारा दैनिक क्रिया-कलाप प्रकृति के उपादानों के बीच और साथ ही संपादित होता है। इसीलिए आदिकाल से ही ऋषियों ने प्रात:काल में उठने के साथ ही सर्वप्रथम प्रकृति के पंचमहाभूतों को ही नमन करने का विधान बनाया हैं

पृथ्वी सगन्धा सरसास्तथापः स्पर्शी च वायुर्ज्वलितं च तेजः। नभः सशब्दं महता सहैव कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम् ॥ (वामनपुराण – 14/26)

अर्थात् गंधयुक्त पृथ्वी, रसयुक्त जल, स्पर्शयुक्त वायु, तेजगुण – युक्त अग्नि और शब्दगुण-युक्त आकाश – ये सभी अपनी-अपनी महत्ता के साथ मेरे प्रातःकाल को मंगलमय करें ।

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