शरीर, इन्द्रिय, मन और आत्मा के संयोग का नाम आयु है। नित्य प्रति चलने से, कभी एक क्षण भर के लिए भी न रुकने से इसे आयु कहते हैं। आयु का ज्ञान जिस शिल्प या विद्या से प्राप्त किया जाता है, वह आयुर्वेद है। यह आयुर्वेद मनुष्यों की भाँति वृक्ष, पशु-पक्षी आदि के साथ सम्बन्धित है, इसलिए इनके विषय में भी संहिताएँ बनायी गयीं। ज्ञान का प्रारम्भ सृष्टि से पूर्व हुआ, ऐसा भी मानने वाले विद्वान हैं। उनके विचार से आयुर्वेद पहले उत्पन्न हुआ और उसके बाद प्रजा उत्पन्न हुई। आयु के लिए क्या उपयोगी है, क्या अनुपयोगी; यह जानना बहुत आवश्यक है। इस प्रकार आयु सम्बन्धी ज्ञान शाश्वत है। केवल इसका बोध और उपदेश मात्र ही ग्रन्थों में कहा गया है। जिस प्रकार शिशु के उत्पन्न होने से पूर्व माता के स्तनों में दूध आ जाता है, उसी प्रकार मनुष्य या सृष्टि के उत्पन्न होने से पूर्व परमात्मा ने जीविका के साधन बनाये थे, इन साधनों से आयुर्वेद भी था। इसीलिए यह प्राचीन एवं शाश्वत है।
वेदों के साथ आयुर्वेद का सम्बन्ध वेद शब्द का अर्थ ज्ञान है।
(विद् ज्ञाने)। यह ज्ञान ऋग्वेद में आध्यात्मिक देवता सम्बन्धी है। ऋग्वेद की रचना पद्यात्मक है। यजुर्वेद में कर्मकाण्ड सम्बन्धी ज्ञान है, इसकी रचना गद्यमय है। साम का सम्बन्ध गायन-उपासना से है, इसकी रचना गीतात्मक है। इन तीनों को त्रयी कहते हैं। अथर्ववेद का, जो कि ज्ञान से परिपूर्ण होने के कारण इनकी श्रेणी में आता है, सम्बन्ध मानव जीवन के साथ अधिक है। इसमें ज्ञान, कर्म उपासना तीनों का समावेश है। इसीलिए आयुर्वेद को इसका उपांग माना गया है। कुछ आचार्यों ने ऋग्वेद का उपांग आयुर्वेद को माना है, परन्तु आयुर्वेद के आचार्यों ने अथर्ववेद का ही उपांग इसे स्वीकार किया है।
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